रंजना मिश्रा
हाल ही में तुर्किये और सीरिया में रिक्टर पैमाने पर 7.8 की तीव्रता के भूकंप ने भयंकर तबाही मचाई है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, तुर्किये में 17.9 किलोमीटर की गहराई में उत्पन्न हुए भूकंप का केंद्र सीरिया की उत्तरी सीमा के पास दक्षिणी तुर्किये था। तुर्किये में आए भूकंप की एक विशेष बात यह है कि यहां केवल एक भूकंप नहीं आया, बल्कि एक बड़े झटके के बाद सौ से अधिक छोटे-छोटे झटके देखने को मिले जिनकी तीव्रता चार-पांच के आसपास थी। हालांकि कुछ झटके ऐसे भी रहे जिनकी तीव्रता 7.5 से ज्यादा थी।
भूकंप आने के बाद अक्सर कई घंटे या कई दिन तक झटके आते रहते हैं। वैसे तो ये झटके मुख्य भूकंप की तुलना में कमजोर होते हैं, लेकिन इनकी वजह से जान माल की क्षति और बढ़ती है। किसी ‘फाल्ट’ यानी सतह के नीचे दो चट्टानों के बीच विभाजन क्षेत्र में एक बड़े भूकंप के बाद आने वाले झटके भी दरअसल भूकंप की ही कड़ी होते हैं।
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, तुर्किये का बड़ा भूकंप और उसके बाद के सभी झटके सतह के करीब से उत्पन्न हुए थे। इसी कारण ये अधिक विनाशकारी थे। दरअसल भूकंप सतह से जितने करीब उत्पन्न होता है, नुकसान उतना ही अधिक होता है। जानकारों के अनुसार, इस भयंकर भूकंप के कारण तुर्किये दस फीट तक खिसक गया है। ऐसा यूरेशियन और अफ्रीकी टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने के कारण हुआ है।
क्या भूकंप का अनुमान लगाया जा सकता है? इसका उत्तर है कि सैद्धांतिक रूप से हां, लेकिन व्यावहारिक रूप से नहीं। दरअसल भूकंप की उत्पत्ति वाले स्थान को अवकेंद्र (हाइपोसेंटर) और पृथ्वी की सतह के जिस स्थान को भूकंप सबसे पहले छूता है, उस स्थान को उपरिकेंद्र (एपिसेंटर) कहते हैं। चूंकि अवकेंद्र और उपरिकेंद्र के बीच बहुत अंतर होता है, इसलिए भूकंपीय तरंगों को अवकेंद्र से उपरिकेंद्र सेंटर तक पहुंचने में बहुत समय लगता है। इसके अलावा भूकंपीय तरंगों की गति प्रकाश की गति से बहुत कम होती है।
भूकंपीय तरंगें पांच से तेरह किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से गति करती हैं, जबकि प्रकाश की गति तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकंड है। स्पष्ट है कि दोनों के बीच बहुत ज्यादा अंतर होता है। इसी अंतर का फायदा उठाते हुए हम भूकंप का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। लेकिन यह अंतर बहुत ही कम यानी कुछ नैनो सेकेंड का ही होता है। इसका कोई फायदा नहीं क्योंकि अगर एक सेकंड पहले ये पता चल भी जाए कि भूकंप आने वाला है तो कुछ किया नहीं जा सकता, क्योंकि क्षण मात्र में हजारों लोगों तक इसकी सूचना पहुंचाना और उन्हें सुरक्षित जगह भेजना नामुमकिन है।
सवाल उठता है कि तुर्किये में इतने भूकंप क्यों आते हैं? दरअसल, तुर्किये की जटिल भौगोलिक संरचना उसे भूकंप के लिहाज से बहुत ज्यादा संवेदनशील बना देती है। इसका अधिकांश हिस्सा मुख्य रूप से अनातोलिया के ‘टेक्टोनिक ब्लाक’ पर स्थित है। इसके अलावा यह तीन तरफ से तीन बड़ी टेक्टोनिक प्लेट से घिरा हुआ है। ये हैं अफ्रीकन प्लेट, अरेबियन और यूरेशियन प्लेट। अनातोलियन प्लेट पर इन तीनों प्लेट की ओर से दबाव पड़ता है तो इसमें हलचल होती है जिससे तुर्किये में अक्सर भूकंप आते हैं।
अभी तक ऐसी कोई भी तकनीक नहीं जिससे भूकंप आने से पहले लोगों को सचेत किया जा सके। किंतु ऐसा देखा गया है कि भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पहले जीव-जंतुओं के माध्यम से हमें कुछ संकेत मिलने लगते हैं। शोध में पाया गया है कि पशु-पक्षियों और जलचरों यानी मछलियों और मेंढकों आदि को भूकंप आने का आभास पहले ही हो जाता है। कुत्ते, बिल्ली, हाथी, गाय, भैंस जैसे जानवर भूकंप की तरंगों को महसूस करके बेचैनी से भागने लगते हैं। पक्षियों को भी बेचैनी से आकाश में उड़ते हुए देखा गया है। दरअसल भूकंप की तरंगों को महसूस करने की क्षमता मनुष्यों से अधिक पशु-पक्षियों में पाई जाती है, क्योंकि हम एक खास फ्रिक्वेंसी से ऊपर या नीचे की तरंगों को सुन या महसूस नहीं कर पाते।
