शिवपाल यादव तो अपने भतीजे के साथ पटरी बैठाने के फेर में लगते हैं। पर अखिलेश यादव को अपने चाचा पर अभी तक भरोसा नहीं हो पा रहा। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव को लेकर चाचा ने दावा ठोका है। आगरा में गुरुवार को पत्रकारों से कहा कि वे अपने बड़े भाई यानी मुलायम सिंह यादव के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। लिहाजा इस सीट से उपचुनाव लड़ना जरूर चाहेंगे। पर अंतिम फैसला तो उनकी पार्टी का संसदीय बोर्ड ही करेगा। यह भी भला कोई बात हुई। उनकी अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी है, जिसके वे सर्वेसर्वा हैं।
हालांकि, विधायक वे समाजवादी पार्टी के ही हैं। उसी के चुनाव चिह्न पर जीते थे। अखिलेश यादव ने अभी तक मैनपुरी को लेकर कोई राय नहीं दी है। चाचा को वे अतीत में कई बार संकेत दे चुके हैं कि अगर भाजपा और उसके नेता उन्हें ज्यादा भाते हैं तो वे भाजपा में शामिल होने को स्वतंत्र हैं। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश इस सीट से पूर्व सांसद तेजप्रताप यादव को उपचुनाव लड़ाना चाहते हैं। तेजप्रताप ने विधानसभा चुनाव के समय अखिलेश का मजबूती से साथ दिया था। मुलायम सिंह यादव भी अपने इस रिश्ते के पौत्र से खास स्नेह रखते थे। ऊपर से तेजप्रताप ठहरे लालू यादव के दामाद। अखिलेश और तेजस्वी के बीच रिश्ते पहले से मधुर हुए हैं।
जादूगर पर जादू
अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करके अभी तक तो सचिन पायलट घाटे में ही दिख रहे हैं। उपमुख्यमंत्री का पद भी चला गया था और पार्टी की सूबेदारी से भी हाथ धोना पड़ा था। ऊपर से अशोक गहलोत पहले से ज्यादा आक्रामक होते गए। सचिन को संतोष भी करना पड़ा और मुख्यमंत्री के तंज भी सहने को मजबूर हुए। लेकिन, पिछले मंगलवार की घटना ने कांग्रेस के इस युवा नेता को आक्रामक मुद्रा अपनाने का अवसर दे दिया। उस दिन राजस्थान के जनजाति बहुल बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अशोक गहलोत ने मंच साझा किया था। इसी अवसर पर प्रधानमंत्री ने गहलोत की तारीफ की।
मोदी ने कहा कि मानगढ़ पहले वीरान जगह थी, लेकिन गहलोत ने इसे हरा-भरा बना दिया। मोदी इतने तक ही सीमित नहीं रहे। अतीत के झरोखे में जा पहुंचे। फरमाया कि वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो पड़ोसी राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत के साथ उनका अच्छा तालमेल था। गहलोत तब भी उनसे वरिष्ठ मुख्यमंत्री थे। वे आज भी देश के सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्री हैं। गहलोत की बारी आई तो आभार जताते हुए उन्होंने भी मोदी की प्रशंसा की। बोले कि प्रधानमंत्री को आज सारे विश्व में आदर की दृष्टि से देखा जा रहा है क्योंकि वे उस देश के प्रधानमंत्री हैं जहां लोकतंत्र की जड़ें काफी गहरी हैं।
दरअसल, मानगढ़ का क्रांतिकारी इतिहास रहा है। अंग्रेजों ने 1913 में यहां कबीलों में रहने वाले डेढ़ हजार से भी ज्यादा भील समुदाय के लोगों का सामूहिक जनसंहार किया था। यह राष्ट्रीय स्मारक है। इस प्रकरण के अगले ही दिन पायलट ने नाम लिए बिना जयपुर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान अशोक गहलोत पर तंज कस दिया। गुलाम नबी आजाद प्रसंग की याद दिलाई और फरमाया कि पूर्व में भी जो हुआ, उसे हम सबने देखा। मानगढ़ की घटना कोई सामान्य घटना नहीं। इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
पाठकों को बता दें कि राज्य सभा से गुलाम नबी आजाद की विदाई के समय भी सदन में मोदी ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। काफी भावुक नजर आए थे प्रधानमंत्री। कुछ दिन बाद आजाद ने कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली। इसी तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी पंजाब का मुख्यमंत्री रहते प्रधानमंत्री ने खूब सराहना की थी। नतीजा सामने है। अमरिंदर अब भाजपा के सहयोगी हैं। पायलट के इस निशाने से कांग्रेसी सकते में हैं कि कहीं जादूगर गहलोत खुद मोदी के जादू में तो नहीं फंस जाएंगे।
लापता का वकील…
कुछ नाम और चेहरे जांच एजंसियों की साख पर सवाल उठाते रहते हैं। ये वो लोग हैं जो भारत में दागी होकर विदेश की धरती पर आराम से रह रहे हैं। कभी कोई चेहरा तो कभी कोई चेहरा हमेशा नए सवाल पैदा कर देता है। दाऊद इब्राहीम की वापसी की उम्मीद तो अब धूमिल ही पड़ने लगी है। पर, ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और विजय माल्या को वापस लाने का भरोसा देना केंद्रीय एजंसियों ने अभी तक छोड़ा नहीं है। यह बात अलग है कि परदेस में न तो हमारे अपने नियम कानून चलते हैं और न हमारी पुलिस और दूसरी एजंसियों की हनक।
माल्या जब देश छोड़कर लंदन भागे थे तो वे राज्यसभा के सदस्य भी थे। सुप्रीम कोर्ट अपने एक आदेश की अवमानना के लिए माल्या को दोषी ठहरा कर चार महीने कैद की सजा भी सुना चुका है। सुप्रीम कोर्ट सरकारी वकीलों से माल्या के भारत प्रत्यर्पण की स्थिति की अकसर पूछताछ करता है। पर, अब तो विजय माल्या के वकील ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। गुरुवार को वकील ईसी अग्रवाल ने न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की पीठ से कह दिया है कि माल्या अब उससे बात नहीं कर रहा। लिहाजा उसे माल्या के वकील की हैसियत से मुक्त कर दिया जाए। लापता का वकील कहलाना मुझे कबूल नहीं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)