अरविंद मिश्रा
कोरोना काल हो या सामान्य वक्त, अस्पताल हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। पिछले एक साल से कोरोना जनित आपदा ने अस्पतालों और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के प्रति हमारे नजरिए को मथने का काम किया है। एक ओर जहां कोरोना के इस अदृश्य ज्वालामुखी ने चिकित्सा की सार्वजनिक व्यवस्था को हतोत्साहित करने वाली नीतियों से लेकर लेकर निजी अस्पतालों की मनमानी को उजागर किया है, वहीं स्वास्थ्य क्षेत्र को नई संजीवनी देने के प्रयासों को भी बल दिया है। निस्संदेह कोरोना की इस लड़ाई में अस्पतालों की भूमिका अग्रणी है। संक्रमितों की बढ़ती संख्या की वजह से अस्पताल अपनी क्षमता से कई गुना अधिक काम कर रहे हैं। जब संक्रमण का दायरा प्रतिदिन चार लाख की संख्या को पार कर रहा है, ऐसे समय में अस्पतालों, कोविड देखभाल केंद्रों और एकांतवास केंद्रों में आगजनी बढ़ती घटनाएं नई चुनौती खड़ी कर रही हैं। पिछले कई वर्षों के मुकाबले इस साल अस्पतालों में आगजनी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। हालात की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय को राज्य सरकारों को निर्देश देना पड़ा है कि कोविड अस्पतालों में आग की घटनाएं रोकने के लिए पर्याप्त इंतजाम किए जाएं। साथ ही यह भी कि बढ़ती गर्मी को देखते हुए अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं से निबटने के लिए पूर्व तैयारी रखी जाए।
अस्पतालों में आग की घटनाओं की भयावहता का अंदाजा विगत कुछ महीनों के भीतर हुई दर्दनाक घटनाओं से लग जाता है। अगस्त 2020 से अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों से अस्पतालों में आगजनी की दो दर्जन से अधिक बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कुछ समय पहले गुजरात के भरूच शहर में कोविड अस्पताल में आग लगने से अठारह लोगों की मौत हो गई थी। सूरत में पिछले महीने आयुष अस्पताल के आइसीयू वार्ड में आग लगने से चार कोविड मरीज मर गए। पिछले महीने ही मुंबई के एक अस्पताल में आग से पंद्रह लोगों को जान गंवानी पड़ी। साल के शुरुआत में ही सूबे के भंडारा जिले में सरकारी अस्पताल में आग लगने से दस नवजात शिशुओं के मौत की विचलित करने वाली तस्वीरें सामने आर्इं। पिछले महीने महाराष्ट्र के ही ठाणे और नागपुर में ऐसे ही हादसे हुए और कोविड मरीज मारे गए। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में निजी अस्पताल में आग पांच कोरोना संक्रमित मरीजों को लील गई। यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं हो जाती। चिकित्सा केंद्रों में गंभीर हादसों का रूप लेती आग के कई अहम कारक हैं। इनमें मानवीय लापरवाही और अस्पताल के ढांचे को विकसित करते समय अग्नि सुरक्षा उपायों की अनदेखी सबसे प्रमुख हैं। इन कारकों को हम तात्कालिक और दीर्घकालिक रूप में पाते हैं।
इस दो राय नहीं कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच कोविड अस्पतालों पर क्षमता से कई गुना बोझ बढ़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक दूसरी लहर के साथ कई अस्पताल बिस्तर, चिकित्सा उपकरण और कुछ हद तक कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने में सफल रहे हैं। लेकिन समानांतर रूप से आग से होने वाले हादसों से बचाव के लिए इंतजाम दुरुस्त करने को कहीं प्राथमिकता नहीं दी गई। ज्यादातर अस्पतालों में बिजली का भार अचानक बढ़ जाने से आपूर्ति व्यवस्था अचानक ध्वस्त हो रही है। अस्पतालों में केंद्रीकृत वातानुकूलन संयंत्र, आॅक्सीजन संयंत्र सहित दूसरे कामों में बड़े पैमाने पर बिजली की खपत बढ़ गई है। ऐसे में तारों पर भार बढ़ता है, वे ज्यादा गरम हो जाते हैं और इसी से चिंगारी पैदा होती है। यही आग लगने की बड़ा कारण बनती है। कई स्थानों पर विद्युत के अति संवेदनशील सुचालक मेडिकल उपकरणों के संचालन में गैर प्रशिक्षित अमले को लगा दिया जाता है। कई बार यह छोटी-सी लापरवाही भी बड़े हादसे को न्योता देने के लिए पर्याप्त होती है। आगजनी की घटनाओं को तकनीकी गड़बड़ी जैसे तारों में चिंगारी आदि करार देकर असल वजहों से मुंह मोड़ लेने की प्रवृत्ति से समस्या जस की तस बनी रहती है।
