अभिषेक कुमार सिंह
देश की राजधानी दिल्ली में पिछले हफ्ते हीरा व्यवसाय के एक आयोजन में दुनिया के अत्याधुनिक रोबोट ‘सोफिया’ की एक मॉडल के रूप में उपस्थिति चर्चा में है। सोफिया को पहले भी मुंबई में एक आयोजन में लाया जा चुका है। पर दिल्ली के आयोजन में हीरों की पहचान करते और उन हीरों की विशेषताएं बताते हुए रोबो सोफिया ने जहां लोगों को रोमांचित किया, वहीं यह सवाल भी पैदा किया कि कहीं मशीनों ने हकीकत में इंसान की जगह लेना शुरू तो नहीं कर दिया है, खासकर रोजगार के क्षेत्र में। कोई चीज जड़ या चेतन या फिर कोई मशीन है, या इंसान जैसा जीव- इसका फर्क तो हम देख कर आसानी से कर लेते हैं। लेकिन यदि आपके सामने एक परदा हो और उस पार कोई अजनबी, जिसे आप देख नहीं सकते, तो उसे पहचानना मुश्किल होगा। खासतौर से तब, जबकि दूसरी तरफ से आपको सही जवाब मिल रहे हों। कहा जाता रहा है कि जिस दिन इंसान की तरह बात और व्यवहार करने वाले रोबोट बना लिए जाएंगे, तब मशीनों को जिंदा ही मान लिया जाएगा। तब रोबोट एक ऐसी मशीन के रूप में हमारे सामने होगा जो हमसे बातचीत कर रहा होगा, हमारी भावनाओं को समझ रहा होगा और हमारे आदेश-निर्देश समझ कर कोई सही फैसला कर रहा होगा।
असल में चेतन और जड़ के बीच जो दूरी या परदा था, अब वह खत्म होता लग रहा है। मशीनें हमारे जीवन में भीतर तक घुसपैठ कर चुकी हैं। इसलिए कह सकते हैं कि मशीनें जिंदा होने जा रही हैं जिनसे सारे समीकरण बदल सकते हैं। बड़ी तब्दीली रोबोट की वजह से आ रही है। यह तब्दीली कैसी होगी, इसका एक संकेत यूरोप में चलाए जा रहे फेलिक्स ग्रोविंग प्रोजेक्ट से मिलता है। फेलिक्स का मतलब है- फीलिंग (अहसास), इंटरेक्ट (क्रिया-प्रतिक्रिया) और एक्सप्रेस (अभिव्यक्ति)। इसके तहत रोबोटिक्स, साइकोलॉजी और न्यूरो साइंस के कई विशेषज्ञों की साझा मेहनत से तैयार होने जा रहे रोबोट में भावनाएं पैदा की जा रही हैं। ऐसे रोबोट अपनी मशीनी आंखों, कानों और सेंसरों से आसपास के माहौल को पहचान लेते हैं, अपने मालिक के इशारों, संकेतों और भावों को समझते हैं और जवाब में वैसी ही प्रतिक्रिया देते हैं, जैसी जीवित प्राणी देते हैं। रोबोट फेलिक्स वैसे ही सीख कर विकसित हो रहा है, जैसे हम इंसान होते हैं। यहां असली सवाल यह है कि क्या इंसानों और रोबोटों में फर्क मिट रहा है। अभी भले ही लोग यह फर्क कर पाएं कि इंसान जैसी दिखने के बावजूद कोई मशीन असल में रोबोट है और इंसान उनसे अलग है, पर दुनिया में कई वैज्ञानिक और इंजीनियर ऐसी परियोजनाएं चला रहे हैं, जिनसे ऐसे अंतर कर पाना मुश्किल होगा। मशहूर वैज्ञानिक रे कुर्जवेल जल्दी ही इस अंतर के खत्म होने की उम्मीद कर रहे हैं। उनका दावा है कि आने वाले कुछ ही वर्षों में रोबोट भी प्रयोगशाला रूपी कक्षाओं में नई चीजें सीखते और इस बारे में जानकारी को एक-दूसरे से साझा करते दिखाई दे रहे होंगे कि वे हर मामले में इंसान को कैसे पीछे छोड़ सकते हैं। यह काम काफी तेजी से हो रहा है। इस उद्देश्य से रोबोटों के लिए खासतौर से ऐसा वर्ल्ड वाइड वेब तैयार किया जा रहा है जहां वे इंसानी खूबियों को सीख रहे हैं। इस वर्ल्ड वाइड वेब का नाम है ‘रोबोअर्थ’ और ‘रोबो ब्रेन’। रोबोअर्थ की जानकारियों का स्रोत प्रोग्रामिंग है, जबकि रोबो ब्रेन इंटरनेट से मिली सूचनाओं के बारे में खुद अपनी समझ बनाता है। रोबो ब्रेन केवल वस्तुओं को पहचानता ही नहीं है, बल्कि उसमें मनुष्यों की भाषा और व्यवहार जैसी जटिल चीजों को समझने की भी क्षमता है। यदि कोई रोबोट ऐसी स्थिति में फंसता है, जिससे उसका पहले कभी सामना नहीं हुआ था, तो वह रोबो ब्रेन से सलाह-मशविरा कर सकता है।
