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प्राचीन भारत में खाना सिर्फ पेट भरने का काम नहीं था—यह शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करने की प्रक्रिया थी। भोजन के हर कौर में विज्ञान भी था और आध्यात्मिकता भी। खाने का तरीका, बर्तन, सामग्री और यहां तक कि भोजन से पहले का व्यवहार—हर चीज का अपना अर्थ था। चलिए जानते हैं क्यों भारत के हर हिस्से में खाना इतना अलग है? (Photo Spource: Pexels)
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क्यों भारत में हर क्षेत्र का खाना अलग है?
क्योंकि हमारी धरती अपने मौसम और मिट्टी के हिसाब से हमारे शरीर को पोषण देती थी। इसलिए हर इलाके का खाना वहां के लोगों की शारीरिक जरूरतों के अनुरूप था। (Photo Spource: Pexels) -
उत्तरी भारत – ठंड का कवच
उत्तर भारत की सर्द जलवायु ने घी, गेहूं, दाल, मसाले और दूध से बने भोजन को जन्म दिया। जहां घी शरीर को गर्म रखता है, गेहूं ऊर्जा देता है, वहीं मसाले ठंडक के असर को कम करते हैं। यही वजह है कि यहां की रोटियों, पराठों और पनीर-आधारित व्यंजनों में गर्माहट भरी होती है। (Photo Spource: Pexels) -
दक्षिण भारत – नमी और गर्मी का संतुलन
दक्षिण में चावल, नारियल, इमली और दही (मठा) का मेल सिर्फ स्वाद नहीं—शरीर को ठंडक देने की प्राकृतिक व्यवस्था है। जहां चावल हल्का और पचने में आसान होता है, नारियल पानी, नारियल तेल, नारियल दूध—सब शरीर को ठंडा रखते हैं, वहीं मठा और सांभर पाचन को संतुलित करते हैं। (Photo Spource: Pexels) -
पूर्वी भारत – नमी में राहत देने वाला भोजन
पूर्व की भूमि—विशेषकर बंगाल, ओडिशा, असम—नदियों और नमी से भरी है। जहां मछली का सेवन ओमेगा-3 का प्राकृतिक स्रोत है, चावल ऊर्जा और हल्कापन देता है, वहीं गुड़ और मिठाइयों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री शरीर को सुखद गर्माहट देती है। यहां का भोजन मन और पेट दोनों को आराम देता है। (Photo Spource: Pexels) -
पश्चिमी भारत – गर्मी और सूखे का संगम
राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के भोजन में टिकाऊ, सूखे और पौष्टिक आहार का जलवा है। जहां बाजरा, ज्वार, मक्का जैसी मिलेट्स लंबे समय तक ऊर्जा देती हैं, अचार, बड़ी, पापड़—कम पानी वाले क्षेत्रों में खाने को संरक्षित रखने का तरीका, वहीं मसाले और सूखे मेवे शरीर को गर्मी से बचाते हैं। (Photo Spource: Pexels) -
तेल भी मौसम के हिसाब से तय था – स्वाद नहीं, चिकित्सा
भारत में किसी भी क्षेत्र में कौन सा तेल इस्तेमाल होगा, यह मौसम और शरीर की जरूरत पर आधारित था। जैसे – नारियल तेल दक्षिण की गर्मी को शांत करता है, सरसों का तेल बंगाल और पूर्व की नमी से रक्षा करता है। (Photo Spource: Pexels) -
तिल का तेल दक्षिण और पश्चिम में शरीर को गर्मी देता है, वहीं घी उत्तर की ठंड में रक्षा कवच की तरह काम करता है। तेल सिर्फ स्वाद नहीं, यह उस भूमि की प्राकृतिक दवा थी। (Photo Spource: Pexels)
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हमारे भोजन की रीति-रिवाज़—पुरखों का विज्ञान
पत्ता परोसना
केला, साल, पीपल—इन पत्तों में एंटीबैक्टीरियल गुण होते थे और ये शरीर की pH को संतुलित करते थे। (Photo Spource: Pexels) -
पीतल–तांबे के बर्तन
ये धातुएं भोजन में ट्रेस मिनरल छोड़ती थीं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते थे। (Photo Spource: Pexels) -
हाथ से खाना
उंगलियों के स्पर्श से दिमाग को संकेत मिलता था कि भोजन आने वाला है—जिससे लार और डाइजेस्टिव एंजाइम सक्रिय होते थे। (Photo Spource: Pexels) -
भोजन से पहले प्रार्थना
खाना शुरू करने से पहले का आभार भाव मन को शांत करता था और शरीर भोजन को बेहतर तरीके से ग्रहण करता था। (Photo Spource: Pexels) -
हमारी परंपराएं ही हमारी न्यूट्रिशनिस्ट थीं
उत्तर में व्रत – शरीर को डिटॉक्स; दक्षिण में फर्मेंटेड भोजन (जैसे-इडली, डोसा, अंबली)– गट हेल्थ; पूर्व में मिठास – ऊर्जा और मन की संतुलन; पश्चिम में मसाले – पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता। (Photo Spource: Pexels) -
हर परंपरा में विज्ञान और अनुभव दोनों का मेल होता है। भारत में खाना सिर्फ इच्छा पूरी करने के लिए नहीं, बल्कि शरीर को ऊर्जा देने के लिए था। हमारे यहां खाना एक तरह की प्रार्थना है। धरती, मौसम, शरीर और आत्मा—इन सबका मेल ही भोजन को विशेष बनाता था। आज हम सिर्फ कैलोरी गिनने में लगे हैं, शायद अब समय आ गया है कि हम जागरूकता गिनना शुरू करें। क्योंकि जो कुछ आपके आसपास उगता है, वही सबसे पहले आपके शरीर को लाभ पहुंचाता है। (Photo Spource: Pexels)
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