विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजस्थान में घटत-बढ़त के खेल में जुट गए हैं। राहुल गांधी ने पिछले दिनों जयपुर में रोड शो किया तो उनकी पार्टी के भीतर इससे गर्मजोशी दिखाई दी। नतीजतन कांग्रेस के नेता अब सत्ता से आगे बढ़ सीटों की और बढ़ोतरी का दांव लगा रहे हैं। ऊपर से चुनाव पूर्व आए एक निजी टीवी चैनल के सर्वेक्षण और सट्टा बाजार में अपनी बढ़त से कांग्रेसियों की बांछें खिल गर्इं। इसके उलट सत्तारूढ़ भाजपा के खेमे में पहले से छाई मायूसी और बढ़ी है। जहां तक भीड़ का सवाल है, वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा को भाजपाई उम्मीद से ज्यादा सफल बता रहे हैं।
वे इसी आधार पर खुशफहमी में हैं कि वसुंधरा सरकार कहीं नहीं जाने वाली। आंख के इन अंधों को सूबे में सत्ता विरोधी माहौल कहीं दिख ही नहीं रहा। हां, कुछ खांटी भाजपाई जो आकलन पेश कर रहे हैं, वह चौंकाने वाला है। मसलन वसुंधरा की गौरव यात्रा में जुट रही भीड़ कब पलटी मार जाए कोई नहीं जानता। भीड़ तो अजमेर और अलवर की चुनावी सभाओं में भी खूब जुटी थी वसुंधरा को सुनने। पर उपचुनाव के नतीजों ने ऐसी हार दी कि भाजपाई अभी तक सदमे से नहीं उबर पाए। यानी सभाओं की भीड़ को ही जीत का एक मात्र पैमाना नहीं माना जा सकता।
हां, चौकस कांग्रेसी भी कम नहीं हैं। अति आत्मविश्वास के जोखिम से वे अनजान नहीं हैं। रही आलाकमान की बात तो दिल्ली से आने वाला हर भाजपा नेता कार्यकर्ताओं को एक ही घुट्टी पिला रहा है कि लग जाओ, अगली बार भी सरकार अपन ही बनाएंगे। एक कमजोरी कांग्रेसी खेमे में भी साफ दिख रही है। वे भाजपा की तरह मेहनत करते नहीं दिख रहे। करें भी क्यों? उन्हें तो सूबे के सियासी मिजाज का भरोसा है। भाजपा सरकार के खिलाफ बने नकारात्मक माहौल से मिलेगी उन्हें संजीवनी।