सुशील कुमार सिंह

भले ही देश में एक सौ बीस करोड़ मोबाइल फोन इस्तेमाल हो रहे हों और करीब पैंसठ करोड़ लोगों तक इंटरनेट पहुंच उपलब्ध हो, मगर घटती आय और बढ़ती महंगाई के साथ ही जीवन की सुगमता में समावेशी चुनौतियों ने वित्तीय प्रौद्योगिकी क्रांति और नवाचार के व्यापक प्रसार को भी चुनौती दे डाली है।

मौजूदा समय में भारत में वित्तीय समावेशन के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मुख्य धुरी के रूप में देखा जा सकता है। प्रौद्योगिकी की दृष्टि से देखें तो भारत तेजी से बदल रहा है। वित्तीय क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली तकनीक (फाइनेंशियल टेक्नोलाजी यानी फिनटेक) इस दिशा में एक और बड़ा उदाहरण है। हाल में डिजिटल मुद्रा यानी ई-रुपया भी लेनदेन में आए बदलाव का मजबूत उदाहरण है।

गौरतलब है कि चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत एशिया में वित्तीय प्रौद्योगिकी के सबसे बड़े बाजार के रूप में उभरा है। वित्तीय प्रौद्योगिकी वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता के समावेशन के साथ वित्तीय समायोजन के लक्ष्यों की प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण संदर्भ भी है। अब ऐसी स्थिति है कि बड़े-बड़े माल से लेकर सड़क के किनारे छोटी-मोटी दुकानें, पटरी पर सब्जी बेचने वाले, रेहड़ी वाले आदि तमाम डिजिटल भुगतान स्वीकार कर रहे हैं।

खास बात यह भी कि बैंकों से निकाले जाने वाली नकद धनराशि के मुकाबले मोबाइल से किए जाने वाले भुगतान की राशि कहीं ज्यादा है। इसी क्रम में देखें तो ‘फास्टैग’ की स्वचालित व्यवस्था लागू होने के बाद टोल टैक्स भुगतान भी अब बाकायदा डिजिटल हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि डिजिटल इंडिया से नवाचार के नए मार्ग खुले हैं और वित्तीय प्रौद्योगिकी के चलते जीवन की सरलता में जबरदस्त बदलाव आया है। बावजूद इसके समावेशी ढांचा जिस कदर बुनियादी तौर पर अभी भी कमजोर और जर्जर है, उसे देखते हुए नवाचार की इस सशक्तता को व्यापक ऊंचाई देना एक चुनौती भी है।

गौरतलब है कि वित्त और प्रौद्योगिकी के गठजोड़ को वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) कहा जाता है। अमेरिका में रिपब्लिक पार्टी के सीनेटर स्टीव वेंस ने जून, 2021 में कहा था कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला बाजार है और वित्तीय नवाचार के मामले में अमेरिका से काफी आगे है। भारत की जनसंख्या चीन के बाद दुनिया में सर्वाधिक है और ऐसे में तकनीकी बाजार को यदि मजबूती मिले तो यह विकसित देशों की तुलना में स्वाभाविक रूप से बड़ा हो जाता है।

वैसे देखा जाए तो भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते वित्तीय प्रौद्योगिकी बाजारों में से एक है। भारत द्वारा 2020 में किया गया कुल तत्काल भुगतान चीन की तुलना में लगभग दस अरब अमेरिकी डालर अधिक था और जबकि चीन की तुलना में अमेरिका कहीं पीछे है। फिनटेक ऐसी वित्तीय कंपनियां हैं जो काम में तेजी लाने और लागत में कटौती के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं।

वित्तीय प्रौद्योगिकी वास्तव में उपभोक्ताओं को बेहतर वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी समन्वय भी है और मुख्य रूप से आय, निवेश, बीमा और संस्थागत ऋण के चार स्तंभों पर आधारित है। देखा जाए तो भारत सरकार ने जब 2009 में आधार कार्ड परियोजना शुरू की तो आवश्यक तकनीकी बुनियादी ढांचा बनाना और देश के सुदूर क्षेत्रों में रह रहे भारतीयों तक पहुंच पाना बड़ी चुनौती थी।

इस समय देश में अस्सी फीसद लोगों का बैंक खाता है। मैककिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने मार्च 2014 में जारी रिपोर्ट डिजिटल इंडिया में कहा था कि भारत में तेजी से डिजिटलीकरण लागू करने की प्रक्रिया को गति देने में सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी भूमिका रही है। अनुमान है कि देश में अभी डिजिटल क्रांति की शुरुआत है। साल 2022 और आगे के वर्षों में इसमें कई बड़ी और नई संभावनाएं हैं। भारत में 2003 से अब तक डिजिटल भुगतान में दस गुना की वृद्धि हुई है। अनुमान यह भी है कि साल 2025 तक छब्बीस लाख नए रोजगार पैदा होंगे।

