अमेरिका भारत को 145 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर तोपें बेचने के लिए तैयार हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटगन ने इस संबंध में स्वीकृति पत्र भारतीय डिफेंस मिनिस्ट्री को भेज दिया है। फाइनल कॉन्ट्रेक्ट 180 दिन के अंदर तैयार कर लिया जाएगा। अमेरिका के साथ तोपों की खरीद को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही थी। इन तोपों की पहली खेप भारत को सीधे तौर पर भेजी जाएगी। इसके बाद की तोपें तीन साल के अंदर भारत में ही तैयार की जाएंगी। आगे पढ़ें, हॉवित्जर तोप में क्या है खास? -
पेंटागन ने हॉवित्जर तोपों से संबंधित डील का स्वीकृति पत्र इंडियन डिफेंस मिनिस्ट्री को भेज दिया है। इन तोपों की पहली खेप भारत को सीधे तौर पर भेजी जाएगी। इसके बाद की तोपें तीन साल के अंदर भारत में ही तैयार की जाएंगी। डील के 30 पसरेंट हिस्से को भारत में इन्वेस्ट किया जाएगा।
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हॉवित्जर तोपें दूसरी तोपों के मुकाबले काफी हल्की हैं। इनको बनाने में टाइटेनियम का इस्तेमाल किया गया है। यह 25 किलोमीटर दूर तक बिल्कुट सटीक तरीके से टारगेट हिट कर सकती हैं।
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चीन से निपटने में तो ये तोपें काफी कारगर साबित हो सकती हैं। भारत ये तोपें अपनी 17 माउंटेन कॉर्प्स में तैनात कर सकता है।
भारत बोफोर्स का अपग्रेडेड वर्जन धनुष नाम से भारत में तैयार कर रहा है। इसका फाइनल ट्रायल चल रहा है। 1260 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में 114 का ट्रायल चल रहा है। जरूरत 414 तोपों की है। -
500 करोड़ रुपए के सेल्फ प्रोपेल्ड गन का कॉन्ट्रेक्ट तैयार है। इसे एलएंडटी और सैमसंग टैकविन बनाएंगी।
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अगस्त 2013 में अमेरिका ने हॉवित्जर का नया वर्जन देने की पेशकश की। कीमत थी 885 मिलियन डॉलर।
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अमेरिका ने इस तोप को अफगानिस्तान और इराक में तैनात किया था। जहां इसकी ताकत को पूरी दुनिया ने देखा।
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हॉवित्जर की सबसे बड़ी खासियत है इसका वजन कम होना। लेकिन वजन कम होने से इसकी मारक क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता। अलबत्ता इसे दुर्गम से दुर्गम इलाकों में हेलिकॉप्टर से पहुंचाना आसान हो जाता है।
हॉवित्जर तोप डील के साथ ही अमेरिका, रूस, इजराइल और फ्रांस को पीछे छोड़कर भारत को आर्म्स सप्लाइ करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। 2007 से अब तक भारत और अमेरिका के बीच 13 बिलियन डॉलर की आर्म्स डील हो चुकी हैं।