परमजीत सिंह वोहरा

इससे भारतीय शेयर बाजार को मजबूती मिली, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर यह बात स्थापित हुई है कि अब भारत का शेयर बाजार बहुत सशक्त और आत्मनिर्भर है।

जनवरी के अंतिम सप्ताह की सर्दियों में अचानक आर्थिक चर्चाओं का बाजार खूब गर्म हो उठा। वैसे हर साल इस दौरान बजट के लिए चर्चाओं का दौर चलता है, पर इस बार नजारा कुछ अलग था। एक विदेशी शोध कंपनी ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत के एक बड़े औद्योगिक घराने को लेकर जब कुछ वित्तीय अनियमितताओं का जिक्र किया, तो इसने वैश्विक चर्चा का रूप ले लिया। भारतीय शेयर बाजार में खलबली-सी मच गई।

उसे लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरीके से विश्लेषण होने लगे। महसूस किया जाने लगा कि उसकी छाप कहीं न कहीं आने वाले बजट पर भी दिखेगी। निश्चित रूप से यह हर किसी के लिए एक आर्थिक झटका था। हर किसी के सामने यही प्रश्न था कि कहीं यह भी नब्बे के दशक के शेयर घोटाले जैसा तो नहीं है, इसका असर कितने अरसे तक रहेगा।

भारत निश्चित रूप से अब एक ऐसी मजबूत अर्थव्यवस्था बन चुका है, जिसमें कोई औद्योगिक घराना बड़ा नहीं, बल्कि सबसे बड़ा निवेशक है। इस संदर्भ में अगर 24 जनवरी से लेकर 3 फरवरी तक के मुंबई स्टाक एक्सचेंज के सेंसेक्स के आंकड़ों को देखें, तो पता चलता है कि इन दिनों में यह मात्र 137 अंक नीचे आया।

1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था ने पूरी तरह पूंजीवाद की तरफ रुख कर लिया है। शेयर बाजार इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा है। शुरुआती समय में भारतीय आर्थिक तंत्र इतना मजबूत नहीं था, जितना कि आज है, इसलिए शेयर बाजार के कुछ आर्थिक घोटाले सामने आए और उनका असर लंबे अरसे तक भारतीय शेयर बाजार में दिखा, क्योंकि उसने एक आम निवेशक के आत्मविश्वास को तोड़ा था।

इस समय की परिस्थिति इससे बिल्कुल हटकर है, इसलिए शेयर बाजार के पहले के आर्थिक घोटालों को आज के औद्योगिक घरानों के साथ प्रत्यक्ष रूप से जोड़ कर देखना सही नहीं होगा। इसके पीछे कई आधार हैं। मुख्य तौर पर यह समझा जा सकता है कि आज के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्णतया वैश्विक परिस्थितियों के साथ अंतर्निहित होकर संचालित हो रही है, जो उस समय नहीं थी।

दूसरे, पहले के आर्थिक घोटालों के तथ्य भारत के निष्पक्ष पत्रकारों ने खोले थे, जबकि इस समय एक ऐसी विदेशी रिसर्च कंपनी ने खोला है, जिसकी खुद की विश्वसनीयता दांव पर है। इसलिए कि ऐसी जांच के पीछे उसका मुख्य उद्देश्य खुद मुनाफा कमाना होता है। यह विदेशी रिसर्च कंपनी खुद पहले बड़े औद्योगिक घरानों के शेयर भारी मात्रा में बेचती और फिर मूल्य गिरने पर उन्हें खरीद लेती है। शेयर बाजार की भाषा में इसे ‘शार्ट सेलिंग’ कहते हैं।

इस दौरान एक सकारात्मक तथ्य यह सामने आया है कि भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों ने हड़बड़ी नहीं दिखाई और भारतीय आर्थिक तंत्र की नीतियों में विश्वास रखते हुए अपने निवेश को सुरक्षित रखा। इससे भारतीय शेयर बाजार को मजबूती मिली, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर यह बात स्थापित हुई है कि अब भारत का शेयर बाजार बहुत सशक्त और आत्मनिर्भर है। इस विश्वास को नए बजट ने और पुख्ता किया।

चर्चा में आया भारतीय औद्योगिक घराना पिछले लंबे अरसे से ऐसे क्षेत्रों के व्यापार में सलंग्न है, जिनमें आर्थिक घाटे का पूर्वानुमान करना भी लगभग असंभव-सा प्रतीत होता है। यह औद्योगिक घराना लगभग एकाधिकार के रूप में विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में खुद को स्थापित कर चुका है। इस बात का अंदेशा बिल्कुल एकतरफा प्रतीत होता है कि इस औद्योगिक घराने को व्यापारिक आर्थिक घाटा हो जाएगा और उसके द्वारा लिए गए विभिन्न ऋणों का भुगतान नहीं हो पाएगा।

