दुनिया भर के विदेश नीति के जानकार अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विदेश नीति के विशेषज्ञ के रूप में भी स्वीकार कर चुके हैं। उनकी विदेश नीति का स्थायी भाव है, ‘नेबरहुड फर्स्ट’ यानी पड़ोसी सबसे पहले। इस नीति के अनुसार अपने राष्ट्रहित का ध्यान रखते हुए पड़ोसी देश की आर्थिक खुशहाली और राष्ट्रीय गौरव को बहुत महत्त्व दिया जाता है। बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसियों की आर्थिक तरक्की और सशक्तिकरण की यात्रा में भारत हमेशा आगे रहता है, चाहे वह सीमा समझौता हो, बंदरगाहों का निर्माण हो या फिर विद्युत निर्माण का क्षेत्र हो।
पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखने के पीछे मुख्य मकसद क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और विकास है। बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआइएन समूह) के बीच सक्रिय सहयोग क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की एक और कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। जहां पाकिस्तान और चीन जैसे देश भारत की ‘पड़ोसी पहले’ की व्यावहारिक और सबको साथ लेकर चलने की नीति को समझने में नाकाम रहे, वहीं अन्य सीमावर्ती देश सार्क को एक मजबूत, एकजुट क्षेत्रीय समूह बनाने के भारत के दृष्टिकोण के साथ मिल कर काम कर रहे हैं।
इस आलोक में प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा ऐतिहासिक और महत्त्वपूर्ण हो जाती है। बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान का एक कथन सत्तर के दशक में बहुत चर्चा में था। वे कहते थे कि दुनिया दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक तरफ शोषित-पीड़ित लोग हैं और दूसरी तरफ शोषक। वे अपने को शोषितों के साथ गिनते थे। शोषण के खिलाफ शोषित लोगों का साथ देने के उद्देश्य से ही भारत और बांग्लादेश एक दूसरे के करीब आए। अपने धीरज, दृढ़ निश्चय और बलिदान के बल पर ही दोनों देशों को अपने शोषकों से आजादी मिली थी।
दोनों देशों का साझा इतिहास भी है। अपने देशवासियों के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए दोनों ही देशों ने बहुत परिश्रम किया है। शेख मुजीब ने एक सपना देखा और उसी सपने ने दक्षिण एशिया और इस क्षेत्र के अन्य देशों को एक ऐसी विश्व दृष्टि दी जिसके चलते अपने संसाधनों और उससे होने वाले विकास के फल को समाज के सबसे गरीब आदमी तक पहुंचाने की शासन पद्धति का विकास हुआ। इसी सोच को ध्यान में रख कर भारत और बांग्लादेश ने अपने विवादों को सुलझाया। प्रधानमंत्री मोदी के जून, 2015 के ढाका दौरे के समय जो भूमि सीमा समझौता हुआ उसका ऐतिहासिक महत्त्व है। उस ऐतिहासिक समझौते को संभव बनाने में प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि वाली विदेश नीति का वह केंद्रीय भाव है जिसके अनुसार उन्होंने ‘सबसे पहले पड़ोसी’ की विदेश नीति का आह्वान किया था।
शेख मुजीबुर्रहमान का सपना था कि बंगाल की खाड़ी शांति क्षेत्र बनी रहे। उनकी शहादत के पैंतालीस साल बाद उनकी बेटी व बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सपने को साकार रूप देकर उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। दोनों देशों के बीच लगातार बेहतर हो रहे संबंधों के पीछे दोनों नेताओं का वह संकल्प है जिसके तहत गरीबों, महिलाओं, किसानों और शोषित-पीड़ित लोगों का सशक्तिकरण करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है। बांग्लादेश में आजादी की पचासवीं वर्षगांठ के साथ-साथ राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की जन्मशती भी मनाई जा रही है।
इस अवसर पर बांग्लादेश के सच्चे मित्र भारत की वहां उपस्थिति ऐतिहासिक है। प्रधानमंत्री की यह यात्रा इस बात को रेखांकित करती है कि दोनों ही देशों ने आजादी के लिए बड़ी कुर्बानियां दी हैं। 1971 में भारतीय सेना के सहयोग से मुक्तिवाहिनी ने पाकिस्तानी फौज के खूनी शिकंजे से देश को आजाद कराया था। बांग्लादेश की आजादी के संघर्ष में स्वतंत्रता और मातृभूमि की सेवा के प्रति जो जज्बा है वही भारत के सवा सौ करोड़ से अधिक लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश की बुनियाद में भी है। प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा के महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना महामारी काल के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा बांग्लादेश के ऐतिहासिक जश्न में शामिल होने के लिए ही की गई।
