सुशील कुमार सिंह
असल में कौशल विकास के मामले में भारत में बड़े नीतिगत फैसले या तो हुए ही नहीं और यदि हुए भी तो विकास के स्तर पर पहुंच पूरी नहीं हुई। यदि ऐसा होता तो एक सौ छत्तीस करोड़ आबादी वाले देश में और पैंसठ फीसद युवाओं के बीच केवल पच्चीस हजार कौशल विकास केंद्र न होते।
कौशल विकास हुनर का वह आयाम है जो विकास के प्रशासन को परिभाषित करता है। जब विकास का प्रशासन जमीन पर उतरता है तो सुशासन की पटकथा लिखी जाती है। संदर्भ निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि कौशल विकास के लिए एड़ी-चोटी का जो जोर लगाया जा रहा है, वह नाकाफी है। कोरोना प्रभाव के चलते इसकी मुश्किलें तुलनात्मक रूप से बढ़ी ही हैं। महामारी ने कौशल विकास के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत बढ़ा दी है।
भारत युवाओं का देश है। ऐसे में कौशल विकास से युक्त देश को खड़ा करना है तो बाजार की मांग के अनुरूप पेशेवर प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम चलाना होगा। सुशासन की धारा में कौशल विकास की विचारधारा उतनी ही प्रासंगिक है जितना कि आसान जीवन (ईज आॅफ लिविंग) के लिए सरकार का बेहतरीन सुविधा प्रदायक होना। कौशल विकास को तुलनात्मक अधिक वृहद बनाने के साथ उसकी पहुंच भी आसान करनी होगी, उसे बाजार देना होगा, संरचनात्मक विकास के रास्ते चौड़े करने होंगे, तभी कौशल युक्त नौजवान विकास की मुख्यधारा में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।
कौशल विकास का अभिप्राय युवाओं को केवल हुनरमंद बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें बाजार के अनुरूप तैयार करना भी है। आंकड़े बताते हैं कि इस दिशा में बरसों से जारी कार्यक्रमों और अभियानों के बावजूद महज पांच फीसद ही कौशल विकास कर्मी भारत में हैं। जबकि दुनिया के अन्य देशों की तुलना में यह संख्या बहुत मामूली है। चीन में यह आंकड़ा छियालीस फीसद, अमेरिका में बावन, जर्मनी में पचहत्तर, दक्षिण कोरिया में छियानवे और मैक्सिको जैसे देश में भी अड़तीस फीसद है।
देश की विशाल युवा आबादी को कौशल प्रशिक्षण देकर रोजगार मुहैया कराने के लिए साल 2015 में स्किल इंडिया मिशन शुरूकिया गया था। जमीनी स्तर पर कुशल मानव शक्ति के निर्माण पर कौशल विकास योजना एक बड़ी आधारशिला थी, जिसके तहत हर साल कम से कम चौबीस लाख युवाओं को कुशलता का प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया था। पर महज पच्चीस हजार कौशल विकास केंद्र से क्या यह लक्ष्य पाया जा सकता है? वैसे देखा जाए तो छह साल पहले कौशल विकास केंद्रों की संख्या केवल पंद्रह हजार थी जो पहले भी कम थी और आज आबादी के लिहाज तथा कौशल विकास की रफ्तार को देखते हुए अभी भी कम ही है।
सुशासन की परिपाटी भले ही बीसवीं सदी के अंतिम दशक में परिलक्षित हुई हो, लेकिन इसकी उपस्थिति सदियों पुरानी है। बार-बार अच्छा शासन ही सुशासन है जो सभी आयामों में न केवल अपनी उपस्थिति चाहता है, बल्कि लोक कल्याण के साथ पारदर्शिता और संवेदनशीलता को संजोने का भी प्रयास करता है। शासन हो या प्रशासन, यदि उसमें खुलेपन का अभाव है तो सुशासन दूर की कौड़ी होती है। कौशल विकास को लेकर के चिंताएं दशकों पुरानी हैं। मगर हालिया परिप्रेक्ष्य में देखें तो प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का उद्देश्य ऐसे लोगों को प्रशिक्षण देना था जो कम शिक्षित हैं या स्कूल छोड़ कर घर में बैठे हैं। जाहिर है, इस योजना के अंतर्गत ऐसे लोगों के कौशल का विकास करके उन्हें योग्यता के अनुपात में काम पर लगाना था। इसके लिए कर्ज की सुविधा भी दी जाती है। ऐसा इसलिए ताकि अधिक से अधिक इसका लाभ उठा सकें।
