योगेश कुमार गोयल
बच्चों के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक में आवाजें उठती रही हैं। पर दुख की बात यह है कि इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने की वजह से यह बुराई फैलती ही जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले साल पूर्णबंदी लागू होने के बाद से बाल अश्लील सामग्री की आनलाइन मांग में जबर्दस्त वृद्धि देखने को मिली।
हाल में दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध शाखा ने बाल यौन शोषण सामग्री के खिलाफ बड़ा अभियान ‘आपरेशन मासूम’ चला कर छत्तीस घंटे के भीतर पनचानवे लोगों को गिरफ्तार किया। इससे यह पता चलता है कि बच्चों के यौन शोषण और अश्लील सामग्री का धंधा किस तेजी से पैर पसार चुका है। गूगल के अलावा वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर भी बाल यौन शोषण से जुड़ी सामग्री की भरमार समाज और सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है। जाहिर है, बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं।
दिल्ली पुलिस ने यह कार्रवाई राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से मिली सूचनाओं के आधार पर की थी। एनसीआरबी का एनसीएमईसी (नेशनल सेंटर फार मिसिंग एंड एक्सप्लाइटेड चिल्ड्रन) नामक एक संगठन के साथ करार है, जो सोशल मीडिया पर बारीकी से नजर रखता है और बच्चों के यौन शोषण व अश्लील गतिविधियों को चिन्हित कर आइपी (इंटरनेट प्रोटोकाल) पते की मदद से संबंधित व्यक्तियों तक पहुंचता है और एनसीआरबी को इसकी सूचना देता है। एनसीआरबी इसकी सूचना पुलिस को देता है, ताकि अपराधियों तक पहुंचा जा सके।
आज दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जो बाल यौन शोषण की समस्या से ग्रस्त न हो। इसलिए यह समस्या वैश्विक स्तर पर भी गंभीर चिंता का विषय बन गई है। बच्चों के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक में आवाजें उठती रही हैं। पर दुख की बात यह है कि इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने की वजह से यह बुराई फैलती ही जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले साल पूर्णबंदी लागू होने के बाद से बाल अश्लील सामग्री की आनलाइन मांग में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली। दिसंबर 2019 के दौरान इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की मांग सौ शहरों में औसतन पचास लाख प्रतिमाह थी, लेकिन पूर्णबंदी के बाद इसका उपभोग पनचानवे फीसद से भी ज्यादा बढ़ गया।
न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल इंटरनेट पर बाल यौन शोषण से संबंधित करीब दो करोड़ मामले सामने आए। इसके शिकार पीड़ित बच्चों में हालांकि लड़के और लड़कियां दोनों ही हैं, लेकिन इनमें लड़कियों का अनुपात काफी ज्यादा होता है। इंटरपोल के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2017 से 2020 के बीच तीन वर्षों में आनलाइन बाल यौन शोषण के चौबीस लाख से ज्यादा मामले सामने आए थे, जिनमें से अस्सी प्रतिशत पीड़ित चौदह साल से कम उम्र की लड़कियां थीं। हालांकि बाल यौन शोषण से निपटने में इंटरपोल काफी सक्रिय है। पिछले कुछ महीनों में इंटरपोल और इंटरनेट वाच फाउंडेशन की मदद से केंद्र सरकार को बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री वाली साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा वेबसाइटों को बंद करने में सफलता मिली थी, लेकिन इसके बावजूद इंटरपोल के डाटा से स्पष्ट है कि आनलाइन बाल यौन शोषण सामग्री और उसके ग्राहक तेजी से बढ़ रहे हैं।
एनसीआरबी के मुताबिक वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में यौन उत्पीड़न को चित्रित करने वाली सामग्री के प्रकाशन एवं प्रसारण में करीब पांच गुना वृद्धि हुई। बाल शोषण के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। नासूर बनती इस समस्या के मद्देनजर दिल्ली पुलिस की कार्रवाई से कुछ ही दिनों पहले सीबीआइ ने भी बड़ी कार्रवाई करते हुए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, आंध्र प्रदेश, ओड़ीशा सहित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सतहत्तर स्थानों पर छापेमारी करते हुए कई लोगों को हिरासत में लिया था।
