हैरान करने वाली है राजस्थान में भाजपा नेताओं की निराशा। और तो और संघी अतीत वाले नेता भी कांग्रेस का दामन थामने से नहीं हिचक रहे। वसुंधरा राजे खुद भी अपनी पार्टी के लिए अब पहले जितनी चिंतित नजर नहीं आ रहीं। ऊपर से आलाकमान ने उन्हें अपनी टीम में उपाध्यक्ष बना सूबे की सियासत से उनकी बेदखली की राह बना दी। नतीजतन पार्टी के मजबूत गढ़ जयपुर तक में दिग्गजों के पार्टी छोड़ने का सिलसिला चल पड़ा। सांगानेर सीट से विधायक रहे घनश्याम तिवाड़ी आरएसएस के सर्वोच्च प्रशिक्षण से गुजरे नेता हैं। छह बार विधानसभा के सदस्य रहे। भैरोसिंह शेखावत से लेकर वसुंधरा तक की सरकार में मंत्री भी। ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस से नाता जोड़ लिया। जबकि अतीत में इसी पार्टी को कोसते अघाते नहीं थे।

आपातकाल में 18 महीने जेल भी काटी। वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का अंजाम था कि उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया। आलाकमान ने भी उनकी बात नहीं सुनी। तिवाड़ी ही नहीं जयपुर के मेयर विष्णु लाटा, जिला परिषद प्रमुख मूलचंद मीणा और भाजपा सरकार में मंत्री रहे पाली के कद्दावर नेता सुरेंद्र गोयल को भी कांग्रेस भा गई। इससे भगवा खेमे में खलबली दिख रही है। पार्टी के सूबेदार मदनलाल सैनी शुरू में तो सुबह से शाम तक पार्टी दफ्तर में जमे दिखते थे लेकिन अब कार्यकर्ताओं को संघ की तर्ज पर काम करने की घुट्टी पिलाने तक ही सीमित रह गए हैं। जाहिर है कि ऐसे माहौल में 2014 की तरह सभी 25 लोकसभा सीटों पर परचम फहराने का खयाल छोड़ चुके होंगे आलाकमान। अतीत की परंपरा भी बताती है कि सूबे में जिस पार्टी की सरकार रही, लोकसभा चुनाव में उसे कुछ फायदा मिला जरूर।

ऊंचे ख्वाब
ममता बनर्जी हैं हौसले वाली। एक तरफ भाजपा ने उनके सूबे पश्चिम बंगाल में 42 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है तो दूसरी तरफ ममता भी मायावती की तरह ही दिल्ली की गद्दी का ख्वाब देख रही हैं। तभी तो अपने सूबे में किसी से गठबंधन नहीं किया। भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने के लिए तो दिल्ली तक कूच किया पर अपने सूबे में भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने में कतई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब उनके चुनाव घोषणापत्र ने भी उनके इरादों को उजागर कर दिया है। तीसरे मोर्चे की सरकार बनने का संकेत दे रहा है उनका घोषणापत्र।

नोटबंदी की जांच कराने और योजना आयोग को फिर से जीवित करने जैसे वादे हैं इसमें। साल में सौ दिन काम की गारंटी वाली योजना को विस्तार दे दो सौ दिन के रोजगार का वादा भी कम लोकलुभावन नहीं। मजदूरी की दर को तो एक झटके में दोगुना कर देने का इरादा जताया है। मौजूदा जीएसटी ढांचे की समीक्षा करने का संकेत भी दे डाला। ऊपर से यह आरोप तो जड़ ही रही हैं कि केंद्र सरकार की एजंसियां उनके फोन टैप कर रही हैं। बातचीत ही नहीं एसएमएस तक की निगरानी हो रही है। ममता अपनी तरफ से मोदी पर प्रहार का कोई अवसर चूकती नहीं। मैं भी चौकीदार के मोदी के नए नारे की खिल्ली उड़ाते हुए टिप्पणी की कि असली चौकीदारों की तो वे भी दिल से इज्जत करती हैं पर सियासी चौकीदारों की नहीं।