सुशासन और कौशल विकास एक सहगामी व्यवस्था है। एक के बेहतर होने से दूसरे का बेहतरीन होना सुनिश्चित है। गौरतलब है कि सुशासन विश्व बैंक द्वारा दी गई एक ऐसी आर्थिक परिभाषा है जो राज्य से बाजार की ओर चलने की एक संस्कृति लिए हुए है। आर्थिक न्याय सुशासन की खूबसूरत अवधारणा है जो उदारीकरण के बाद पोषित होती रही है। सारगर्भित पक्ष यह भी है कि कौशल विकास को लेकर सरकारें लंबे समय से काम करती आ रही हैं, पर इसका असल पक्ष उतना चमकदार नहीं दिखता है। असल में कौशल विकास के मामले में भारत में बड़े नीतिगत फैसले या तो हुए ही नहीं और यदि हुए भी तो विकास के स्तर पर पहुंच पूरी नहीं हुई।
यदि ऐसा होता तो एक सौ छत्तीस करोड़ आबादी वाले देश में और पैंसठ फीसद युवाओं के बीच केवल पच्चीस हजार कौशल विकास केंद्र न होते। आंकड़े यह दर्शाते हैं कि चीन में पांच लाख, जर्मनी और आस्ट्रेलिया में एक-एक लाख से अधिक कौशल विकास संस्थाएं हैं। दक्षिण कोरिया जैसे छोटे से देश में भी इतने ही केंद्र देखे जा सकते हैं। चीन में तीन हजार से अधिक कौशलों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। भारत में इसकी संख्या पचास से ज्यादा नहीं दिखती। चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5 फीसद व्यावसायिक शिक्षा पर खर्च करता है, जबकि भारत चीन की तुलना में तो काफी कम और अपनी जीडीपी का मामूली धन ही खर्च करता है। यही कारण है कि कौशल विकास के मामले में हम पीछे हैं। वर्ष 2024 तक पांच सौ खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को दस फीसद से अधिक की विकास दर चाहिए। इसके लिए कौशल विकास को व्यापक और व्यावसायिक बनाना होगा।
स्किल इंडिया कार्यक्रम सुशासन को एक अनुकूल जगह दे सकता है, बशर्ते कि यह अपने उद्देश्यों में खरा उतरे। इस कार्यक्रम का मकसद साल 2022 तक कम से कम तीस करोड़ लोगों को कौशल प्रदान करना है। मुहाने पर खड़ा 2022 और कौशल विकास अभियान की रफ्तार को देखते हुए यह लक्ष्य संदेह पैदा करता है। वर्ष 2014 में जब कौशल विकास उद्यमिता मंत्रालय बनाया गया था तब यह उम्मीद से भरा हुआ था, पर आज बोझ से दबा हुआ है। जाहिर है, कौशल विकास का अभियान कई चुनौतियों से जूझ रहा है जिसमें अपर्याप्त प्रशिक्षण, उद्यमी कौशल की कमी, उद्योगों की सीमित भूमिका तो बुनियादी कारण हैं ही, साथ ही इसके प्रति कम आकर्षण और नियोक्ताओं का रवैया भी अड़चनें पैदा करने वाला रहा है।
इतना ही नहीं कौशल केंद्रों पर कुशलता या हुनर के स्थान पर काफी हद तक प्रमाणपत्र बांटने पर ही जोर है। जबकि हकीकत यह है कि बाजार स्पर्धा से भरा है जहां सिक्का तब खनकता है जब काबिलियत फलक पर होती है। ऐसे में प्रमाणपत्र के भरोसे रोजगार की अपेक्षा करना न तो सही है और न ही संभव है। भारत में आंकड़े यह भी बता चुके हैं कि हर चार में तीन बीटेक की डिग्री धारक और हर दस में से नौ डिग्री धारक काम के लायक नहीं है। ऐसे में जिन्हें केवल कौशल विकास के नाम पर जिन्हें प्रमाणपत्र थमा दिए जाएं, उनके रोजगार का क्या हाल होगा।
सवाल है कि सरकार को करना क्या चाहिए। शिक्षा एवं प्रशिक्षण खर्च में वृद्धि करना चाहिए। हालांकि पिछले बजट में इस मद में वृद्धि दिखाई देती है। प्रशिक्षण संस्थानों का भी मूल्यांकन समय-समय पर होना चाहिए साथ ही कौशल सर्वेक्षण भी होता रहे। कौशल विकास के लिए रास्ता सुशासन से भरा होना जरूरी है और इसके लिए समाज के सभी वर्गों को इसमें शामिल करना होगा। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट कहती है कि अगर अमेरिका की भांति भारत के श्रम बाजार में कुल महिलाओं की भागीदारी सत्तर फीसद तक पहुंचा दी जाए तो आर्थिक विकास दर को चार फीसद से अधिक बढ़ाया जा सकता है। कौशल विकास को ऊंचाई देने के लिए आधी दुनिया से भरी नारी को भी इस धारा में बड़े पैमाने पर शामिल करना होगा, ताकि उन्हें हुनरमंद बना कर न केवल देश में विकास की गंगा बहाई जा सके, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी साकार किया जा सके।