देवेंद्र जोशी

‘एक ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है!’ वैसे तो दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के संदर्भ में की थी। लेकिन थोड़े-बहुत बदलाव के साथ यह सारे देश पर लागू होती है। भिक्षावृत्ति किसी एक नगर, महानगर या प्रांत की समस्या नहीं, राष्ट्रव्यापी समस्या है। यह पहला मौका नहीं है जब किसी प्रदेश के हाईकोर्ट ने भिक्षावृत्ति को अपराध मानने से इनकार किया हो। इससे पहले संसद में भी यह मामला कई बार उठ चुका है। भिक्षावृत्ति को लेकर कानून बनाने और भिखारियों के पुनर्वास की मांग लगातार उठती रही है। भिक्षावृत्ति को लेकर कोई केंद्रीय कानून नहीं होने से ज्यादातर राज्य सरकारें मुंबई भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम-1959 के अनुसार ही इस समस्या से निपट रही हैं। इसमें भिक्षावृत्ति को अपराध मानते हुए तीन से दस साल तक सजा का प्रावधान है।

इस समय देश के बीस राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने या तो अपने खुद के बनाए भिक्षावृत्ति निरोधक कानून लागू किए हुए हैं, या दूसरे राज्यों द्वारा लागू कानून अपनाए हुए हैं। कानूनन भीख मांगने को तब तक अपराध नहीं माना जा सकता जब तक कि कोई गरीबी के कारण ऐसा करने को मजबूर न हो। कोई मजबूरी में ऐसा कर रहा है या जबरन उसे इसमें धकेला गया है, इसका पता भिखारी को गिरफ्तार किए बिना लगा पाना संभव नहीं है। इसलिए भिक्षावृत्ति का कानूनी पहलू जटिल मामला है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भिक्षावृत्ति को दंडित करने के प्रावधानों को असंवैधानिक करार देते हुए उसे रद्द कर दिया और कहा कि भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोह के लिए वैकल्पिक कानून लाने के लिए सरकार स्वतंत्र है। सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में कुल भिखारियों की संख्या चार लाख से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में तीन लाख बहत्तर हजार भिखारियों में से अठहत्तर हजार शिक्षित भिखारियों में इक्कीस फीसद बारहवीं तक पढ़े-लिखे थे और तेरह हजार के पास पेशेवर पाठ्यक्रमों की डिग्री थी। इनमें से ज्यादातर पढ़ाई के बाद संतोषजनक नौकरी नहीं मिलने के कारण भिखारी बने। जब स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद भी लोग भीख मांग रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि देश में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर रूप ले चुकी है। भिक्षावृत्ति से जुड़ा एक अहम और गंभीर पहलू बाल भिक्षावृत्ति है। यों तो हर उम्र के लोग इस धंधे में शामिल हैं, लेकिन बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की भी है जो मजबूरी में यह पेशा अपनाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार हर साल देश में करीब अड़तालीस हजार बच्चे गायब होते हैं। इनमें से ज्यादातर भिक्षावृत्ति में धकेल दिए जाते हैं। देश में भीख माफिया भी एक बड़ा उद्योग बन चुका है। एक अनुमान के अनुसार देश के विभिन्न भागों में करीब दो लाख से ज्यादा बच्चे भिक्षावृत्ति में लगे हैं। कोई पारंपरिक रूप से, तो कोई मजबूरी के चलते इस काम में लगा है। डरा-धमका कर, अंग भंग कर भी बच्चों से भीख मंगवाई जाती है। देश की प्राथमिकता बाल भिखारियों पर रोक लगाना होनी चाहिए। सरकारी-गैर सरकारी एजेंसियां और समाज मिलकर काम करें तो बाल भिखारियों का पुनर्वास असंभव नहीं है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भिक्षावृत्ति एक सामाजिक अभिशाप है। इसके लिए सरकार जितनी उत्तरदायी है, समाज और परंपराएं भी उतनी ही दोषी हैं। भिक्षावृत्ति का एकमात्र कारण सरकार द्वारा रोटी-रोजगार उपलब्ध नहीं करा पाना ही नहीं है, बल्कि अन्य आर्थिक-सामाजिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। जिस देश में भूखे को भोजन देना पुण्य का काम माना जाता हो, जहां भूखे को भोजन कराने से आत्म-संतुष्टि मिलती हो, जहां भिक्षा देने को दान, दया, सहिष्णुता, परोपकार, अतिथि सत्कार, धर्म और पुनर्जन्म से जोड़ा जाता हो, वहां भिक्षावृत्ति के लिए अकेली सरकार को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है! भिक्षावृत्ति अपराध और कानून का जहां तक सवाल है, प्रत्येक समाज में व्यवहार और दंड के अपने प्रतिमान होते हैं। किसी भी कृत्य को तब तक अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जब तक कि उससे समाज के किसी नियम का उल्लंघन न होता हो या समाज को हानि नहीं पहुंचती हो। अगर कोई व्यक्ति अपनी किसी शारीरिक-आर्थिक परेशानी से दुखी होकर भीख मांग कर गुजर-बसर करता है तो उसकी मजबूरी को सहानुभूति से देखे जाने की आवश्यकता है, न कि उस पर कानूनी नकेल कसने की। इस तरह की समस्या को रोकना है तो सबसे पहले उन कारणों को जड़ से समाप्त करना होगा जिनसे यह समस्या उत्पन्न हुई है। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि इस विवशता या अदालत के रहम भरे फैसले का बेजा फायदा उठा कर कोई भिक्षावृत्ति की आड़ में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम न देने लगे।

