परमजीत सिंह वोहरा
फिर भी यह आर्थिक चिंता का सबब इसलिए है क्योंकि महंगाई खुद ब खुद नियंत्रण में नहीं आती है और जब इसे नियंत्रित करने के प्रयास किए जाते हैं तो उससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
आरबीआइ लंबे समय से महंगाई दर को काबू करने में लगा है। इस दिशा में अब तक के प्रयासों और नतीजों को लेकर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) जल्द ही सरकार को अपनी रिपोर्ट देने की तैयारी में है। बीते दिनों रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात को माना कि महंगाई को नियंत्रित करना मुश्किल काम है क्योंकि इसके साथ ही आर्थिक वृद्धि दर का भी ध्यान रखना होता है।
उन्होंने महंगाई और आर्थिक वृद्धि दर की तुलना महाभारत में अर्जुन द्वारा मछली की आंख पर निशाना लगाने जैसी स्थिति से की, जब अर्जुन को नीचे पानी में मछली की परछाई को देख कर ऊपर उसकी आंख पर निशाना लगाना था। इस बात से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत का केंद्रीय बैंक बढ़ती महंगाई से परेशान है, क्योंकि इसका असर आर्थिक विकास दर पर भी पड़ रहा है।
हालांकि आरबीआइ ने इस आर्थिक संकट का पूर्वानुमान व्यक्त करते हुए चालू वित्त वर्ष में अब तक चार बार रेपो दर बढ़ाई है, ताकि तरलता को कम किया जा सके। वर्तमान समय में रेपो दर 5.90 प्रतिशत है। अरसे बाद रेपो रेट इतनी ज्यादा है। यह भी संभव है कि भारतीय उपभोक्ताओं को आर्थिक निवेश के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए आने वाले कुछ समय में बैंकों की ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी देखने को मिले। ब्याज दर में बढ़ोतरी के माध्यम से अमेरिकन फेड द्वारा लगातार की जा रही ब्याज दर में वृद्धि को भी साधा जा सकता है क्योंकि भारतीय रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है और नतीजतन भारत का आयात बिल बढ़ रहा है जो महंगाई बढ़ाने का एक प्रत्यक्ष कारण है।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 से भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई की दर को पूर्वानुमानित करना और उसे एक आर्थिक संकट न बनने देने के लिए आरबीआइ अधिनियम में परिवर्तन करके ‘मौद्रिक नीति समिति’ का गठन किया गया था और इसके माध्यम से रिजर्व बैंक को और सशक्त बनाया गया। इससे पूर्व केंद्रीय बैंक महंगाई के पूर्वानुमान और उसके नियंत्रण के संबंध में इतना खुल कर कार्य नहीं करता रहा था। इस मौद्रिक नीति समिति की स्थापना के प्रावधानों में इस बात का जिक्र है कि आरबीआइ को भारत में महंगाई दर चार प्रतिशत पर नियंत्रित रखना है।
हालांकि विभिन्न वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों के चलते इस दर में दो प्रतिशत की कमी या वृद्धि को स्वीकार किया जा सकता है, यानी महंगाई दर दो से छह फीसद के बीच ही रहनी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि मौद्रिक नीति समिति के गठन के बाद से रिजर्व बैंक ने महंगाई को नियंत्रित करने को लेकर संतोषजनक काम किया है।
आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि अक्तूबर 2016 से दिसंबर 2019 तक भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर महंगाई की दर चार प्रतिशत से कम रही है, लेकिन उसके बाद से लेकर अब तक महंगाई दर लगातार बढ़ती रही है। हालांकि इसमें कोरोना महामारी का कठिन समय भी शामिल रहा है। अब काफी समय से भारत में महंगाई दर सात प्रतिशत से अधिक है।
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि विकसित मुल्कों की तुलना में भारत में अभी भी महंगाई की दर नियंत्रण में है और इससे आर्थिक संकट का अंदेशा नहीं है। फिर भी यह आर्थिक चिंता का सबब इसलिए है क्योंकि महंगाई खुद ब खुद नियंत्रण में नहीं आती है और जब इसे नियंत्रित करने के प्रयास किए जाते हैं तो उससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है। भारत के लिए यह स्थिति बहुत नकारात्मक है क्योंकि इससे भारत की बढ़ती आर्थिक विकास दर के सटीक पूर्वानुमानों पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाएगा।
