भाजपा के लिए 2017 तो शुभ साबित हो गया पर 2018 को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। कई सूबों में होंगे इस वर्ष विधानसभा चुनाव। कुछ जगह भाजपा अपनी सरकारें बचाना चाहेगी तो कुछ सूबों में कांग्रेस से सत्ता झटकने का मंसूबा पालेगी। हां, गुजरात में कांग्रेस की बढ़त के बाद अब कांग्रेस मुक्त भारत का राग शायद अमित शाह नहीं अलापेंगे। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान को बचाना आसान नहीं होगा। लंबे राज के कारण पैदा होने वाला व्यवस्था विरोधी रुझान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आड़े आएगा। राजस्थान का मिजाज हिमाचल सरीखा ठहरा। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा 2003 से लगातार सत्ता पर काबिज है। तो भी इन दोनों सूबों से ज्यादा चिंता मोदी और शाह की जोड़ी को गुजरात से सटे राजस्थान को लेकर दिखती है। इस सूबे का सियासी मिजाज हिमाचल सरीखा ठहरा। मतदाता ज्यादा ही जागरूक हैं। हर बार सरकार बदल देते हैं। इस नाते कांग्रेस आत्मविश्वास पाल सकती है।

पर पंजाब में इस तरह के कयास 2012 में गलत साबित हो गए थे जब शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को सूबे के लोगों ने परंपरा तोड़ कर दोबारा राजपाट सौंप दिया था। राजस्थान में पिछली दफा वसुंधरा राजे ने बंपर बहुमत का नया कीर्तिमान बनाया था। लेकिन अपने चार साल के कार्यकाल में वे कोई सकारात्मक छवि पेश नहीं कर पाई हैं। ऊपर से संघी खेमे से इस दौरान उनकी दूरी लगातार बनी रही। विधानसभा चुनाव से पहले इस सूबे में अजमेर और अलवर की लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो जाएगा। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस उपचुनाव में कैसा प्रदर्शन करेगी।

चार साल के वसुंधरा सरकार के कार्यकाल के जश्न में तो लोगों ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। मंत्रियों को भी हर जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। लोग काले झंडे नहीं ले जा पाए तो अपने काले स्वेटर और कोट ही लहरा कर मंत्रियों को अपने गुस्से से अवगत कराया। नतीजतन अब पुलिस चौकन्नी हो गई है कि ऐसे किसी भी कार्यक्रम में कोई काले कपड़े पहन कर न पहुंचे। सरकार की चौथी वर्षगांठ पर हर जिले में विकास प्रदर्शनी लगी तो भाजपा के कार्यकर्ता ही खिल्ली उड़ाते नजर आए कि कहां हुआ विकास।