जयंतीलाल भंडारी

कोविड-19 की चुनौतियों के बीच किसानों और ग्रामीण भारत की आमदनी में वृद्धि करने और रोजगार के नए अवसरों के सृजन के मद्देनजर भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की अहमियत बढ़ गई है। लेकिन समस्या यह है कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियां हैं। कटाई के बाद फसलों की भारी बबार्दी से देश जहां एक ओर बड़ी मात्रा में कृषि उपज से वंचित रह जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे उपजाने में इस्तेमाल होने वाले खाद-बीज, बिजली, पानी और अन्य नकद खर्चों के साथ-साथ किसानों की मेहनत का एक बड़ा भाग व्यर्थ चला जाता है। अतएव खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्राथमिकता के साथ नया परिवेश देने की जरूरत है, ताकि उपज की बबार्दी रुक सके।

देश के खाद्य बाजार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की भागीदारी बत्तीस फीसद है। यह देश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। कोविड-19 के बीच भी भारत में कृषि क्षेत्र का बेहतर प्रदर्शन पाया गया है। भारत विश्व स्तर पर कई कृषि और कृषि उत्पादों का प्रमुख उत्पादक देश है। दुनिया में भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश तो पहले ही बन चुका है।

गेहूं और फलों के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर और सब्जियों के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। इसके अलावा भारत को केला, आम, अमरूद, पपीता, अदरक, चावल, चाय, गन्ना, काजू, नारियल, इलायची और काली मिर्च जैसे खाद्य पदार्थों के प्रमुख उत्पादक के रूप में भी जाना जाता है। देश के कुल निर्यात में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का हिस्सा करीब तेरह फीसद है।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास की संभावनाएं काफी प्रबल हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 तक भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में तैंतीस अरब डॉलर के नए निवेश और नब्बे लाख नए रोजगार अवसर सृजित होने की संभावनाएं हैं। नीति आयोग ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव और रोजगार वृद्धि नामक रिपोर्ट में कहा है कि देश में किसानों को फसल के अच्छे मूल्य के लिए सीधे कारखानों से जोड?े और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि के लिए खाद्य प्रसंस्करण सबसे उपयुक्त क्षेत्र है।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण के तहत पांच क्षेत्र हैं। डेयरी क्षेत्र, फल और सब्जी प्रसंस्करण, अनाज का प्रसंस्करण, मांस, मछली एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण और उपभोक्ता वस्तुएं, पैकेट बंद खाद्य और पेय पदार्थ। इन पांचों क्षेत्रों में भारत के पास बहुत अच्छे कृषि आधार हैं, लेकिन खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के मामले में भारत बहुत पीछे है।

भारत में खाद्य उत्पादन के प्रसंस्करण का स्तर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल खाद्य उत्पादन का दस फीसद से भी कम हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। जबकि फिलीपींस, अमेरिका, चीन सहित दुनिया के कई देशों में खाद्य प्रसंस्करण भारत की तुलना में कई गुना अधिक है। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत पैंतालीस प्रमुख खाद्य उत्पादों की बबार्दी पर किए गए देशव्यापी अध्ययन में पाया गया कि देश में हर साल बानवे हजार करोड़ रुपए से अधिक के खाद्य उत्पाद बर्बाद हो जाते हैं, और सबसे ज्यादा बबार्दी सब्जियों और फलों की होती है।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों का महत्त्वपूर्ण घटक है। जहां खाद्य प्रसंस्करण कृषि क्षेत्र में किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है, वहीं इसकी बदौलत फसल उत्पादन में वृद्धि और उसका मूल्यवर्धन होता है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से उपज का अधिकतम इस्तेमाल हो पाता है और प्रसंस्कृत वस्तुएं उपभोक्ताओं तक सुरक्षित और साफ-सुथरी स्थिति में पहुंच पाती हैं।

इसके अलावा खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और महिलाओं के रोजगार में भी अहम भूमिका निभाता है। कई अन्य पूंजी आधारित उद्योगों की तुलना में यह क्षेत्र ज्यादा रोजगार प्रदान करता है। अन्य क्षेत्रों में स्वचालन, रोबोट जैसी उभरती प्रौद्योगिकी से रोजगार के खतरे को देखते हुए बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की अहमियत बढ़ गई है।