रोबो ब्रेन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना स्रोतों से कई प्रकार के हुनर और ज्ञान को हासिल कर ले। इस ब्रेन से संपर्क रखने वाले दुनिया के किसी भी हिस्से में मौजूद अन्य रोबोट अपने रोजमर्रा के कार्यों के लिए रोबो ब्रेन में जमा सूचनाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। रोबोअर्थ नामक वेब का विकास करने वाले वैज्ञानिक इंडोवेन यूनिवर्सिटी में बनाए गए एक प्रायोगिक अस्पताल में ऐसी प्रणाली बना रहे हैं, जिसका मकसद रोबोटों को इस लायक बनाना है कि वे अपनी जानकारियों को डाटाबेस में डाल सकें। डाटाबेस में पहुचाई गई ये सूचनाएं सभी मशीनों के साथ एक खास कृत्रिम मस्तिष्क के जरिए दूसरों रोबोटों से साझा की जाएंगी। रोबोअर्थ परियोजना के मुखिया रेने वान दे मोलेनग्राफ्ट के मुताबिक, रोबोअर्थ असल में रोबोटों के लिए तैयार किया गया एक विशाल नेटवर्क है। लंबे-चौड़े आंकड़ों का गोदाम इसकी खासियत है। इस वेब पर रोबोट अपनी जानकारियां एक दूसरे से बांटेंगे और एक दूसरे से सीखेंगे भी। इस प्रणाली को जांचने के लिए चार ऐसे रोबोट चुने गए हैं, जो अस्पताल में आने वाले मरीजों की मदद के लिए मिलजुल कर काम करेंगे। जैसे इनमें से एक रोबोट अस्पताल में भर्ती मरीज के बिस्तर या कमरे का नक्शा वेबसाइट पर अपलोड करेगा, ताकि मरीज से मिलने वालों को यहां पहुंचने में कोई परेशानी न हो। इसी तरह दूसरा रोबोट ऐसे संदेश प्रसारित करेगा, जिनसे मरीजों को पेय पदार्थ जल्दी और आसानी से मिल जाएं। इस तरह लग रहा है कि जल्दी ही कई तरह के सार्वजनिक कार्यों में रोबोट की मदद ली जाने लगेगी। लेकिन अभी जो सबसे बड़ी समस्या है, वह यह है कि हम इंसान जिन कामों को आसानी से करते हैं, रोबोट के लिए वे सभी काम मुश्किल होते हैं। जबकि जो काम इंसान के लिए कठिन माने जाते हैं, उन्हें रोबोट आसानी से कर लेते हैं। जैसे, लावा उगलते ज्वालामुखी में उतरना या समुद्र की गहराइयों में किसी चीज को खोज निकालना- ऐसे सक्षम रोबोट अब अस्तित्व में हैं, पर चाय का गर्म प्याला उलटने से हाथ जल सकता है- यह समझ रोबोट में प्राय: नहीं होती।
फिर भी यहां सवाल यह है कि जब रोबोट इंसान जैसी समझ आदि से जुड़ी बहुत सारी बातें सीख रहे हैं, तो उनसे खतरा क्या होगा? वैज्ञानिकों के मुताबिक एक जिंदा और बुद्धि से लैस रोबोट अगर हमारी सारी भावनाओं को समझने लगेंगे, तो उसी वक्त हम इंसानों की हस्ती खतरे में पड़ जाएगी। यह मामला मशीनों के जिंदा हो जाने का है। एक खतरा तो यह हो सकता है कि हमारी किसी बात पर रोबोट रूठ जाए, तुनक जाए या क्रोधित हो जाए। ऐसी स्थिति में वह हमारे लिए समस्या पैदा कर सकता है। आखिर जब रोबोट जैसी मशीनें हमारी भावनाएं समझ लेने लगेंगी, तो वे अपने सम्मान की फिक्र भी तो करने लगेंगी। यह भी हो सकता है कि भविष्य की मशीनें हमसे भी ज्यादा समझदार हों। वे चुपचाप विकसित होती रहें और हमें इसकी भनक न लगने दें। यानी तब सबसे बड़ा खतरा हम इंसानों के लिए होगा। पर क्या एक दिन रोबोट इंसानों पर हमला कर देंगे? यह आशंका भी अक्सर जताई जाती है क्योंकि जिस तरह से उन्हें बुद्धिमान बनाने के प्रयास हो रहे हैं, मुमकिन है कि एक दिन वे इंसान से हर मामले में आगे निकलना चाहें और दुनिया पर कब्जा करना चाहें। ‘बैक्सटर’ जैसे रोबोट को लेकर अभी से ऐसी बातें की जा रही हैं। हालांकि वैज्ञानिक कहते हैं कि अगले पांच सौ साल में तो ऐसा नहीं होगा। अगर किसी रोबोट के हाथों कोई खून होगा तो वह गलत कमांड या रोबोट से भूलवश ही होगा। फिलहाल आश्वस्ति यही है कि अंतत: वे हमारी बनाई मशीनें हैं जिन्हें हमारे ही निर्देशों की जरूरत है। बिना मानवीय दखल के रोबोट विद्रोह तो हरगिज नहीं कर सकेंगे, भले ही फिल्मों में उन्हें डरावना दिखाया जाए।