रंजना मिश्रा

शहरों के विकास के साथ-साथ प्रदूषण भी बढ़ता जाता है। गरीब इलाकों में प्रदूषण से होने वाली मौतें बढ़ रही हैं। बढ़ते औद्योगीकरण और आधुनिक जीवन-शैली के चलते पूरी धरती का संतुलन बिगड़ रहा है। प्रदूषण आज पूरी पृथ्वी के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। दुनिया के तमाम देश प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। मानवीय गतिविधियों और तकनीकी उपकरणों के अत्यधिक उपयोग के कारण आजकल वायु अत्यधिक प्रदूषित हो गई है। वायुमंडल में सभी प्रकार की गैसों की मात्रा निश्चित होती है, पर जब किसी कारणवश इनकी मात्रा में परिवर्तन हो जाता है तो वायु प्रदूषण होता है।

महानगरों में कल-कारखानों तथा मोटर वाहनों का धुआं और सर्दियों में पराली जलाने से फैलने वाला धुआं वातावरण को इतना दूषित कर देता है कि सांस लेना तक दूभर हो जाता है। मनुष्य कई बीमारियों की चपेट में आ जाता है। सघन आबादी में यह समस्या और अधिक गंभीर हो जाती है।आधुनिक विकास के साथ-साथ जल प्रदूषण की समस्या भी अत्यंत गंभीर होती जा रही है।

औद्योगीकरण और शहरीकरण के चलते शहरों में अनेक प्रकार के उद्योग लग रहे हैं। घरों और कल-कारखानों से निकलने वाला दूषित पानी, कचरा और रासायनिक अपशिष्ट नदियों में मिल कर उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं, जिससे अनेक बीमारियां फैल रही हैं। गंदा जल फसलों में जाकर उन्हें भी प्रदूषित कर देता है। इन फसलों से पैदा होने वाला अन्न जब मनुष्य के शरीर में जाता है तो कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है।

शुद्ध मिट्टी एक प्राकृतिक संसाधन है, यह प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, लेकिन मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किसान अत्यधिक कीटनाशक और खाद का उपयोग करते हैं, जो कि प्राकृतिक नहीं है और उससे मिट्टी की गुणवत्ता पर असर पड़ता और भूमि प्रदूषण बढ़ता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय उद्यान सेवा (एनपीएस) की रिपोर्ट के अनुसार ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी गंभीर रूप से नुकसानदायक है। यह इंसानों को ही नहीं, वन्यजीवों को भी गंभीर नुकसान पहुंचाता है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर ध्वनि प्रदूषण लंबे समय तक बना रहे, तो कई पेड़ों की प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।

ध्वनि प्रदूषण शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। जब कृत्रिम स्रोतों से वातावरण में प्रकाश की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि प्रकृति पर इसका नकारात्मक प्रभाव पैदा होने लगता है, तो इसे प्रकाश प्रदूषण कहते हैं। प्रकाश प्रदूषण का केवल मानव जाति पर नहीं, पौधों और जानवरों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।

मुख्य रूप से किसी भी क्षेत्र विशेष की वायु गुणवत्ता और वहां के वायु प्रदूषण को मापने के लिए एक्यूआइ यानी ‘एयर क्वालिटी इंडेक्स’ का उपयोग किया जाता है। इसके आठ संकेतक होते हैं, जिनमें मुख्य तौर पर पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे संकेतक शामिल होते हैं। इसकी कुछ श्रेणियां होती हैं। मसलन, अगर किसी क्षेत्र की एक्यूआइ 0 से 50 है, तो यह माना जाएगा कि वहां की वायु गुणवत्ता बहुत अच्छी है।

अगर किसी क्षेत्र का एक्यूआइ 51-100 है तो वहां की वायु गुणवत्ता संतोषजनक है। अगर एक्यूआइ 201-300 है, तो वायु गुणवत्ता खराब और 301-400 है, तो बहुत खराब मानी जाएगी और अगर किसी क्षेत्र का एक्यूआइ 401-500 है तो वहां की हवा में प्रदूषण की स्थिति बहुत अधिक गंभीर मानी जाती है। एक नए अध्ययन के अनुसार, हर साल वैश्विक स्तर पर लगभग नब्बे लाख लोगों की मृत्यु का कारण प्रदूषण ही है।