इस विपत्ति काल में मेडिकल आॅक्सीजन की मांग तेजी से बढ़ी है। इसके उपयोग और परिवहन से जुड़ी सावधानियां बहुत जरूरी हैं। आॅक्सीजन अत्यतं जव्लनशील गैस होती है और एक चिंगारी भी बड़ा विस्फोट कर सकती है। विशेषरूप से गैर सरकारी संगठनों द्वारा बनाए जा रहे कोविड केंद्रों में जहां आॅक्सीजन सिलेंडर उपयोग में लाए जा रहे हैं, वहां आग से निपटने के पुख्ता उपायों पर बल देना होगा। पिछले एक महीने के भीतर देश के कई हिस्सों में कोविड अस्पतालों में हुई आगजनी की घटनाएं सावधानी बरतने का संकेत कर रही हैं। तात्कालिक उपायों के रूप में अस्पतालों को बिना समय गंवाए आग बुझाने के लिए पर्याप्त अग्निशमन यंत्रों जैसे फायर वॉल, आॅक्सीजन एक्सटिंग्विशर, स्प्रिंकलर, फायर हाइड्रेंट, हौजरील, फायल अलार्म, दमकल, जल की उपलब्धता व आपूर्ति की व्यवस्था को समय रहते दुरुस्त करना चाहिए। स्थानीय प्रशासन का यह दायित्व बनता है कि संकट की इस घड़ी में अस्पतालों में अग्निशमन, जल की उपलब्धता और आपदा प्रबंधक कार्यबल की तैनाती जैसी बुनियादी जरुरतों का इंतजाम करे। आग की घटनाओं से बचाने के लिए अग्निशमन दस्ते द्वारा समय-समय पर मॉकड्रिल के जरिए लोगों में जागरूकता के प्रयास किए जाते हैं। बेहतर होगा कि मॉकड्रिल कार्यक्रमों में अस्पतालों के आसपास रहने वाले लोगों को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाए। आपदा प्रबंधन का कोई भी कार्य जनसहभागिता के बिना अधूरा ही माना जाता है।
ऐसा नहीं है कि हमारे यहां नियम और मानकों का अभाव है। भारतीय मानक ब्यूरो ने तो बाकायदा भवन निर्माण संहिता तैयार बना रखी है। हालांकि अनिवार्य न होने के कारण इन मानकों को लागू करना या न करना राज्यों की इच्छा पर निर्भर करता है। दो साल पहले यह मुद्दा लोकसभा में उठ भी चुका है। तब राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता को अनिवार्य बनाने की मांग की गई थी। 1970 में तैयार राष्ट्रीय भवन संहिता में 1983, 1987, 2005 में संशोधन कर उसे प्रभावी बनाया गया। फिर 2016 में इसे संशोधित किया गया। इस संहिता के भाग-4 में अस्पताल जैसे संस्थानों में अग्निशमन जैसे हादसों से बचाव के लिए विस्तृत निवारक उपाय बताए गए हैं। इसके लिए भवन सामग्री और उसकी परीक्षण पद्धतियों के मापदंडों के लिए लगभग एक हजार तीन सौ मानकों का उल्लेख है। एक साधारण व्यक्ति भले ही भवन निर्माण संहिता के प्रति जागरूक न हो, लेकिन अस्पतालों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण के दौरान इसे अनिवार्यता के साथ लागू करना अनिवार्य होना चाहिए। दुर्भाग्य से राज्यों के लोक निर्माण विभागों को राष्ट्रीय भवन संहिता के प्रावधानों के प्रति जो गंभीरता दिखानी चाहिए, वह नदारद ही नजर आती है। कुछ मुठ्ठीभर सरकारी और निजी अस्पतालों को छोड़ दें, तो इनके निर्माण के दौरान अग्नि सुरक्षा की रस्मअदायगी के अलावा यहां राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता के प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है।
अस्पतालों में होने वाली आग की घटनाओं को फॉरेंसिक विशेषज्ञ मानवीय लापरवाही और नियमों के प्रति उदासीनता का नतीजा करार देते हैं। बावजूद इसके कुछ मामलों को छोड़ दें तो राज्यों की एजेंसियों से मिलीभगत के कारण दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है। यदि सक्षम प्राधिकार ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करे तो निश्चित रूप से मानवीय जीवन को संकट में डालने वाले लोगों व संस्थानों की जवाबदेही तय की जा सकेगी। अग्निकांड की घटनाओं को लेकर बरती गई अस्पताल प्रबंधनों और स्थानीय प्रशासन की जरा-सी लापरवाही नई चुनौती को जन्म देती है। बेहतर होगा अस्पतालों में अग्निशमन से जुड़ी बुनियादी आवश्यकताओं को समय रहते दुरस्त कर लिया जाए। ध्यान रहे, अक्सर विपत्ति एक साथ कई मोर्चे पर आती हैं। संकट के समय चुनौतियों से मुंह फेरने के बजाय उनका समाधान ही सबसे अच्छा विकल्प है।