रसाल सिंह
पुरानी कहावत है- ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’। इस कहावत को अपना कर मानव समाज तमाम तरह की दुर्घटनाओं से बचता रहा है। लेकिन कोरोना-काल में हम इस कहावत को भूल गए। शुरुआत में तो हमने खूब सावधानी बरती। इसीलिए भारत में कोरोना का प्रकोप भी सीमित ही रहा। केंद्र और राज्य सरकारों, नागरिक समाज और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उठाए गए एहतियाती कदमों और आवश्यक व्यवहार ने भारत में सर्वाधिक जनहानि होने की वैश्विक संस्थाओं और विशेषज्ञों की ‘भविष्यवाणी’ को गलत साबित कर दिया था। इन संस्थाओं और विशेषज्ञों ने भारत की बड़ी आबादी, अशिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे की चिंताजनक अपर्याप्तता के कारण महामारी का प्रकोप सर्वाधिक रहने की आशंका जताई थी। पिछले साल महामारी को काबू कर पाना इसलिए संभव हो सका था क्योंकि हम कोरोना के खिलाफ सजग और सावधान थे। कोरोना संक्रमण से बचाव हमारी पहली प्राथमिकता था। लेकिन बाद में जिस तरह बेपरवाह होते चले गए, उसका खमियाजा आज भुगत रहे हैं। यह समाज और सरकार दोनों स्तरों पर हुआ।
वर्ष 2020 की समाप्ति होते-होते और कोरोना संक्रमण दर के नीचे आते-आते हम निश्चिंत हो गए थे। यही निश्चिंतता बाद में घोर लापरवाही बनती गई। यही सबसे बड़ी गलती थी। जब तक शत्रु पूरी तरह से खत्म न हो जाए, तब तक जीत अपूर्ण होती है। महाभारत का सबक भी यही है। लेकिन कोरोना काल में भारत के लोग इस सबक को भूल गए। आर्थिक सर्वेक्षण (2020-21) जैसे पूवार्नुमानों ने भी कोरोना के प्रति सरकारों और लोगों को लापरवाह बनाया। इस सर्वेक्षण में स्पष्ट तौर पर यह कहा गया था कि साल 2021 में टीकाकरण शुरू होने के बाद भारत में कोरोना की दूसरी लहर की आशंका कम हो जाएगी। आज यह पूवार्नुमान गलत साबित हो गया है और भारत कोरोना की पहली लहर से कहीं अधिक भयानक दूसरी लहर की चपेट में है।
भारत में इस दूसरी लहर के कारणों पर विचार करना भी आवश्यक है। हरिद्वार में कुंभ का मेला, पांच राज्यों- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुदुचेरी में विधानसभा चुनाव, उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव, एक साल से रुके हुए विवाह आदि सामाजिक कार्यक्रमों ने महामारी को फिर से सिर उठाने का मौका दे दिया। अत्यंत व्यापक और भारी भीड़-भाड़ वाले ऐसे आयोजनों ने संक्रमण के संवाहक का काम किया। इसके अलावा कोरोना से बचाव के लिए सरकार की ओर से निर्धारित उपायों और नियमों के उल्लंघन ने भी हालात खतरनाक बना डाले। इन आयोजनों में बरती गई लापरवाही और गैर-जिम्मेदार रवैए ने आम जनमानस में महामारी के प्रति भय और गंभीरता को खत्म कर डाला। नतीजा यह हुआ कि लोग इसे ‘सामान्य खांसी-जुकाम’ मानने लगे।
कोरोना के प्रति समाज की गंभीरता, सजगता और सावधानी इस संक्रमण के खिलाफ लड़ाई का मूलमंत्र है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में लोग कोरोना-पूर्व की मन:स्थिति और जीवनशैली की ओर लौटने लगे। वे भूल गए कि कोरोना से बचाव के उपाय अब नए सामान्य का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। ‘दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी’, ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ जैसे संदेश लफ्फाजी बन कर रह गए। महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के जीवन-व्यवहार से हमने सीखा था कि कथनी और करनी के अद्वैत से ही नारे सार्थक और सजीव होते हैं। लेकिन धीरे-धीरे लोगों का मानस ‘न दवाई जरूरी, न कड़ाई जरूरी’ जैसा बनता चला गया और संक्रमण बेकाबू होता गया। टीवी, रेडियो और अखबारों में हम ये नारे देख-सुन रहे थे। लेकिन व्यवहार में इनका सख्ती से पालन होते नहीं दिखा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में हजारों लोग को रैलियों, सभाओं और रोड शो जैसे आयोजन में शामिल होते रहे। जाहिर है, ऐसे हालात में तो संक्रमण फैलने को रोका नहीं जा सकता था।