बिहार के मुख्यमंत्री की सूबे के उपचुनाव नतीजों पर प्रतिक्रिया नहीं आई। लोकसभा की अररिया और विधानसभा की दो सीटों के उपचुनाव के नतीजों से राजद की जमीन पुख्ता रहने का ही संकेत गया। रही नीतीश कुमार की बात तो नतीजा उनके मनमाफिक न आए तो वे चुप्पी साध लेते हैं। ताजा नतीजों ने वैसे भी उनकी साख पर सवाल खड़ा किया है। भाजपा की नजर में उनकी अहमियत घटेगी। उन्हें साथ लेकर भी भाजपा अररिया सीट नहीं जीत पाई।
खुद नीतीश ही जहानाबाद विधानसभा सीट पर राजद को हराना तो दूर टक्कर भी नहीं दे पाए। इससे यह धारणा गलत साबित हो गई कि नीतीश जिसके साथ रहते हैं, उसका पलड़ा भारी हो जाता है। लालू यादव के बेटों ने साबित कर दिया कि चाचा नीतीश के साथ छोड़ देने के बावजूद राजद की जमीन खिसकी नहीं है। राजद ऐसी पार्टी है जो जनता दल (एकी) पर तो भारी है ही, भाजपा के लिए चुनौती भी है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर नीतीश की चिंता बढ़ेगी। मुसलमान और यादव के समीकरण में मांझी के साथ आ जाने से अति दलितों का समर्थन और बढ़ जाएगा। यानी राजद को कमजोर आंकना नीतीश और उनकी सहयोगी भाजपा की सियासी नादानी ही कहलाएगी।