मनोज कुमार मिश्र
कोरोना महामारी के काल में सबसे बड़ी चुनौती खुद को जिंदा रखने की है,तो उसी तरह की चुनौती रोजी-रोटी, सामाजिक सरोकार और सामाजिक ताना-बाना बचाए रखने की है। करीब महीने भर पहले दिल्ली के एक बड़े डॉक्टर ने कहा कि पिछले साल को कोरोना ने अपने आतंक की परछाईं दिखाई थी। उसे महामारी कहा भर गया। दुनिया के कई अमीर देशों में वह महामारी बनकर कहर बरपा गया लेकिन अपने देश में तो इस साल सही मायने में कोरोना महामारी बनकर आतंक मचा रहा है। हर रोज अपनों, अपनों के परिचितों समेत असंख्य लोगों के मरने और कोरोना पीड़ित होने की खबर मिलते रहने के बाद कई सवाल सभी के मन में आ रहे हैं। कोरोना कब तक दहशत मचाता रहेगा? इसका कब अंत होगा? क्या इससे भी बुरा दौर आएगा? क्या अंतरिक्ष फतह करने वाली वैज्ञानिक बिरादरी कोरोना से बचाव की कारगर दवा बना पाएगी?
एक वरिष्ठ चिकित्सक से यह पूछने पर कि डॉक्टरों को उपचार की जानकारी कहां से मिलती है, उनका कहना था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्लूएचओ) की वेबसाइट ही पूरी दुनिया के डॉक्टरों के उपचार के लिए आधार बन रही है, जो खुद के सुझावों में लगातार संशोधन कर रही है। वैज्ञानिक शोध दूसरा आधार है। शायद तभी इस बीमारी के विषाणु पर अभी तक शोध ही चल रहे हैं। संभव है नई महामारी पर शोध करने के लिए वैज्ञानिकों को पूरा समय नहीं मिल पाया हो। पोलियो, खसरे जैसे कोरोना के खात्मे के लिए अभी अंतहीन इंतजार करना पड़ सकता है। तभी तो पहले कहा गया कि कोरोना से बचाव के लिए हाथों को साबुन या तेज पानी की धार में 20 सेकेंड तक बार-बार धोने से विषाणु मर जाएगा, मास्क तभी लगाएं जब आप कोरोना मरीज के संपर्क में रहें या भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाएं।
दूसरी लहर के आने के बाद तो कहा जाने लगा कि घर में भी मास्क लगाकर रहें। सर्जिकल मास्क के साथ दो मास्क लगाएं। इसी तरह की अनेक सावधानियां बताई जा रही थीं जिसमें लगातार बदलाव किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कोरोना नए रूप में ज्यादा घातक हो गया है। शरीर में ऑक्सीजन का स्तर तेजी से गिरने, फेफड़ा खराब होने, खून का थक्का जमने और दिल का दौरा पड़ने से बेहिसाब मौत होने जैसे पूवार्नुमान तो ठीक से लगाए ही नहीं गए। यह का दावा यह किया जाता रहा कि कोरोनारोधी टीके आने के बाद इस महामारी पर काबू पा लिया जाएगा। अभी टीकों की दो खुराक लेनी पड़ रही है। यह अभी तक कोई दावा करने की स्थिति में नहीं है कि उन टीकों का असर कब तक बना रहेगा। टीका लगाने के बाद इस महामारी से कोई प्रभावित नहीं होगा या उसकी मौत नहीं होगी।
भारत में नवंबर-दिसंबर से कोरोना का असर कम होने लगा। तब तक देश में कोरोना का टीका बन गया। भारत दुनिया के 40 देशों को टीका भेजने लगा। सरकार की ओर से दावे किए गए कि पहले कोरोना काल में सरकार ने देश की मेडिकल सुविधाओं में भारी बेहतरी की है। कोरोना के दूसरे दौर ने सरकार के सारे दावे ध्वस्त कर दिए। लोग कोरोना से अधिक ऑक्सीजन की कमी से मरने लगे। देश की राजधानी दिल्ली में भी अस्पतालों में बिस्तरों की भारी कमी से लोग सड़कों पर मरने लगे। हालात बद से बदतर होने पर अदालतों ने कमान संभाल ली। कुछ ही महीने पहले भारत अनेक देशों को टीका और मेडिकल सामान भेज रहा था, उसे दूसरे देशों से टीका, ऑक्सीजन और कोरोना बचाव के दूसरे सामान मंगाने पड़ रहे हैं। कभी हालात काबू में आने के आसार दिखते हैं तो दूसरे ही दिन फिर बेकाबू हो जाते हैं।
विषाणु ने महानगरों की सीमा पार करके गांव-गांव और देश के हर कोने में भारी संकट खड़ा कर दिया है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकत्ता ही नहीं, हर शहर और गांव में कोरोना पहुंच गया है। लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोग इस साल बेरोजगार हो चुके हैं।
जनवरी 1918 से दिसंबर 1920 में दुनिया में स्पेनिश फ्लू से करीब 50 करोड़ की आबादी प्रभावित हुई थी। करीब पांच करोड़ मौत हुई थी। अपने देश में मई 1918 में स्पेनिश फ्लू का प्रकोप हुआ।
करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों की भारत में जान गई। पहली बार 1911 के मुकाबले 1921 की जनगणना में देश की आबादी कम हुई थी। इसे मानव इतिहास का भीषण महामारी माना जाता है। इस महामारी के समय तो देश में स्वास्थ्य सेवाएं बहुत ही कम थी। आबादी का घनत्व भी अभी के अपेक्षा काफी कम था। मौत इस कदर हो रही थी कि लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले नहीं मिल रहे थे। ऐसे समय में भी अनेक संस्थाएं और उसके कार्यकर्ता अपनी जान जोखिम डालकर सामूहिक अंतिम संस्कार कर रहे थे। महात्मा गांधी के ऐतिहासिक खेड़ा सत्याग्रह में शामिल अनेक कार्यकर्ता इसी काम में लग गए थे।
आज के कोरोना संकटकाल में जान बचाने के अलावा रोजी-रोटी बचाना और सामाजिक सरोकार, ताना-बाना बचाना बड़ी चुनौती है। कोरोना ने एक-दूसरे को दूर कर दिया है। लोग अपनों की मदद भी नहीं कर पा रहे हैं। एक-दूसरे के दुख-सुख में शामिल भी नहीं हो पा रहे हैं। इतना ही नहीं बीमारी की हालत में जबरन डरकर या डराकर अपनों से दूर कर दिया जा रहा है।
अंतिम समय लोगों का आपस में मिलना भी नहीं हो रहा है। निधन के बाद लावारिश लाश की तरह अंतिम संस्कार हो रहा है। समाज को कोरोना के इस संकट से देश को निकालने के लिए आगे आना होगा। अदालत तो चौकस है ही सरकारी तंत्र को भी समाज के दबाव में पूरी तरह से चौकस होना होगा। हालात काबू में तभी होंगे जब सभी सजग होंगे।