जो वास्तव में शारीरिक-मानसिक दोष से ग्रस्त या असहाय हैं, उन्हें सुधार गृहों में भेज कर इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है। लेकिन यह कार्य सिर्फ सरकार पर निर्भर रह कर नहीं किया जा सकता। सभी के सहयोग और सामूहिक प्रयासों से ही इस सामाजिक बुराई को दूर किया जा सकता है। इसे विडंबना ही कहा जाना चाहिए कि लगातार उन्नति के पथ पर अग्रसर भारत में जहां एक तरफ करोड़पतियों-अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ एक तबका भीख मांग कर पेट भरने को मजबूर है। आजादी के सत्तर साल बाद भी अगर देश के लाखों लोगों को गुजर-बसर करने के लिए भीख मांगनी पड़े तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात देश के लिए और क्या हो सकती है जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का सबसे बड़ा बाजार होने का दावा करते नहीं थकता! सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक वर्ग भिखारियों के पुनर्वास की लगातार मांग करता रहा है। केंद्र सरकार एक विधेयक पर काम भी कर रही है, जिसके तहत भीख मांगना अपराध नहीं होगा और बार-बार भीख मांगने पर व्यक्ति को पुनर्वास केंद्र में रखा जा सकेगा।

भिक्षावृत्ति पर लखनऊ में किए गए एक शोध से सामने आया कि भीख मांगने का मुख्य कारण गरीबी है। इकतीस फीसद भिखारी गरीबी, सोलह फीसद विकलांगता, चौदह फीसद शारीरिक अक्षमता, तेरह फीसद पारंपरिक कारणों से और तीन फीसद बीमारी के चलते भीख मांग रहे हैं। इनमें पैंसठ फीसद नशे के आदी हैं, जिनमें तेंतालीस फीसद तंबाकू खाते हैं और अठारह फीसद स्मैक जैसे नशे के शिकार हैं। उन्नीस फीसद शराब पीते हैं। अड़तीस फीसद भिखारी सड़कों पर रात गुजारते हैं, जबकि इकतीस फीसद के पास झोपड़ी है। अठारह फीसद कच्चे मकान और आठ फीसद पक्के मकान में रहते हैं। अट्ठानवे फीसद भिखारियों ने कहा कि अगर सरकार उन्हें पुनर्वास की सुविधाएं उपलब्ध कराए तो भीख मांगना छोड़ देंगे। ऐसे लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिला कर, स्वरोजगार का प्रशिक्षण और जीविकोपार्जन के सम्मानजनक रास्ते खोल कर इस अभिशाप से मुक्ति दिलाई जा सकती है। समाज को भी भिक्षावृत्ति छोड़ कर मुख्यधारा में आने वालों को गले लगाने के लिए अपनी उदारता दिखाने के लिए तत्पर रहना होगा। देश में कोई भूखा न रहे और भूख के कारण अपराध न करे, इसके लिए खाद्य सुरक्षा कानून की तर्ज पर ही रोजगार के अधिकार का कानून (राइट टू जॉब) बनाए जाने का अब समय आ गया है। हालांकि मनरेगा जैसी योजना देश में संचालित है लेकिन इसके लिए काम करने की मानसिकता का विकास भी जरूरी है। भीख मांगना सभ्य समाज का लक्षण नहीं है। लोगों में आत्मसम्मान और स्वाभिमान जागृत किए बिना इस कलंक से मुक्ति पाना संभव नहीं है।