प्रहलाद सबनानी
कोरोना महामारी के बाद से दुनिया के तमाम देश विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। मुद्रास्फीति की समस्या कुछ देशों में तो बहुत गंभीर रूप ले चुकी है। कई जगह मुद्रास्फीति पिछले चालीस से पचास वर्षों के बीच रही सबसे अधिक दर को भी पार कर गई है। इस पर अंकुश लगाने के लिए कई विकसित देश लगातार ब्याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं, ताकि उपभोक्ता बैंकों से ऋण लेने के लिए निरुत्साहित और अपनी बचत को बैंकों में जमा करने को प्रोत्साहित हों।
इससे उपभोक्ता के खर्च करने की शक्ति कम होगी और इस प्रकार बाजार में उत्पादों की मांग कम हो जाएगी। बाजार में उत्पादों की मांग कम होने से उनकी कीमतों में कमी होगी और अंतत: मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाया जा सकेगा। पर, विकसित देशों के इस प्रकार के प्रयास बहुत सफल होते दिखाई नहीं दे रहे हैं और मुद्रास्फीति की दर में कुछ अधिक गिरावट दर्ज नहीं हो पा रही है। बल्कि, कुछ देशों, खासकर अमेरिका में ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि का कई उद्योगों पर बहुत विपरीत प्रभाव भी पड़ा है और उत्पादों की औसत लागत में वृद्धि दिखी है।
अमेरिका में सूचना प्रौद्योगिकी की कई कंपनियों को अपनी बढ़ी हुई लागत के चलते होने वाले नुकसान की भरपाई कर्मचारियों की छंटनी करके करना पड़ रहा है। एक समाचार के अनुसार, अमेरिका में अभी तक कई कंपनियों ने लगभग दो लाख कर्मचारियों की छंटनी की है। इसका सबसे अधिक प्रभाव भारतीय इंजीनियरों, जिन्हें एचवनबी वीजा प्राप्त है, पर दिखाई दे रहा है। वैश्वीकरण के इस युग में अमेरिका जैसे विकसित देश अगर अपनी ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा करते हैं, तो अन्य देशों को भी अपनी ब्याज दरों में वृद्धि करनी पड़ती है, ताकि डालर की तुलना में उनकी मुद्रा के अवमूल्यन को रोका या कम किया जा सके।
भारतीय रुपए की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अवमूल्यन से बचाने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बार फिर रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की बढ़ोतरी की है। पिछली मई के बाद से यह छठवीं बार वृद्धि की गई है। इस तरह अब तक ढाई सौ आधार अंकों की वृद्धि की जा चुकी है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों ने भी हाल में अपनी ब्याज दरों में पच्चीस से लेकर पचास आधार अंकों की वृद्धि की है। अमेरिका में फेडरल रिजर्व तो अप्रैल 2022 के बाद से अब तक सवा चार सौ आधार अंकों की वृद्धि अपनी ब्याज दर में कर चुका है।
इस तरह ब्याज दरों में तुलनात्मक रूप से अधिक वृद्धि किए जाने से इन देशों की मुद्रा भारतीय रुपए की तुलना में अधिक मजबूत होने लगती है और भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अगर इन देशों की मुद्रा की तुलना में कमजोर होता है, तो भारत में आयात किए जाने वाले उत्पाद महंगे होने लगते हैं, जिससे भारत में आयातित मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होने लगती है। इसलिए भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत बनाए रखना भी बहुत आवश्यक है।
चूंकि आयातित महंगाई दर के अलावा भारत में महंगाई की दर अब बहुत हद तक नियंत्रण में आ चुकी है, इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अब यह उम्मीद की जा रही है कि थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर मई और जून, 2023 में ऋणात्मक हो जाएगी। वहीं खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर अप्रैल 2023 में 4.5 प्रतिशत के नीचे आ जाने की संभावना है। भारत में महंगाई दर के नियंत्रण में बने रहने के चलते वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर रहने की संभावना व्यक्त की गई है।