दरअसल जांच में देशभर में ऐसे सत्तर से ज्यादा शहरों की पहचान हुई थी, जहां से बाल यौन शोषण कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा था। सीबीआइ जांच के दायरे में पचास से भी ज्यादा ऐसे इंटरनेट मीडिया समूह थे, जिनमें पांच हजार से भी अधिक अपराधी पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नाइजीरिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, यमन, मिस्र आदि कई देशों में स्थित आरोपियों के साथ बाल शोषण सामग्री साझा कर रहे थे। इनमें से कई समूहों में विदेशी नागरिकों की भी संलिप्तता भी सामने आई और इनमें कम से कम सौ देशों के लोगों के शामिल होने का अंदेशा है।
सोशल मीडिया या अन्य किसी माध्यम से साझा की गई अश्लील सामग्री के आधार पर इसे साझा करने वालों को भुगतान किया जाता है, ताकि ऐसी सामग्री को ज्यादा से ज्यादा इंटरनेट मीडिया समूहों में साझा करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके और बड़े पैमाने पर इसका प्रसार हो सके। इसलिए इस धंधे में लगे लोगों को पकड़ना और उनके खिलाफ कार्रवाई करना किसी भी कानून प्रवनर्तन एजंसी के लिए कम चुनौतीभरा नहीं है। हालांकि ऐसे अपराधों से निपटने के लिए संबंधित एजंसियों ने साफ्टवेयर बनाए हैं जो किसी भी इंटरनेट साइट पर बाल अश्लीलता से संबंधित कोई फोटो या वीडियो अपलोड होते ही उससे जुड़ी जानकारी हासिल कर लेते हैं और संबंधित एजेंसियां फोटो तथा वीडियो साइट देख कर पता लगा लेती हैं कि वे किस मोबाइल या लैपटाप से इंटरनेट पर डाले गए हैं।
बाल यौन शोषण व अश्लील सामग्री मामलों में अपराध साबित हो जाने पर कम से कम पांच साल की सजा का प्रावधान है। साथ ही दोषियों पर लाखों रुपए का जुर्माना भी किया जा सकता है, लेकिन आरोपी प्राय: कानूनी दांव-पेंच से बच निकलते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा 67 के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी को अपराध घोषित करते हुए पहली बार यह अपराध करने के लिए पांच साल का कारावास और दस लाख रुपए जुर्माना और उसके बाद भी अपराध करने पर सात साल कारावास और दस लाख के जुर्माने का प्रावधान किया गया था। पाक्सो अधिनियम (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012) में भी बाल अश्लीलता के लिए कठोर दंड का प्रावधान है। इस अधिनियम में बच्चों के यौन अंगों के चित्रण, वास्तविक अथवा नकली यौन गतिविधियों में बच्चे की भागीदारी और बच्चे के अभद्र या अनुचित चित्रण सहित किसी भी प्रकार के उपयोग को अपराध माना गया है।
दरअसल अश्लील सामग्री के उपभोग की प्रवृत्ति बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों के एक बड़े कारण के रूप में सामने आई है। ऐसी सीमग्री देखने और खरीदने वाले लोग ज्यादातर मामलों में मासूम बच्चों के साथ यौनाचार जैसे मामलों में लिप्त पाए गए हैं। इसके लिए गरीब परिवारों के बच्चों की खरीद-फरोख्त होती है। बाल यौन शोषण का दायरा केवल बलात्कार अथवा गंभीर यौन आघात तक ही नहीं सिमटा है, बल्कि बच्चों को इरादतन यौनिक कृत्य दिखाना, गलत इरादे से छूना, अनुचित कामुक बातें करना, जबरन यौन कृत्य के लिए विवश करना, प्रलोभन देकर अशलील तस्वीरें, वीडियो आदि बनाने जैसे कृत्य भी बाल अश्लीलता और यौन शोषण के दायरे में आते हैं। चूंकि बच्चे इन कृत्यों का प्रतिरोध करने में सक्षम नहीं होते, इसलिए वे इन अनैतिक कृत्यों में लिप्त अपराधियों के लिए बहुत आसानी से निशाना बन जाते हैं।
बाल यौन शोषण और दुवर््यवहार के खिलाफ देश में 2012 में पारित यौन अपराध के खिलाफ बच्चों के संरक्षण कानून सहित व्यापक कानूनी ढांचा है और ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का भी प्रावधान है, लेकिन तकनीकी चूक, कार्यान्वयन में अनियमितता तथा त्वरित कार्रवाई नहीं होने के कारण ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। बहरहाल, बच्चे चूंकि किसी भी राष्ट्र के विकास और उत्थान की नींव होते है और इस नींव की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है कि बाल यौन शोषण जैसी नासूर बनती समस्या के उन्मूलन के लिए बेहद कठोर उठाए जाएं।