मौद्रिक नीति समिति के गठन की आवश्यकता इसलिए भी रही थी क्योंकि बीते वर्षों में भारत में महंगाई की दर दो अंकों में चली गई थी। इस संदर्भ में सरकार व सभी आर्थिक विशेषज्ञों ने इस बात को समझा कि भारत में भी विकसित मुल्कों के जैसे महंगाई दर को एक निश्चित स्तर पर नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
इसी संदर्भ में 2016 के आरबीआइ अधिनियम के संशोधनों में इस बात का जिक्र भी किया गया कि अगर किसी भी वित्तीय वर्ष में लगातार तीन तिमाहियों तक महंगाई दर अपने निर्धारित स्तर से ऊपर चली जाती है तो मौद्रिक नीति समिति को इस पक्ष पर अपना एक आर्थिक विश्लेषण और रिपोर्ट भारत सरकार को प्रस्तुत करनी होगी। ज्ञात रहे कि वर्तमान समय में लगातार पिछली तीन तिमाहियों में महंगाई की दर सात प्रतिशत के आंकड़े से ऊपर रही है और शायद इसी कारण अब आरबीआइ में घबराहट पैदा हुई है। महंगाई क्यों नहीं रुक पा रही है, यह आरबीआइ को सरकार को बताना होगा।
यहां यह गौर करना भी जरूरी है कि कोरोना महामारी के बाद से दुनिया के सभी बड़े विकसित देश महंगाई की मार से जूझ रहे हैं। अभी बीते दिनों इंग्लैंड के प्रधानमंत्री का इस्तीफा भी आर्थिक मुद्दों पर ही हुआ। अमेरिका में भी महंगाई ने पिछले पचास वर्षों के रेकार्ड तोड़ डाले हैं। इसी कारण अमेरिकी फेड लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है ताकि डॉलर अधिक मजबूत हो सके और अमेरिकी निवेशक और अधिक प्रोत्साहित हों। अन्य विकसित मुल्कों जिनमें अर्जेंटीना, नीदरलैंड, रूस, इटली, जर्मनी में महंगाई दर दस प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है।
यह भी एक वास्तविकता है कि महंगाई की दर के पीछे वर्तमान समय में मुख्य भूमिका खाद्य पदार्थों की पूर्ति में कमी को लेकर है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसमें आग में घी का काम किया है। इसके चलते अनाज, खाद्य पदार्थों और तेल के उत्पादन और आपूर्ति पर भारी असर पड़ा है। कच्चे तेल के बढ़ते दाम हर मुल्क के आयात बिल को बढ़ा रहे हैं। इससे घरेलू बाजार में प्रत्यक्ष तौर पर महंगाई की दर बढ़ रही है। इन सबके बीच अमेरिकन डालर का लगातार मजबूत होना भी कई देशों के लिए महंगा साबित हो रहा है। इसीलिए अर्थशास्त्री चेता रहे हैं कि अमेरिकी नीतियों के चलते संपूर्ण विश्व मंदी की चपेट में आ सकता है।
महंगाई की समस्या के चलते विकसित देशों के आर्थिक विशेषज्ञों में इस बात की चर्चा है कि महंगाई को नियंत्रित करने से संबंधित कानून होना चाहिए और उसके आर्थिक प्रावधानों को सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष के वित्तीय बजट में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इन प्रावधानों में महंगाई से होने वाले वित्तीय घाटे की पूर्ति के लिए सरकारें स्वयं अर्थव्यवस्था में वित्तीय निवेश करें, देश के उच्च धनाढ्य वर्ग से अधिक कर वसूला जाए, घरेलू व देशी कंपनियों को अधिक से अधिक निर्माण के क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाए और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक राजनय के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं के आयात बिल को नियंत्रित किया जाए।
यह बात भी सच है कि एक आम व्यक्ति महंगाई से तब ही प्रभावित होता है जब उसकी वित्तीय आय और निवेश बढ़ती महंगाई से कम होने लग जाते हैं। बीते दिनों त्योहारों के मौसम में भारतीय उपभोक्ताओं ने जम कर खरीदारी की, जो इस बात का प्रतीक है कि भारतीय उपभोक्ता शायद अभी महंगाई की दर से परेशान नहीं हैं। शायद अभी महंगाई की दर सिर्फ एक आंकड़ा है, पर उपभोक्ताओं को यह समझना होगा कि सरकारों के पास महंगाई को नियंत्रित करने के लिए उनकी क्रय क्षमता को नियंत्रित करना ही एकमात्र हथियार है। अंतत: नकारात्मक प्रभाव आर्थिक वृद्धि दर पर पड़ता है और इसीलिए महंगाई के संदर्भ में हमेशा यह कहा जाता है कि आज अगर महंगाई का समय है तो आने वाले कल मंदी का होगा।