भारत का करीब 59 फीसद हिस्सा अलग-अलग तीव्रता के भूकंपों के लिए संवेदनशील है। देश के संपूर्ण भूभाग को चार भूकंपीय क्षेत्रों में बांटा गया है। देश का लगभग ग्यारह फीसद हिस्सा जोन-पांच में, अठारह फीसद जोन-चार में, तीस फीसद जोन-तीन में और बाकी का हिस्सा जोन-दो में आता है। जोन-पांच में नौ या इससे अधिक तीव्रता वाले भूकंप, जोन-चार में आठ तीव्रता वाले भूकंप, जोन-तीन में सात तीव्रता वाले भूकंप और जोन-दो में छह या इससे कम तीव्रता वाले भूकंप का खतरा सबसे अधिक रहता है।
भूकंपीय रूप से सबसे सक्रिय क्षेत्र जोन पांच है, जबकि जोन दो सबसे कम सक्रिय है। जोन-एक के अंतर्गत पश्चिमी मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और ओड़ीशा के हिस्से आते हैं, जहां भूकंप का सबसे कम खतरा है। तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा, पश्चिम बंगाल और हरियाणा जोन-दो के अंतर्गत आते हैं, जहां भूकंप आने की संभावना रहती है। केरल, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी राजस्थान, पूर्वी गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा जोन-तीन के अंतर्गत हैं, यहां भूकंप के झटके आते रहते हैं।
मुंबई, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी गुजरात, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाके और बिहार-नेपाल सीमा के इलाके जोन-चार के अंतर्गत आते हैं, यहां रुक-रुक कर भूकंप आते रहते हैं। जोन-पांच के अंतर्गत गुजरात का कच्छ का इलाका, उत्तरांचल का एक हिस्सा और पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्य शामिल हैं। नेशनल सेंटर फार सिस्मोलाजी के अनुसार, साल 2022 में भारत में नौ सौ से अधिक भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। इनमें कुछ भूकंपों की तीव्रता चार से कम थी। इसलिए कम तीव्रता के कारण लोगों को इनका पता नहीं चला। आठ से अधिक तीव्रता वाला भूकंप बहुत अधिक विनाशकारी होता है।
भूकंप के कारण इमारतें गिरने से जान-माल का अत्यधिक नुकसान होता है। दुनिया में इमारतों का निर्माण अलग-अलग ढंग से किया जाता है। आजकल की इमारतें अधिक टिकाऊ नहीं होतीं और भूकंप के झटकों से ताश के पत्तों की तरह ढह जाती हैं। आखिर ये इमारतें भूकंप के झटके क्यों नहीं झेल पातीं, यह समझना बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में उन्हें अधिक मजबूत बनाया जा सके। आधुनिक निर्माण सामग्री जैसे कंक्रीट आदि से बनी हुई इमारतें भी भूकंप के झटकों को नहीं झेल पातीं। इसका कारण यही है कि उनका निर्माण सही प्रकार से नहीं हुआ है।
इंजीनियरिंग की सही जानकारी के बिना मजबूत इमारतें नहीं बनाई जा सकतीं। दरअसल मजबूती के मामले में इमारत की डिजाइन काफी मायने रखती है। अक्सर देखा गया है कि जहां इमारतें ठीक तरह से नहीं बनी होतीं, वहां भूकंप के दौरान ज्यादा मौतें होती हैं। इसलिए भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में अधिक नुकसान से बचने के लिए रिहाइशी इमारतों की गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। शहरी आबादी बढ़ती जा रही है और भूकंप जैसी आपदाओं से मौत का खतरा भी बढ़ रहा है। ऐसे में सुरक्षित इमारतें बनाना बहुत जरूरी हो गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप के दौरान ऊंची इमारतें अपनी ऊंचाई के कारण ज्यादा टिकाऊ रहती हैं, जबकि कम या मध्यम ऊंचाई की इमारतें भूकंप या भूकंप के झटकों को लेकर ज्यादा संवेदनशील होती हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि सौ मंजिला इमारतें भूकंप की आवृत्ति से बाहर होती हैं। अगर कड़े परीक्षण और बेहतर डिजाइन से ऊंची इमारतों को निर्मित किया जाए तो ये बहुत हद तक भूकंपरोधी साबित होंगी। भविष्य में भूकंप से होने वाले विनाश को रोकने के लिए भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाली तकनीक विकसित करनी होगी और साथ ही इससे होने वाले नुकसान को कम करने तरीके खोजने होंगे।