आलोक पुराणिक
मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आभासी मुद्रा (क्रिप्टो करंसी) पर जो विस्तृत फैसला दिया था, उसका सार यह था कि इसका कारोबार भारत में कानूनी है या गैरकानूनी, यह तय सरकार करे। पर सरकार अभी तक यह तय नहीं कर सकी है। दो साल बाद भी इस आभासी मुद्रा की वैधानिक स्थिति का हाल यह है कि अभी सिर्फ यही तय किया जा सका है कि इस पर तीस प्रतिशत की दर से कर लगना चाहिए।
वित्त वर्ष 2022-23 का बजट आने के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि आभासी मुद्रा (क्रिप्टो करंसी) को लेकर बजट में भ्रम दूर किए गए हैं या बढ़ाए गए हैं। बजट में मोटे तौर पर यह कहा गया है कि इस आभासी मुद्रा के लेनदेन से हुई आय पर तीस प्रतिशत का कर लगेगा। इस घोषणा के बाद इसे लेकर कुछ निवेशक आश्वस्त हो गए हैं कि अब तो यह पूरे तौर पर कानूनी होने जा रही है। आभासी मुद्रा में निवेशक बढ़ रहे हैं, ऐसे समाचार भी बजट के बाद आए। लेकिन वास्तविक स्थिति एकदम अलग है।
आभासी मुद्रा अभी कोई वास्तविक मुद्रा है ही नहीं। मुद्रा होने का मतलब है कि उसे स्वीकार करने की अनिवार्यता हो, यानी जिसे वह दी जाए, वह उसे स्वीकार करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हो। भारत में अगर कोई किसी को पांच सौ रुपए देता है तो वह उसे स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता। यह कानूनी बाध्यता है और यही भारतीय रुपए को कानूनी मुद्रा बनाती है। पर क्रिप्टो करंसी जैसी आभासी मुद्रा को लेकर फिलहाल ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। क्रिप्टो करंसी के साथ ‘करंसी’ शब्द कुछ ऐसे जुड़ गया है, जैसे ब्राउन शुगर के साथ ‘शुगर’। पर ब्राउन शुगर को शुगर यानी चीनी का दर्जा तो नहीं दिया जा सकता। आभासी मुद्रा का हाल भी यही है कि इसके नाम में ‘करंसी’ है, बाकी वास्तविक मुद्रा का इससे कोई लेना देना नहीं है।
इस आभासी मुद्रा के लेनदेन से हुई आय को कर योग्य बना दिया गया है। सरकार फिलहाल यह कहना चाहती है कि ‘क्रिप्टो करंसी’ है क्या, हमें नहीं पता। हम तय भी नहीं कर पा रहे हैं अभी। पर इसके लेनदेन से जो आय हो रही है, उसे कर के दायरे लाना हमारे हित में है, तो हम इसे कर योग्य बना रहे हैं और यह कर तीस प्रतिशत की दर पर लगाया गया है।
आयकर की उच्चतम दर है तीस प्रतिशत, इसी दर पर इस आभासी मुद्रा से हुई आय पर कर लगेगा। निश्चय ही आयकर की दर यह उच्चतम दर है। पर सवाल यह है कि आभासी मुद्रा पर उच्चतम दर से कर लगाना उचित है या नहीं है। करों को लगाने का औचित्य कुछ आधारों पर तय किया जाता है। पर आभासी मुद्रा को लेकर कई सवाल हैं जैसे- क्या इसमें निवेश उत्पादक गतिविधि है, क्या इससे अर्थव्यवस्था में उत्पादकता बढ़ती है, क्या इससे नए उद्यमों को पूंजी मिलती है, क्या इससे व्यापक तौर पर गुणवत्ता वाला रोजगार मिलता है.. आदि।
आभासी मुद्रा से किसी उद्यम को नई पूंजी नहीं मिलती। शेयर बाजारों का एक योगदान होता है कि नए कारोबार को पूंजी मिलती है। पुराने कारोबारों को विस्तार के लिए पूंजी मिलती है। नए शेयरों को जारी करके नए कारोबारों को पूंजी उठाने में मदद मिलती है। जबकि आभासी मुद्रा बाजार से ऐसी कोई नई पूंजी किसी कारोबार को नहीं मिलती। यानी नई पूंजी तैयार करने में आभासी मुद्रा का कोई योगदान नहीं है।
आभासी मुद्रा मूलत: जुए की किस्म का लेनदेन है, जिसका कोई ठोस और कानूनी आधार नहीं है। शेयरों के भाव ऊपर जाते हैं, नीचे जाते हैं, क्योंकि उनकी कंपनियों से जुड़ी आय संपत्तियों में उतार-चढ़ाव होता है। पर आभासी मुद्रा से जुड़ा ऐसा कोई कारक नहीं है। क्रिप्टो करंसी यानी आभासी मुद्रा है क्या, दरअसल यह भी साफ नहीं है। शेयर के पीछे एक कंपनी होती है, अच्छी या बुरी जैसी भी हो। पर आभासी मुद्रा के पीछे कौन है, यह किसी को साफ तौर पर नहीं पता। यह बड़ा भ्रम है। सट्टे बाजी कई आधारहीन बातों पर चलती है। जैसे आइपीएल के मैचों में सट्टा इस बात पर लगता है कि मैदान में फलां खिलाड़ी जब आएगा, तो पहले उसका दाहिना पैर आएगा या बायां पैर आएगा। इसमें लाखों को वारे न्यारे हो जाते हैं। पर यह नहीं कहा जा सकता है कि यह सब खेल का हिस्सा है।