तकनीकी तौर पर भारत कहीं पीछे नहीं है, मगर अशिक्षा और बेरोजगारी के साथ-साथ बढ़ती गरीबी ने समावेशी ढांचे को एक बेहतर अनुकूलन देने में रुकावट का काम किया है। भले ही देश में एक सौ बीस करोड़ मोबाइल फोन इस्तेमाल हो रहे हों और करीब पैंसठ करोड़ लोगों तक इंटरनेट पहुंच उपलब्ध हो, मगर घटती आय और बढ़ती महंगाई साथ ही जीवन की सुगमता में समावेशी चुनौतियों ने वित्तीय प्रौद्योगिकी क्रांति और नवाचार के व्यापक प्रसार को भी चुनौती दे डाली है।

दो साल पहले ही भारत आनलाइन लेनदेन के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर था, जबकि भारत से अधिक जनसंख्या वाला चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर है और तेंतीस करोड़ आबादी वाला अमेरिका चीन के मुकाबले भी लगभग दस गुना पीछे चल रहा है। दक्षिण कोरिया, इंग्लैण्ड और जापान भी डिजिटल लेनदेन के मामले में भारत से काफी पीछे हैं। उम्मीद है कि 2026 तक भारत का डिजिटल लेनदेन पचहत्तर लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा। वित्तीय प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की कामयाबी के और भी आयाम हैं।

जैसे बैंकों द्वारा तेजी से डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाया जाना, इंटरनेट सस्ता होना, मोबाइल फोन आमजन की पहुंच में होना, साथ ही रुपए के नकद लेनदेन के मामले में सरकार की ओर से सीमा निर्धारित करना आदि। वर्तमान में वित्तीय प्रौद्योगिकी में एक नया क्षेत्र भी लोकप्रिय हो रहा है जिसे ‘अभी खरीदो, बाद में भुगतान करो’ (बाइ नाउ, पे लेटर) नाम दिया गया है। पड़ताल बताती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था समावेशी विकास पर केंद्रित रही है। आठवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान जब 1992 में उदारीकरण के बाद देश में लागू हुई तो उसका स्वरूप भी समावेशी विकास ही था। तब से अब तक सामाजिक क्षेत्र, रोजगार सृजन और प्रौद्योगिकी नवाचार पर जोर दिया जा रहा है।

पिछले एक दशक में वित्तीय प्रौद्योगिकी सबसे तेजी से वृद्धि करने वाले और नवाचार को सबसे अधिक बढ़ावा देने वाले उद्योगों में शुमार हो गई है। वैसे दुनिया भर में यह उद्योग अर्थव्यवस्था का काम करने का तरीका बदल रहा है। लगातार नए उत्पाद और नई प्रणालियों के साथ कारोबार के नए-नए रास्ते भी इससे खुल रहे हैं। वित्तीय प्रौद्योगिकी की बदौलत अब ज्यादातर काम घर बैठे ही हो जाते हैं।

आधी रात को पैसा भेजने से लेकर तमाम वित्तीय काम आसान हो गए हैं। गौरतलब है कि यूपीआइ का चलन पहले नोटबंदी और उसके बाद कोविड में पूर्णबंदी के दौरान तेजी से आगे बड़ा। यूपीआइ की शुरुआत 2016 में हुई थी। सौ करोड़ के लेनदेन की उपलब्धि अक्तूबर 2019 में शुरू हो चुकी थी। मगर साल भर के भीतर ही हर महीने दो सौ करोड़ का आंकड़ा पहुंच गया और अब तो यह चार सौ करोड़ के पार चला गया है। यूपीआइ चौबीस घंटे में रकम भेजने वाली सुविधा है और फिनटेक की कहानी को उछाल देने की एक बेहतर तकनीक है।

प्रौद्योगिकी को आर्थिक और सामाजिक प्रगति का बड़ा हथियार मानने वाली सरकार ने स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिए नवाचार को बहुत प्रोत्साहित किया। वित्तीय प्रौद्योगिकी को लेकर शहरी बाजार में तो तेजी है, मगर अभी यह सुविधा ग्रामीण बाजारों तक मामूली ही पहुंची है। संदर्भ यह भी है कि वर्तमान में भारत साइबर हमलों के विरुद्ध सुरक्षात्मक और आक्रामक दोनों क्षमताओं की दृष्टि से लगभग पूरी तरह आयात पर ही निर्भर करता है।

देखा जाए तो देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी की स्वीकार्यता और इसकी पहुंच में व्यापक वृद्धि के चलते भारत के लिए इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना बहुत जरूरी है। फिलहाल वित्तीय प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना समय की मांग है। साथ ही असीम संभावनाओं के बल पर ही फिनटेक और इससे जुड़ा आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र सबल, सफल और प्रभावी माध्यम बन सकेंगे और लोग अपनी सामाजिक-आर्थिक प्रगति को देखते हुए इस पर भरोसा भी जता सकेंगे।