साल 2000 के बाद दूषित वायु से मरने वालों की संख्या लगभग पचपन फीसद तक बढ़ गई है। भारत में हर साल करीब चौबीस लाख और चीन में करीब बाईस लाख लोगों की प्रदूषण के कारण असमय मृत्यु हो जाती है। इस शोध में पाया गया कि दुनिया भर में एक साल में जितनी मौतें सिगरेट पीने और ‘पैसिव स्मोकिंग’ से होती हैं, लगभग उतनी ही मौतें वायु प्रदूषण के कारण हो जाती हैं।

वायु प्रदूषण के कारण लोग हृदय रोग, लकवा, फेफड़ों के कैंसर, फेफड़ों की दूसरी बीमारियों और डायबिटीज के शिकार हो जाते हैं। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने एक दशक पहले बताया था कि जीवाश्म र्इंधन के जलने से पैदा होने वाले प्रदूषण के छोटे कण हृदय रोग और मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया के उन क्षेत्रों की स्थिति अधिक खराब है, जहां जनसंख्या अधिक है तथा प्रदूषण से निपटने के लिए वित्तीय और सरकारी संसाधन सीमित हैं।

शहरों के विकास के साथ-साथ प्रदूषण भी बढ़ता जाता है। गरीब इलाकों में प्रदूषण से होने वाली मौतें बढ़ रही हैं। वायु प्रदूषण दक्षिण एशिया में असमय होने वाली मौतों का प्रमुख कारण है और इन मौतों में हो रही वृद्धि के आंकड़े इस बात का संकेत देते हैं कि विषाक्त उत्सर्जन बढ़ रहा है। शोध में पाया गया है कि विश्व स्तर पर हर साल जल प्रदूषण करीब चौदह लाख लोगों की मौत का कारण बनता है।

प्रदूषण को कम करने के लिए निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों के उपयोग पर बल दिया जाना चाहिए, क्योंकि सड़कों पर जितनी अधिक गाड़ियां चलेंगी, प्रदूषण उतना ही अधिक बढ़ेगा। बिजली बनाने के लिए जीवाश्म र्इंधन का उपयोग किया जाता है, जिससे निकलने वाला धुआं वातावरण को दूषित करता है। इससे बचने के लिए घरों में अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए। इलेक्ट्रिक वाहनों और सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों का अधिक से अधिक उपयोग बढ़ाना होगा। वातानुकूलन यंत्रों का प्रयोग कम से कम किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे निकलने वाली विषैली गैस वातावरण को दूषित करने के साथ-साथ ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाती है।

उद्योगों से निकलने वाले विषैले रासायनिक पदार्थों से न केवल नदियों का जल प्रदूषित होता, बल्कि उनमें रहने वाले जलजीवों को भी नुकसान पहुंचता है। इसलिए उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को बिना उपचार के नदियों में विसर्जित करने से रोकना बेहद जरूरी है। इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए। जले-अधजले शवों, मृत पशुओं, कूड़े-कचरे तथा कार्बनिक पदार्थों के नदियों में विसर्जन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम किया जाए, ताकि जल के साथ-साथ भूमि को भी प्रदूषण से बचाया जा सके। हम जितना अधिक प्रकृति से प्रेम करेंंगे, उतने ही सुरक्षित रहेंगे।

जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां केवल रात को सक्रिय होती हैं, उनके लिए प्रकाश प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इसके कारण पशु-पक्षियों की प्रजनन क्रिया में भी बाधा उत्पन्न होती है। पेड़-पौधों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। मनुष्य के डीएनए में विशेष प्रकार की सर्कैडियन लय होती है, जिससे यह तय होता है कि दिन के समय हमें प्रकाश की आवश्यकता है और रात के समय अंधेरे की। प्रकाश प्रदूषण के कारण प्राकृतिक सर्कैडियन लय बाधित होती है, तो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जिससे कैंसर, हृदय रोग, अवसाद, अनिद्रा आदि रोग पैदा हो सकते हैं।

दरअसल, पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र सूर्य के चक्रों पर निर्भर है और मानव निर्मित प्रकाश प्रदूषण पारिस्थितिकी तंत्र पर कुप्रभाव डालता है। इसलिए अनावश्यक रूप से कृत्रिम प्रकाश स्रोतों का अधिक उपयोग करने से बचना चाहिए। प्रकाश स्रोत इस प्रकार लगाए जाने चाहिए कि उनसे निकलने वाला प्रकाश निश्चित स्थानों पर केंद्रित रहे और आसपास के क्षेत्रों में न फैले। इस प्रकार कुछ विशेष उपायों के जरिए हम खुद को और अपने पर्यावरण को प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचा सकते हैं।