आभासी मुद्रा अगर अर्थव्यवस्था में उत्पादकता नहीं बढ़ा रही है, तो इस पर तीस प्रतिशत का कर लगाना गलत नहीं ठहराया जा सकता। सरकार करों में रियायत उन उद्योगों को दे सकती है कि जिनमें व्यापक स्तर पर रोजगार पैदा हो रहा हो। पर आभासी मुद्रा के धंधे को तो ऐसा उद्यम नहीं माना जा सकता। यूं तकनीकी कारणों से कई बार जुए को भी उद्यम माना जा सकता है। एक अनुमान है कि इस आभासी मुद्रा में करीब साढ़े छह लाख करोड़ रुपए का निवेश भारतीय कर चुके हैं। इसमें लगातार आय क्यों होगी, इसका तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है।
इसलिए यह जुए से ज्यादा कुछ नहीं है। जुए में कुछ लोगों ने कमा लिया है, सिर्फ इसलिए तो जुए को राष्ट्र के लिए जरूरी गतिविधि घोषित नहीं किया जा सकता! मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आभासी मुद्रा (क्रिप्टो करंसी) पर जो विस्तृत फैसला दिया था, उसका सार यह था कि इसका कारोबार भारत में कानूनी है या गैर कानूनी, यह तय सरकार करे। पर सरकार अभी तक यह तय नहीं कर सकी है।
दो साल बाद भी इस आभासी मुद्रा की वैधानिक स्थिति का हाल यह है कि अभी सिर्फ यही तय किया जा सका है कि इस पर तीस प्रतिशत की दर से कर लगना चाहिए। जब सरकार कर वसूली में जल्दी दिखा सकती है, तो फिर ऐसी ही तत्परता नियमों के निर्माण में भी होनी चाहिए। तमाम लोग ऐसी आभासी मुद्रा में बड़ी रकम लगा चुके हैं, जिसकी परिभाषा सरकार को भी नहीं पता। अभी तो इस आभासी मुद्रा की परिभाषा पर काम हो रहा है। यह हास्यास्पद स्थिति ही है।
अब मोटे तौर पर अनुमान यह है कि आभासी मुद्रा को पूरे तौर पर अवैध घोषित नहीं किया जाएगा। इससे कर वसूली उच्चतम स्तर पर की जाएगी। तो अब यह सवाल उठ खड़ा होगा कि क्या फिर इसमें पैसा लगाना आम निवेशक और छोटे निवेशक के लिए सुरक्षित है? इस सवाल का जवाब वही है जो शेयरों के निवेश के संबंध में दिया जाता है कि जोखिम बहुत है। जोखिम समझ कर काम करना जरूरी है। शेयर बाजारों से भी नियमित अंतराल के बाद करुण क्रंदन आता है कि हाय, रकम डूब गई। छोटा निवेशक मर गया। छोटा निवेशक अगर लालची हो जाएगा, तो उसका मरना तय है।
आम निवेशक सिर्फ लालची नहीं, अज्ञानी भी होता है। शेयर बाजार में भी लोग डूबते हैं, फिर बताते हैं कि उन्हें कोई बता गया था कि दो महीने में लगाई गई रकम दोगुनी हो जाती है। तर्क यह नहीं बताता उन्हें कि अगर कहीं दो महीनों में रकम दो गुनी हो सकती है, तो दो महीनों में जीरो भी हो सकती है। लालच और अज्ञान अगर मिल जाएं, तो फिर बहुत ही घातक परिणाम आते हैं। जब शेयर बाजार लगातार ऊपर जाते हैं, तब छोटे निवेशक तेज गति से बाजार में आते हैं, तब पहले के ज्ञानी निवेशक बाजार से निकल रहे होते हैं। ज्ञानी किस्म के लालची निवेशक बड़े निवेशक होते हैं, वे खतरा देख कर पहले ही भाग खड़े होते हैं। शेयर बाजार में सबसे ज्यादा छोटे और अज्ञानी निवेशक ही डूबते हैं, जिन्हें निवेश की एबीसीडी भी पता नहीं होती।
आभासी मुद्रा में निवेश फिलहाल जुए में रकम लगाने से ज्यादा नहीं है। सरकार को जल्दी से जल्दी इससे जुड़े सारे नियम बना देने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो साल बाद भी अगर इस मुद्दे को लेकर एक स्पष्टता नहीं है, तो इससे यह साफ होता है कि सरकार के नीतिगत रुख में या तो भ्रम है या शिथिलता है या फिर दोनों ही हैं।