हाल ही में पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल कदीर खान ने धमकी दी है कि पाकिस्तान के परमाणु बम पांच मिनट में दिल्ली को तबाह कर सकते हैं। जब भी भारत के साथ उसके तनाव गहरे होते हैं, वह अपने परमाणु हथियारों का उल्लेख करने से बाज नहीं आता। अब्दुल कदीर खान की बात सैद्धांतिक तौर पर सही हो सकती है, लेकिन इन दिनों पाकिस्तान के एटमी हथियार केवल भारत के लिए नहीं, सारी दुनिया और खासकर अमेरिकी प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गए हैं। उन्हें आशंका है कि पाकिस्तान के एटमी हथियार कहीं आंतकवादियों के हाथ पड़ गए तो भारी तबाही हो सकती है।

यह मुद्दा इन दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार अभियान का प्रमुख मुद्दा बन गया है। अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल डोनाल्ड ट्रंप ने एक बहस में कहा कि अगर पाकिस्तान अस्थिर हो जाता है तो अमेरिका को उसके एटम बम छीन लेने चाहिए। ट्रंप ने कहा कि भारत को भी ऐसी योजना में शामिल करना चाहिए। ट्रंप ही नहीं, कई अमेरिकी नेता पाकिस्तान में एटमी जखीरे पर अपनी चिंता प्रगट कर चुके हैं।

बंदर के हाथ में उस्तरा वाली कहावत काफी पुरानी है। उसे आज के संदर्भ में कहना हो तो कुछ इस तरह कह सकते हैं कि पाकिस्तान के हाथ में एटमी उस्तरा। दरअसल, पाकिस्तान ने बहुत शौक से एटमी हथियार तो बना लिए, मगर उनकी सुरक्षा करना उसके वश की बात नहीं है। इस कारण पाकिस्तानी एटमी हथियार उसके और सारी दुनिया के लिए सिरदर्द बन गए हैं। पाकिस्तान को पिछले कई दशकों से एक ‘नाकाम’ देश माना जाता है, लेकिन इस बीच उसने परमाणु हथियारों के मामले में इतनी ‘तरक्की’ कर ली है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों के पंडित उसे दुनिया का सबसे खतरनाक देश मानने लगे हैं। कुछ तो उसे एटमी टाइम बम कहते हैं, जो अभी भले टिक-टिक कर रहा हो, मगर कभी भी फट कर इस दुनिया को एटमी विभीषिका की आग में झोंक सकता है।

पाकिस्तान पर लगने वाले इन विशेषणों में गलत कुछ भी नहीं है। यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि पाकिस्तान इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकवादियों का स्वर्ग बन चुका है। पाकिस्तान के बहुत बड़े हिस्से पर तालिबान और अन्य इस्लामी आतंकवादियों का राज चल रहा है। लेकिन इससे भी ज्यादा थर्रा देने वाली हकीकत यह है कि पाकिस्तान के एटमी हथियारों पर खूंखार आतंकवादियों का कभी भी कब्जा हो सकता है।

ये बातें काल्पनिक नहीं हैं। जानकार सूत्रों के मुताबिक अमेरिका के पास सचमुच ऐसा सीक्रेट प्लान है। अमेरिकी मीडिया उस सीक्रेट प्लान का खुलासा करता रहता है, जिसमें किसी न किसी तरह से भारत की भी भूमिका मुमकिन है। पाकिस्तान के पास न केवल एटमी हथियार हैं, बल्कि एफ-16 जैसे विमान और हत्फ पांच जैसी मिसाइलें हैं, जिनके जरिए वह करीब पच्चीस सौ किलोमीटर की दूरी तक कहीं भी एटमी हथियार गिरा सकता है। पाकिस्तान के आतंकवादियों के बढ़ते असर के कारण पश्चिमी देशों को लगने लगा है कि यह तो बंदर के हाथ में उस्तरा पड़ने की तरह है।

डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने चार साल पुरानी बहस को फिर जिंदा कर दिया है कि क्या अमेरिका पाकिस्तान के एटमी जखीरे पर कब्जा कर सकता है? ट्रंप के बयान ने अमेरिका के सीक्रेट प्लान को लेकर बहस छेड़ दी है, जिसका मकसद पाकिस्तान में अस्थिरता के हालात में उसके एटमी हथियारों को छीन लेना है। ‘स्नैच ऐंड ग्रैब’ नाम के इस प्लान की अमेरिका ने कभी पुष्टि नहीं की, लेकिन इससे जुड़ी खबरों को कभी नकारा भी नहीं।

सबसे खतरनाक बात यह है कि एक तरफ पाकिस्तान के एटमी हथियार असुरक्षित होते जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान का एटमी जखीरा बढ़ता जा रहा है। उस पर नकेल कसने का कोई उपाय नहीं है। ‘न्यूक्लियर बुलेटिन आॅफ एटॉमिक साइंटिस्ट’ की ताजा न्यूक्लियर नोटबुक रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल पाकिस्तान के पास एक सौ दस से लेकर एक सौ तीस परमाणु हथियारों का जखीरा है। 2011 में इनकी संख्या नब्बे से एक सौ दस के बीच थी। इस स्थिति से रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2025 तक पाकिस्तान दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन सकता है। एटमी हथियारों के मामले में पाकिस्तान फिलहाल अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन से पीछे है। मगर हकीकत है कि उसके पास भारत से ज्यादा एटमी हथियार हैं।

पाकिस्तान के एटमी हथियारों की सुरक्षा को लेकर सवाल पिछले कई सालों से पूछे जा रहे हैं। इस दौरान पाकिस्तान में जैसी घटनाएं हुर्इं, उन्होंने यह आशंका मजबूत की है कि पाकिस्तान के एटमी हथियार सुरक्षित नहीं हैं। आतंकी गुट पाकिस्तानी फौज के उन ठिकानों को निशाना बनाने में कामयाब हो चुके हैं, जो परमाणु बेस कहे जाते हैं। साढ़े तीन साल पहले पाकिस्तान के इलाके वाले पंजाब के कमरा में मिनहास एयरबेस पर आतंकियों ने हमला कर कई विमानों को नुकसान पहुंचाया था। वहां परमाणु हथियार भी रखे थे। मिनहास एयरबेस को पाकिस्तान का प्रमुख एटमी ठिकाना माना जाता है। ऐसे में अगर आतंकवादियों ने परमाणु हथियारों में विस्फोट कर दी होती तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह की विभिषिका हो सकती थी।

मई, 2011 में कराची में नेवल एयर बेस पीएनएस मेहरान पर हमला हुआ, जहां से एटमी बेस महज पंद्रह किलोमीटर दूर है। अक्तूबर, 2009 में आतंकी रावलपिंडी में सेना के हेडक्वार्टर पर भी आतंकी हमला कर चुके हैं। हाल ही में 18 सितंबर, 2015 को आतंकी पेशावर के एयरफोर्स बेस पर भी हमला कर चुके हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान ने जिन जगहों पर अपने परमाणु हथियार रखे हैं, वे सुरक्षित नहीं हैं।

पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए की गई कमांडो कार्रवाई से यह साबित हो चुका है कि अपने हितों की रक्षा के लिए अमेरिका किस हद तक जा सकता है। लिहाजा संकट के क्षणों में पाकिस्तान के एटमी जखीरे पर कब्जे की योजना मौजूद है, इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता। 2009 और 2011 में इस योजना से तब परदा उठ गया था, जब अमेरिकी मीडिया ने बताया कि एक स्पेशल ग्रुप है, जो एटमी जखीरे पर कब्जे की योजना पर लंबे समय से काम कर रहा है। यह योजना एक तेज फौजी आॅपरेशन के जरिए पाकिस्तान के करीब एक दर्जन परमाणु बेस पर पहुंच कर एटमी हथियारों को नाकाम करने या उनके ट्रिगर को कब्जे में ले लेने की है।