यानी महंगाई दर पर नियंत्रण देश की विकास दर को आगे बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद में सात प्रतिशत की वृद्धि की संभावना व्यक्त की गई है। साथ ही, भारतीय स्टेट बैंक का मासिक मिश्रित सूचकांक भी दिसंबर 2022 के 55.9 के स्तर से बढ़कर जनवरी 2023 माह में 56.1 के स्तर पर पहुंच गया है, जो कि उत्पादन के क्षेत्र में उच्च वृद्धि दर को दर्शाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में वृद्धि का अर्थ हमेशा यह कतई नहीं होता कि इतनी ही दर से बैंकों द्वारा भी बाजार में कर्ज और जमाराशि की ब्याज दरों में वृद्धि कर दी जाएगी। रेपो दर में वृद्धि का प्रभाव केवल विभिन्न बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से लिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर पर पड़ता है और चूंकि यह बाजार को आभास दिलाने का काम भी करता है कि बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना बन रही है। मई 2022 से लेकर अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में ढाई सौ आधार अंकों की वृद्धि की है, जबकि बैकों द्वारा इसी अवधि के दौरान विभिन्न समयों की सावधिक जमा राशि पर केवल डेढ़ सौ आधार अंकों की वृद्धि की गई है और रेपो दर से जुड़े नए कर्जों पर केवल सवा सौ आधार अंकों की वृद्धि की गई है।
दरअसल, भारत में लगातार बढ़ रही विकास की गति के चलते बैंकों की ऋण राशि में वित्त वर्ष 2022-23 की 13 जनवरी, 2023 को समाप्त अवधि तक 13.90 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि 11.7 प्रतिशत की दर से अर्जित की गई है, जबकि इसी अवधि के दौरान जमा राशि में बारह लाख करोड़ रुपए की वृद्धि 7.3 प्रतिशत की दर से दर्ज हुई है। इस प्रकार, स्पष्ट रूप से तरलता पर कुछ दबाव दिखाई दे रहा है।
भारत में ऋण और जमा अनुपात भी लगभग पचहत्तर प्रतिशत तक आ गया है और औद्योगिक इकाइयों की उत्पादन क्षमता का दोहन भी लगभग पचहत्तर प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। इस तरह आने वाले समय में ऋण की मांग में और बढ़ोतरी की संभावना बन रही है। बैंकों द्वारा जमाराशि पर ब्याज दरों को इसलिए भी आकर्षक बनाया जा रहा है, ताकि बैंकों की जमाराशि में अधिक वृद्धि हो और इस प्रकार इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि होती रहे।
देश में वित्तीय अनुपालन में लगातार हो रहे सुधार के चलते वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा करों की उगाही में जबर्दस्त सुधार हुआ है। इससे केंद्र सरकार को इस वर्ष बाजार से ऋण लेने की कम आवश्यकता महसूस हुई है, जिसके कारण भी देश में तरलता की समस्या उत्पन्न नहीं हुई है और बैंकों के ऋणों में भारी वृद्धि के बावजूद अभी तक तरलता का आधिक्य बना हुआ है।
विकसित देशों के बारे में अभी तक कहा जाता रहा है कि उनमें ब्याज दर में वृद्धि या कमी का प्रभाव मुद्रास्फीति पर तुरंत दिखाई देने लगता है, मगर अभी देखा जा रहा है कि पिछले लगभग एक वर्ष से इन देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि का प्रभाव मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के मामले में कारगर नहीं हो पा रहा है। मगर भारत जैसे विकासशील देश में ब्याज दर में की गई वृद्धि का असर मुद्रास्फीति पर तुलनात्मक रूप से कुछ तेजी से होता दिखाई दे रहा है। इसके पीछे अन्य कई कारणों के अलावा केंद्र सरकार की राजकोषीय नीति और भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में परस्पर तालमेल एक महत्त्वपूर्ण कारण है।