भारत और बांग्लादेश के संबंध आपसी सम्मान और दोस्ती की सीमाओं के बहुत आगे तक जाते हैं। आपसी आर्थिक बेहतरी के लिए भारत और बांग्लादेश हमेशा ही प्रयास करते रहे हैं। बेहतर संपर्क-व्यवस्था, ऊर्जा, व्यापार, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य हो रहे हैं। भारत में बने कोविड-19 टीकों के लिए टीका मैत्री मिशन के तहत यूरोप के देशों सहित दुनिया के कई देश उम्मीद लगाए हुए थे, लेकिन बांग्लादेश सबसे पहले टीका पाने वाले देशों में शामिल था।
प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश के साथ संबंधों को बहुत गंभीरता से लेते हैं। इसका एक उदाहरण 2015 का भूमि सीमा समझौता है। बहुत सारी अड़चनें आईं। लेकिन मौजूदा सरकार ने देशहित को सर्वोपरि रखते हुए बांग्लादेश के अच्छे पड़ोसी के रूप में भूमि सीमा समझौते को एक वास्तविकता का रूप दे दिया। दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क के लिए संपर्क-व्यवस्था एक स्थायी भाव है। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 युद्ध के पहले बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) और भारत के बीच छह रेल संपर्क मार्ग थे, लेकिन लड़ाई के दौरान इन्हें बंद कर दिया गया था। भारत ने चार रेल मार्गों को फिर से चालू कर दिया।
जल्दी ही बाकी दो भी शुरू कर दिए जाएंगे। इसके अलावा तीन और रेल संपर्क मार्ग बनाने की योजना है, जिसके बाद इन संपर्क मार्गों की संख्या नौ हो जाएगी। दोनों देशों के बीच अब विमानों की आवाजाही भी बढ़ाई जा रही है। सबसे महत्त्वपूर्ण संपर्क का साधन साझा नदियों के माध्यम से बनेगा। बांग्लादेश में नदियों के रास्ते व्यापार और आवागमन की भी योजना पर काम हो रहा है। बिजली और ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत हर स्तर पर सहयोग कर रहा है। पूंजी निवेश से लेकर क्षमता बढ़ाने और बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को बढ़ाने की बात चल रही है। यह बड़ा काम है, जिसके बाद उद्योग और व्यापार में तो बढ़ोतरी होगी ही, दोनों देशों में सपन्नता भी आएगी।
बिजली और ऊर्जा के क्षेत्र में भारत और बांग्लादेश में आपसी सहयोग एक बहुत ही जीवंत विषय है। यहां भारत निवेश और क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ बिजली और ऊर्जा क्षेत्र में उप-क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ कर सहयोग कर रहा है। इस तरह के प्रयास से दोनों राष्ट्रों के बीच संसाधनों के व्यावहारिक उपयोग में मदद मिलेगी और व्यापार एवं आवागमन भी आगे बढ़ेगा, जिससे सीमा के दोनों ओर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। तेल और गैस क्षेत्र में समझौते, सड़क परिवहन, चिकित्सा और शिक्षा, बंदरगाह विकास, अंतरिक्ष कार्यक्रम, कृत्रिम बौद्धिकता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), असैन्य परमाणु सहयोग जैसे समझौते भारत-बांग्लादेश संबंधों में नए आयाम जोड़ने जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास पड़ोसियों के बीच यात्रा और आपसी मेल-जोल को प्रोत्साहित करने वाले हैं। ये प्रयास न केवल व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने में काम करेंगे, बल्कि शिक्षा, चिकित्सा उपचार और पर्यटन के क्षेत्र में भी विकास को एक नई गति मिलेगी। सीमापार आवाजाही और आर्थिक संपर्क आपसी संबंधों को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, क्योंकि पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत और बांग्लादेश कोविड-19 महामारी की वजह से हुई मौतों और तबाही से निपटने के लिए एक साथ मिल कर काम कर रहे हैं।
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)