कई रक्षा विशेषज्ञों और पाकिस्तानी मामलों के जानकारों को लगता है कि उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, बलूचिस्तान और एफएटीए में आतंकवादी इतने हावी हो चुके हैं कि उन पर काबू पाना पाकिस्तानी सरकार के वश की बात नहीं रही। आतंकवादी और उग्र इस्लामी राजनीतिक दलों का इस इलाके पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो गया है। उन्हें सेना और आइएसआइ के कुछ तत्त्वों का समर्थन मिल सकता है। देश में जिस तरह की राजनीतिक अस्थिरता, प्रतिद्वंद्विता और भ्रम की स्थिति है उसमें इस्लामी आतंकवादी और उग्रवादी ताकतें मौके का फायदा उठा कर सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हो सकती हैं।

अमेरिका और पश्चिमी देशों की मुख्य चिंता है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? इराक और पाकिस्तान में हस्तक्षेप करना उनके लिए बहुत जोखिम भरा हो सकता है। पाकिस्तान जैसे विशाल देश में ढहती सरकार को स्थिर करने और आतंकवादियों का सफाया करने के लिए दस लाख सैनिकों की लंबे समय तक जरूरत होगी। मगर एटमी हथियारों वाले पाकिस्तान को भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। पश्चिमी देशों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि एटमी हथियारों का आतंकवादियों और उग्रवादियों की सरकार के हाथों में पड़ना सबसे खतरनाक होगा।

अमेरिकी मीडिया ‘स्नैच ऐंड ग्रैब’ योजना का हवाला देकर कहता है कि अमेरिका पाकिस्तान से बम छीन लेगा। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि अमेरिकी मीडिया अमेरिका की क्षमता पर कुछ जरूरत से ज्यादा विश्वास करता है। हकीकत यह भी है कि एटम बम बनाने वाले पाकिस्तान ने हिफाजत का भी इंतजाम किया होगा।

अमेरिका पर आतंकी हमले के सूत्रधार ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए चलाए गए अभियान में अमेरिका ने अपने मकसद में आसानी से कामयाबी हासिल कर ली थी। लेकिन एटमी हथियारों के लिए अभियान चलाने के दौरान किसी एक ठिकाने पर नहीं, बल्कि उन तमाम ठिकानों पर एक साथ कमांडो आॅपरेशन करना पड़ेगा, जहां पाकिस्तान के सौ से ज्यादा परमाणु वॉरहेड रखे हों। जासूसी दुनिया के इतिहासकार टी. रिचल्सन ने अपनी किताब ‘डिफ्यूजिंग आमार्गेडन’ में जिक्र किया है कि अमेरिका के पास न्यूक्लियर इमरजेंसी सर्च टीम है, जो ज्वाइंट स्पेशल आॅपरेशन कमांड के साथ एटमी जखीरे पर कब्जे का साझा आॅपरेशन कर सकती है।

ऐसे आॅपरेशन में दो तरह की रणनीति संभव है। एक, एटमी हथियारों को नष्ट करने की है। दूसरी, एटमी हथियारों पर कब्जा करने की है। दरअसल, एटमी हथियारों को नाकाम करने के लिए जरूरी नहीं है कि भारी-भरकम हथियारों को तबाह किया जाए, एटमी हथियार के ट्रिगर या उसकी चिप को नाकाम कर या उसे कब्जे में लेकर भी उसे बेकार किया जा सकता है। रोना तो इस बात का है कि भारत हर बार पाकिस्तान में होने वाली उथल-पुथल से सीधे और सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, लेकिन उसकी भूमिका केवल मूक दर्शक की रहती है।

(सतीश पेडणेक)