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव भी संक्रमण की रफ्तार को बढ़ाने वाले साबित हुए। पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले एक सौ तीस से ज्यादा शिक्षक संक्रमण की चपेट में आकर जान धो बैठे। इन्हीं सबके मद्देनजर मद्रास उच्च न्यायालय ने दो मई को मतगणना वाले दिन कोरोना नियमों का अनुपालन सुनिश्चित कराने संबंधी याचिका की सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग के खिलाफ तल्ख टिप्पणियां की। अदालत ने चुनाव आयोग की लापरवाही और गैर-जवाबदेही को रेखांकित करते हुए उसे निर्दोष नागरिकों की ‘हत्या का मुकद्दमा’ दर्ज करने योग्य माना है। संभवत: चुनाव आयोग मानव-जीवन की नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध और सीमित था।
दूसरी लहर के खतरे को लेकर विशेषज्ञों की बारंबार चेतावनी को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। थोड़े से हालात सामान्य होने के बाद से ही सरकार और लोग यह मान बैठे थे कि हालात अब काबू में हैं और हम महामारी से मुक्ति पाने की ओर बढ़ चले हैं। केंद्र सरकार की ओर से बार-बार निश्चिंतता पैदा करने वाले ऐसे बयान आते रहे जिनसे लग रहा था कि हालात अब सामान्य हो रहे हैं। आहिस्ता-आहिस्ता केंद्र और राज्यों ने ज्यादातर पाबंदियों को हटा लिया। जिम, रेस्टोरेंट, तरणताल, सार्वजनिक परिवहन सेवाएं सब पहले की तरह ही चलने लगीं। शहरों में साप्ताहिक बाजार लगने लगे। इन सबका नतीजा यह हुआ कि भीड़ तेजी से बढ़ने लगी और लोगों ने बचाव संबंधी उपायों को त्याग दिया। इस लापरवाही ने दूसरी लहर को न्योता दिया।
नतीजा आज सामने है। देश के निजी और सरकारी अस्पतालों में जिस तरह से रोजाना मरीज पहुंच रहे हैं, वह हिला देने वाला है। बिस्तर नहीं हैं, ऑक्सीजन और जीन रक्षक प्रणाली नहीं हैं, आवश्यक दवाइयों का अभाव है। इनके अभाव में लोग दम तोड़ रहे हैं। आज भारत महामारी की मार झेलने वालों में दुनिया में सबसे ऊपर है।
तमाम वैज्ञानिक और विशेषज्ञ बता रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में विषाणु के जो नए रूप सक्रिय हैं, वे पिछली बार से ज्यादा खतरनाक हैं। सर्वप्रथम तो भारत की जलवायु और पारिस्थितिकी इनके अनुकूल है। ये लक्षणहीन हैं। इसलिए सही समय पर संक्रमण की पहचान, रोकथाम और उपचार चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। साथ ही, विषाणु की मारक क्षमता भी पिछली बार से अधिक है। इसलिए संक्रमण दर और मृत्यु दर के आंकड़े भी हैरान करने वाले हैं। आज देश को पिछले साल से अधिक सावधान, संगठित और संकल्पबद्ध होने की आवश्यकता है। ऐसा करके ही हम इस हारी हुई बाजी को फिर से जीत सकते हैं। महामारी से निपटने में टीकाकरण अभियान की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। लेकिन अभी तक भी टीकाकरण काफी सीमित ही है।
चौदह करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है। लेकिन आबादी को देखते हुए यह कोई बड़ा हासिल नहीं तो नहीं कहा जा सकता। इस अभियान को गति देने के लिए बहुस्तरीय कदम उठाने की आवश्यकता है। टीकों के उत्पादन से लेकर टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। एक मई से अठारह साल से ऊपर के सभी लोगों का टीकाकरण करने का फैसला हो गया है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जल्दी ही पूरी आबादी को टीका लगाने के लिए बड़े स्तर पर संसाधनों और टीकाकरण केंद्रों की जरूरत है। इनका बंदोबस्त करना भी केंद्र और राज्यों सरकारों के लिए बड़ी चुनौती है। यह भी याद रखना होगा कि सिर्फ टीकाकरण ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही ‘दवाई भी, और कड़ाई भी’ वर्तमान परिस्थितियों में सर्वाधिक अपेक्षित व्यवहार है। और सबसे जरूरी है कि राज्य स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे को मजबूत और व्यापक बनाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर पर्याप्त निवेश करें। प्रत्येक नागरिक सरकारी नियमों और निदेर्शों का पालन करके ही कोरोना के खिलाफ जारी जंग में अपना योगदान दे सकता है।