विचारशून्यता से चिंता

मध्य प्रदेश को भगवा संगठन के नेतृत्व ने हिंदुत्व और प्राचीन संस्कृति की प्रयोगशाला बना दिया है। उसी का नतीजा है कि कथा दीनदयाल जैसा नया प्रयोग किया जा रहा है। आमतौर पर भागवत कथा और रामायण कथा ही होती हैं हिंदुओं में। पर आरएसएस ने सोलह से अट्ठारह दिसंबर तक भोपाल में कथा दीनदयाल का आयोजन किया है। दीन दयाल उपाध्याय के समस्त जीवन, त्याग और राष्ट्र निर्माण की अवधारणा यानी एकात्म मानववाद के दर्शन को कथा के जरिए समझाया जाएगा। आयोजन दीन दयाल शोध संस्थान कर रहा है। पर सूबे की सरकार की तरफ से बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस इसकी संयोजक हैं। जो दावा कर रही हैं कि एकात्म मानव दर्शन को आज की परिस्थितियों के अनुरूप स्थापित किया जाएगा। कथा वाचक होंगे दिल्ली प्रांत के सह संघ चालक आलोक कुमार। पहले दिन यजमान का जिम्मा खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान संभालेंगे तो दूसरे दिन पार्टी के सूबेदार नंद कुमार सिंह चौहान। तीसरे दिन विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा के कंधों पर होगा यह दायित्व। अपने दिवंगत विचारक को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाना है इस आयोजन के पीछे भगवा ब्रिगेड का असली मकसद।

गनीमत है कि सत्तारूढ़ अकाली दल के नेताओं को अब अहसास होने लगा है कि बाजी उनके हाथ से निकल चुकी है। सो आनन-फानन में लोकलुभावन घोषणाएं कर पंजाब में अपनी जमीन बचाने की कोशिश में जुटे हैं अकाली नेता। भाजपा है उनकी सहयोगी। सो, मतदाताओं का कोपभाजन तो उसे भी बनना ही पड़ेगा। तभी तो पार्टी के क्षत्रप नवजोत सिद्धू के सुझाव को ही दोहरा रहे हैं। खबर है कि आलाकमान तक गुहार लगाई है कि अकाली दल से नाता तोड़ पार्टी को अपने बूते लड़ना चाहिए अगला विधानसभा चुनाव। अकाली दल को तो अब दूसरे नंबर के लिए भी खतरा दिखने लगा है। फिलहाल दौड़ में कांग्रेस अव्वल तो केजरीवाल की आम आदमी पार्टी उसके बाद दिख रही है। कांग्रेस के सूबेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। कद्दावर नेताओं को पार्टी में शामिल कर यह संदेश देने की कोशिश है कि सूबे में हवा कांग्रेस की ही बन रही है। सत्तारूढ़ गठबंधन की बची खुची साख नोटबंदी के फैसले की भेंट चढ़ गई। लोगों का धीरज चुक गया है। उन्हें अब प्रधानमंत्री की इस सलाह पर यकीन नहीं होता कि पचास दिन बाद उनका स्वर्ण काल शुरू हो जाएगा।
उल्टा पड़ता दांव

नोटबंदी के प्रतिकूल प्रभाव से मध्य प्रदेश कैसे बचता? कारखानों में उत्पादन घट गया तो असर रोजगार पर पड़ना ही था। खेती और निर्माण संबंधी गतिविधियां ज्यादा प्रभावित हैं। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और रतलाम जैसे शहरों में कारखाना मालिकों ने नकदी की किल्लत देख उत्पादन गिरा लिया है। ओवरटाइम की तो नौबत ही नहीं। मजदूर संगठनों के दावे पर यकीन करें तो एक महीने में करीब 75 हजार मजदूर बेकार हो गए। आमदनी पर असर से तो शायद ही कोई मजदूर बचा हो। गौतम कोठारी औद्योगिक संगठन के नेता हैं। नोटबंदी के फैसले को उद्योगों का गला घोटने वाला बता रहे हैं। मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र में करीब पांच सौ छोटी-बड़ी इकाइयां हैं।

उनके संगठन के अध्यक्ष मनोज मोदी गलत क्यों कहेंगे कि 2000 मजदूरों को नौकरी से निकाला जा चुका है। दूसरे इलाकों में भी अनुबंध वाले मजदूर बेकार हो गए हैं। इंदौर में निर्माण की गतिविधियां ठप हुई तो दस हजार से ज्यादा दिहाड़ी मजदूर अपने गांवों को पलायन कर गए। खरगोन की एक कपड़ा मिल ने सभी 760 मजदूरों को फिलहाल आराम करने की सलाह दी है। बुरहानपुर में करीब 12 हजार हथकरघा इकाइयां बंद हैं। 15 हजार लोग बेरोजगार हुए हैं। मंदसौर की हालत और भी खस्ता है। सिहोर जिले के डेढ़ लाख से ज्यादा किसान सहकारी बैंकों में जमा अपना पैसा निकाल नहीं पा रहे। मालवा इलाके में शीतगृहों में रखे आलू के सड़ने की नौबत है। संपत्ति की खरीद-फरोख्त के कारण स्टांप शुल्क के रूप में सरकार को मिलने वाला राजस्व तो लगभग बंद ही है। पता नहीं किस आधार पर केंद्र सरकार नोटबंदी को देश के हित में लिया गया फैसला बता रही है।