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योग की दुनिया में सूर्य नमस्कार को अक्सर एक शारीरिक व्यायाम या फिटनेस रूटीन के रूप में देखा जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसके पीछे एक गहरी पौराणिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक कथा छिपी है, एक ऐसी कथा, जिसकी जड़ें भगवान हनुमान की गुरु-भक्ति और सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता में हैं। (Photo Source: Freepik)
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जब हनुमान ने सूर्य को बनाया गुरु
बाल्यकाल में सूर्य को फल समझकर निगलने वाले हनुमान बड़े होकर ज्ञान की खोज में थे। उनकी माता अंजना ने सुझाव दिया, “सूर्यदेव से शिक्षा लो। वे पूरे संसार का भ्रमण करते हैं, सब कुछ देखते हैं, वेदों के ज्ञाता हैं।” (Photo Source: Freepik) -
हनुमान सूर्यदेव के पास पहुंचे और उन्हें गुरु बनाने का निवेदन किया। सूर्यदेव ने कहा, ठमेरा एक क्षण भी रुकना संभव नहीं। मैं निरंतर गतिमान हूं। ऐसे में पढ़ाना संभव नहीं। हनुमान ने उत्तर दिया, “यदि आप चलते रहेंगे, तो मैं भी आपके साथ चलता रहूंगा।” (Photo Source: Freepik)
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पीछे की ओर चलता शिष्य
सूर्य देव हनुमान की लगन से प्रसन्न हुए और उन्होंने चुनौती स्वीकार की। हालांकि, उन्होंने शर्त रखी कि यदि हनुमान उनकी गति के साथ रह पाएं, तभी शिक्षा देंगे। हनुमान सूर्य के सामने मुख करके उड़ने लगे, पीछे की ओर, क्योंकि गुरु की ओर पीठ करना अनुचित माना जाता है। (Photo Source: Freepik) -
सूर्यदेव चलते-चलते शास्त्रों का ज्ञान देते गए और हनुमान उसे ग्रहण करते गए। गुरु की ओर मुख करके पीछे की ओर चलना, यह विनम्रता और समर्पण का प्रतीक था। कहा जाता है कि हनुमान की यही पीछे की ओर गतिशील यात्रा सूर्य नमस्कार की प्रेरणा बनी। (Photo Source: Freepik)
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इसी निरंतर गति, झुकाव, उठान और प्रवाह को कई योगाचार्य सूर्य नमस्कार की मूल प्रेरणा मानते हैं। आज भी जब हम सूर्य नमस्कार करते हैं, तो आसनों के प्रवाह में हम मैट के आगे से पीछे की ओर पहुंच जाते हैं और फिर आगे लौटते हैं, मानो उसी शाश्वत यात्रा की पुनरावृत्ति हो। (Photo Source: Freepik)
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गुरु दक्षिणा बनी सूर्य नमस्कार
हनुमान ने केवल एक सप्ताह में सभी वेदों में निपुणता प्राप्त कर ली। जब गुरु दक्षिणा का समय आया, सूर्यदेव ने कुछ भी लेने से मना कर दिया। तब हनुमान बोले, “यदि कुछ नहीं ले सकते, तो मैं आपको अपने नमस्कार अर्पित करता हूं।” यही नमस्कार आगे चलकर सूर्य नमस्कार के रूप में प्रतिष्ठित हुआ, एक शिष्य की अपने गुरु और सूर्य के प्रति कृतज्ञता। (Photo Source: Freepik) -
12 मंत्र, 12 आसन, 12 सूर्य अवस्थाएं
आगे चलकर ऋषि कण्व ने सूर्य नमस्कार को एक पूर्ण साधना का रूप दिया। उन्होंने 12 आसनों के साथ 12 मंत्र जोड़े, जो सूर्य की 12 मासिक अवस्थाओं का प्रतीक हैं। परंपरागत रूप से यह साधना गायत्री मंत्र से आरंभ, 12 मंत्रों और आसनों के प्रवाह में, और अंत में पूर्ण समर्पण के भाव से संपन्न होती है। (Photo Source: Freepik) -
व्यायाम से साधना तक
समय के साथ सूर्य नमस्कार का आध्यात्मिक पक्ष धुंधला होता गया और इसे मुख्य रूप से फिटनेस रूटीन के रूप में देखा जाने लगा। लेकिन मूल रूप में यह केवल शरीर को नहीं, बल्कि मन को संतुलित करता है, चक्रों को जाग्रत करता है, और आत्म-जागरूकता को गहरा करता है। यदि इसे मंत्र, श्वास और भाव के साथ किया जाए, तो यह एक पूर्ण योग-साधना बन जाता है। (Photo Source: Freepik)
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