यह भी समझना होगा कि भारतीय शेयर बाजार और व्यापारिक गतिविधियों की चाल अलग-अलग दृष्टिकोण से संचालित होती हैं। इनमें तकरीबन आपसी तालमेल बना रहे, यह जरूरी नहीं है। बीते दस दिनों में इस औद्योगिक घराने को शेयर बाजार में तकरीबन पचास प्रतिशत से अधिक का नुकसान हो चुका है, जिसके कारण इसकी विभिन्न कंपनियों के शेयर मूल्य बहुत ज्यादा टूटे हैं। इसका असर शुरुआती दिनों में सेंसेक्स तथा एनएसई निफ्टी पर भी देखने को मिला था, मगर बाद में उन दोनों में तेजी से सुधार आया।

यह भी जानना आवश्यक है कि इस औद्योगिक घराने की विभिन्न कंपनियों के करीब सत्तर प्रतिशत शेयर में सहभागिता इनके प्रवर्तक की व्यक्तिगत है, जिसे तकनीकी भाषा में ‘प्रमोटर इक्विटी’ कहा जाता है। शायद यही कारण है कि इस कंपनी के ‘चेयरमैन की प्रमोटर इक्विटी’ में भी बहुत बड़े स्तर पर आर्थिक नुकसान हुआ है, जिसके कारण वे अब विश्व के प्रथम बीस अमीरों की श्रेणी से बाहर हो गए हैं, जबकि दस दिन पहले तक वे तीसरे बड़े धनी व्यक्ति थे।

अब यह भी समझना होगा कि जब इन कंपनियों के शेयर कोरोना महामारी के दौरान दो वर्षों में तकरीबन एक हजार प्रतिशत के आसपास बड़ी तेजी से बढ़े, तो शायद उसी कारण इस औद्योगिक घराने के मालिक की व्यक्तिगत संपदा भी वैश्विक स्तर पर बहुत तेजी से ऊंचाई पर गई और वह भारत के सबसे अमीर व्यक्ति में शुमार हुए।

यहां यह भी गौरतलब है कि आज अगर इस औद्योगिक घराने के शेयर बाजारों में गिरावट से दूसरे बड़े निवेशकों को नुकसान देखा जा रहा है, तो क्या जब इस कंपनी के शेयर में भारी तेजी हुई, तो उन्होंने उस दौरान मुनाफा नहीं बनाया होगा? शेयर बाजार की गिरावट तभी आर्थिक चिंता का मुद्दा बनती है, जब वह कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों में हो रहे घाटे से संचालित हो रही हो।

संबंधित विदेशी रिसर्च कंपनी की एक व्यापारिक गतिविधि एक है कि वह किसी भी कंपनी की आंतरिक वित्तीय सूचनाओं को वैश्विक स्तर पर चर्चा में लाकर अपने निवेशकों के माध्यम से उस कंपनी के शेयरों में ‘शार्ट सेलिंग’ के माध्यम से खूब उठापटक करती और मुनाफा कमाती है। इस सबका उल्लेख यह रिसर्च कंपनी खुद के आधिकारिक दस्तावेजों में करती है। यह कंपनी का एक व्यावसायिक तरीका है।

इस कंपनी का नाम ‘हिंडनबर्ग’ तकरीबन सौ साल पहले जर्मनी के एक दुर्घटनाग्रस्त हुए हवाई जहाज के नाम पर है, जिसमें अधिक हाइड्रोजन का उपयोग करने से सौ लोगों की जान चली गई थी। इसे आज एक ‘मानवकृत’ घटना के रूप में जाना जाता है। 2017 में कंपनी वास्तविक रूप से अस्तित्व में आई थी और अब तक वैश्विक स्तर पर कई कंपनियों के आंतरिक वित्तीय तथ्यों को उजागर कर चुकी है। इंटरनेट पर इस कंपनी से संबंधित कोई भी अधिकारिक तथ्य, जैसे कि उसका पंजीकृत कार्यालय, आदि की घोषणा नहीं मिलती है।

इन सबके बीच सबसे सकारात्मक तथ्य यह आया है कि पहले यह जरूर कहा जाता था कि भारतीय शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का एक मुख्य स्रोत नहीं है, पर इन दिनों इस बात को बहुत बल मिला है कि भारतीय शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है और इस बात की पुष्टि पिछले दस दिनों में हुई भी है, जब निवेशकों ने अपने आत्मविश्वास को बनाए रखा है।

निवेशक के लिए सबसे मुख्य बात उसके निवेश की सुरक्षा है और वह इस बात से परिचित है कि भारतीय पूंजी बाजार विश्व के दूसरे अन्य पूंजी बाजारों की तरह तुरंत नकारात्मक रूप से व्यवहार नहीं करता है। भारतीय निवेशकों को यह भी समझना होगा कि बीते दस दिनों में उन्हीं में से कई लोगों ने इस बड़े औद्योगिक घराने में हुई भारी गिरावट में भी खूब मुनाफा कमाया है और भारतीय शेयर बाजार की इस बहती गंगा में अपने हाथ धोए हैं।