ब्रह्मदीप अलूने
पिछले आठ महीने से जारी राजनीतिक अस्थिरता और इस साल की बाढ़ ने देश को आर्थिक तौर पर बहुत नुकसान पहुंचाया है। डालर के मूल्य में वृद्धि के कारण वाणिज्यिक और आर्थिक घाटा बढ़ रहा है, वहीं देश के मुद्रा विनिमय कोष में भी काफी कमी आई है।
पाकिस्तान को अगले कुछ महीनों के दौरान विदेशी कर्ज के मद में अरबों डालर की अदायगी करनी है, जबकि उसके केंद्रीय बैंक में विदेशी मुद्रा छह अरब डालर के करीब है। यह पाकिस्तान की अपनी संपत्ति नहीं है, बल्कि चीन, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे मित्र देशों की मदद से प्राप्त धनराशि है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर भी पाकिस्तान की कूटनीति विवादों में नजर आती है। उसके पड़ोसियों से संबंध बद से बदतर हो गए हैं। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आतंकी हमले बढ़े हैं और इससे पाकिस्तान का आंतरिक सुरक्षा संकट गहरा गया है।
इमरान खान को हटा कर सत्ता में आई आठ महीने पुरानी शहबाज शरीफ की सरकार अपने खिलाफ अभूतपूर्व प्रदर्शनों से परेशान है। इमरान खान ने ‘लांग मार्च’ को हथियार बनाकर जनता का भरपूर समर्थन हासिल कर लिया है। धर्म के साथ राष्ट्रवाद का घालमेल कर लोगों की भावनाओं को आक्रामक तरीके से उभारा है। पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा की सेवानिवृत्ति की घोषणा के साथ ही आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान का युद्ध विराम से हटने की घोषणा कोई संयोग नहीं है। इसे लोकतांत्रिक सरकार को अस्थिर करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। यह भी दिलचस्प है कि तहरीक-ए-तालिबान खैबर-पख्तूनख्वा सूबे में बहुत मजबूत है और यह इलाका इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ का गढ़ माना जाता है। इमरान खान के सत्ता में रहते तहरीक-ए-तालिबान ने खामोशी बनाए रखी और शहबाज शरीफ के सत्ता में आते ही देश के कई इलाकों में आतंकी हमले शुरू हो गए।
पाकिस्तान इसके लिए अफगानिस्तान को जिम्मेदार ठहरा रहा है, जबकि अफगान तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है, वह पाकिस्तान की अपनी आंतरिक समस्या है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाक-अफगानिस्तान सीमा पर हालात तनावपूर्ण रहे हैं। तालिबान और पाकिस्तान के प्रतिबंधित आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के मजबूत संबंध रहे हैं। अफगान-पाकिस्तान सीमा पर बाड़ को उखाड़ फेंकने और सीमा पार से पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में हमले को लेकर पाकिस्तान, अफगानिस्तान पर निशाना साधता रहा है।
तालिबान और भारत के बीच सामान्य होते रिश्तों को लेकर भी पाकिस्तान असहज है। तालिबान चाहता है कि भारत की कंपनियां अफगानिस्तान में वापस लौटकर उन विकास कार्यों को पूरा करें, जिन्हें वे अधूरा छोड़कर चली गई थीं। अब तालिबान ने आश्वासन दिया है कि अगर भारत अफगानिस्तान में परियोजनाएं शुरू करता है, तो भारतीयों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी होगी। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर इस समय गहरा तनाव है।
तालिबान, पाकिस्तान की राजनीतिक और वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं को भली भांति जानता है और उसे पाकिस्तान का सामरिक साधन बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है। दूसरी तरफ, अफगानिस्तान का एक बड़ा तबका शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान में रहता है, जो सस्ता मजदूर बनकर गरीब पाकिस्तानियों के रोजगार को हड़प रहा है। पाकिस्तान के आम शहरी में इसे लेकर बड़ा आक्रोश है और यह सरकार की मुश्किलें बढ़ाता है।