खाद्य प्रसंस्करण अतिरिक्त उत्पादन का कुशलता से उपयोग करने और खाद्य अपशिष्ट को कम करने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। मौजूदा छोटे खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को वित्त, तकनीक और अन्य तरह की मदद पहुंचाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने पूरे देश के स्तर पर एक ह्लकेंद्रीय प्रायोजित पीएम फॉर्मलाइजेशन आॅफ माइक्रो फूड प्रोससिंग एंटरप्राइज योजनाह्व की शुरूआत की है।

इस योजना के तहत 2020-21 से 2024-25 तक दस हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। यह राज्यों की जिम्मेदारी होगी कि वे कच्चे माल की उपलब्धता का ध्यान रखते हुए हर जिले के लिए एक खाद्य उत्पाद की पहचान करें। ऐसे उत्पादों की सूची में आम, आलू, लीची, टमाटर, साबूदाना, कीनू, पेठा, पापड़, अचार, बाजरा आधारित उत्पाद, मछली पालन, मुर्गी पालन भी शामिल हैं। एक जिला-एक उत्पाद के आधार पर चुने गए उत्पादों का उत्पादन करने वाले उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर मदद सुनिश्चित की गई है। छोटे प्रसंस्करण उद्योगों और समूहों के लिए ब्रांड विकसित करने के लिए भी सहायता सुनिश्चित की गई हैं।

यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार ने फसल कटाई के बाद की सुविधाएं और शीतगृह का बुनियादी ढांचा विकसित करने का उद्देश्य रखने वाली इकाइयों के लिए सौ फीसद विदेशी निवेश (एफडीआइ) की इजाजत दी है। खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार आपूर्ति क्षेत्र को भी बुनियादी ढांचे का दर्जा दे चुकी है। इससे सस्ते कर्ज के साथ निर्यात में प्रतिस्पर्धी माहौल बना है।

यह भी उल्लेखनीय है कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अंतर्गत अंगूर, आम, केला, प्याज, चावल, पोषक तत्व वाले अनाज, अनार और फूलों की खेती के लिए ईटीएफ का गठन किया गया है। मौजूदा ‘कृषि-समूहों’ को मजबूत करने और थोक मात्रा और आपूर्ति की गुणवत्ता की खाई पाटने के लिए अधिक उत्पाद-विशेष वाले समूह बनाने पर भी जोर दिया गया है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए जिस एक लाख करोड़ रुपए की वित्तपोषण सुविधा को शुरू किया है, उससे कृषि खाद्य प्रसंस्करण बढ़ाने में मदद मिलेगी।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बढ़ती आर्थिक संभावनाओं का लाभ लेने के लिए जरूरी है कि इस क्षेत्र की बाधाओं को दूर किया जाए। ग्राम स्तर पर खाद्य सामग्रियों की भंडारण क्षमता अधिकतम की जानी चाहिए। इससे न सिर्फ खाद्य नुकसान घटाने में मदद मिलेगी, बल्कि ग्रामीण आबादी को आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद मिलेगी। अच्छी भंडारण सुविधाओं से किसानों को कई तरह से अपनी उपज को लाभदायी बनाने में मदद मिल सकेगी, जिनमें अनाज को मंडियों, सहकारी समितियों और स्थानीय व्यापारियों को बेचना भी शामिल है।

इसके अलावा छोटे कृषि प्रसंस्करण उद्योगों से जुड़े किसानों के लिए कम अवधि वाली नगदी सुविधा बढ़ाई जानी होगी। साथ ही, सामूहिकता को बढ़ावा देने, कृषि आधारित अधिक खाद्य प्रसंस्करण समूह स्थापित करने, विभिन्न चरणों में नियमित रूप से बुनियादी ढांचे की सुविधा को बनाए रखने, कच्चे माल के आपूर्तिकतार्ओं और प्रसंस्करण इकाइयों के बीच मजबूत संबंध बनाने के लिए बाजारों का गांवों से संपर्क बेहतर करने के काम को प्राथमिकता भी दी जानी होगी। लेकिन सबसे पहला कदम फसलों की कटाई के बाद फसल की बरबादी रोकने का हो, तभी बेहतर खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता प्रमाणन व्यवस्था, तकनीकी उन्नयन, आपूर्ति सुधार जैसे कदमों का लाभ मिल पाएगा।