पाकिस्तान में डालर की सरकारी दर 224 से 225 रुपए तक पहुंच चुकी है और इस दावे को बल मिला है कि पाकिस्तान दिवालिया होने के करीब है। देश में डालर लाने वाले तीन महत्त्वपूर्ण स्रोत- निर्यात, विदेशों से भेजी गई मुद्रा और विदेशी पूंजी निवेश- पिछले कुछ महीनों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था का पहिया और धीमा घूमेगा और औद्योगिक क्षेत्र में गतिविधियों में सुस्ती आने की वजह से कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है, जिससे बेरोजगारी का संकट और गहरा होगा। डालर की अनुपलब्धता और सुरक्षा के खतरों के चलते कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां पाकिस्तान छोड़कर जाने की तैयारी में हैं और इससे पाकिस्तान का पढ़ा-लिखा तबका गुस्से में है। गरीबों का जीवन कठिन हो गया है।
खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब और बलूचिस्तान में तहरीक-ए-इंसाफ की सरकार है। शहबाज शरीफ गेहूं का संकट पैदा होने के लिए इमरान खान को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इन सबके बीच वैश्विक बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों के चलते पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी दबाव है, जो उसे संकट की कगार पर धकेल रहा है।
पाकिस्तान, चीन-पाकिस्तान आर्थिक कारिडोर यानी ‘सीपेक’ को देश के भविष्य की योजना बताता है, लेकिन उसका बलूचिस्तान में जिस प्रकार विरोध हो रहा है, उससे यह योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही है। सीपेक चीन के महत्त्वाकांक्षी ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत बनाए जा रहे व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें सड़कों, बिजली संयंत्रों, रेलवे लाइनों और औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण शामिल है। बलूच लोग इसे प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की योजना के रूप में देखते हैं और इसीलिए वह इन इलाकों में तैनात चीनी और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर हमले करते रहे हैं। बलूचिस्तान में आने वाले ग्वादर बंदरगाह में नई मशीनरी लग रही है, सड़कों, नई इमारतों और कालोनियों का निर्माण हो रहा है, जबकि ग्वादर के रहने वाले पीने के पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। चीन की कर्ज पर आधारित कूटनीति के जाल में पाकिस्तान बुरी तरह फंस चुका है।
पाकिस्तान की मौजूदा असेंबली का कार्यकाल अक्तूबर 2023 तक है। वहां जिस प्रकार विभिन्न मोर्चो पर शहबाज शरीफ की सरकार विरोध झेल रही है उससे आने वाले आम चुनावों में उसकी स्थिति बहुत खराब हो सकती है। पाकिस्तान में इमरान खान की राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है और इस बात की पूरी संभावना है कि उनकी सरकार केंद्र में पूरे बहुमत से वापसी करेगी। इमरान खान, शरीफ और भुट्टो परिवार पर तो भ्रष्टाचार को लेकर निशाना साधते ही रहे हैं, सेना की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हैं। पहली बार देखा जा रहा है कि वहां की आम जनता ने सेना के खिलाफ व्यापक प्रदर्शनों में भाग लिया है। जाहिर है यह वर्ष पाकिस्तान के लिए निर्णायक हो सकता है।
इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने की सत्तारूढ़ दल, अमेरिका और सेना की कोशिशें पाकिस्तान में गृहयुद्ध को भड़का सकती हैं। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से परेशान आम आदमी बदलाव चाहता है और वह इमरान खान पर ज्यादा भरोसा दिखा रहा है। बहरहाल, पाकिस्तान में स्थितियां बेहद विकट हैं और देश को संतुलित रखने के ईमानदार प्रयास न तो सेना कर रही है, न ही सत्तारूढ़ दल। यहां तक कि जनता की आशाओं के केंद्र बने इमरान खान के इरादों पर भी पूर्ण भरोसा नहीं किया जा सकता है।