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पुरानी दिल्ली के हर गली-मोहल्ले की अपनी एक कहानी है। संकरी गलियों, ऐतिहासिक इमारतों और पारंपरिक बाजारों के बीच छिपी हुई ये कहानियां दिल्ली की विरासत को बयां करती हैं। चलिए आपको इन्हीं में से कुछ खास जगहों के नामों के पीछे की दिलचस्प कहानियां बताते हैं। (Indian Express Photo)
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चावड़ी बाजार
चावड़ी बाजार को आज दिल्ली में शादी के कार्ड और पीतल-तांबे के थोक व्यापार के लिए जाना जाता है। यहां की गलियां हलवा-नागौरी और बेड़मी पूरी जैसी स्वादिष्ट चीजों के लिए भी मशहूर हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस जगह का नाम ‘चावड़ी बाजार’ क्यों पड़ा? (Indian Express Photo) -
इतिहासकार और फिल्मकार सोहेल हाशमी के अनुसार, यह नाम 18वीं सदी के अंत या 19वीं सदी की शुरुआत में पड़ा। उस समय दिल्ली के मुगल बादशाह ने कर वसूली का काम मराठों को सौंप दिया था, क्योंकि वे इसमें अधिक कुशल थे। (Indian Express Photo)
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रोज के काम के बाद कर वसूली करने वाले लोग एक जगह इकट्ठा होते थे, जिसे हिंदी में ‘चौपाल’ कहते हैं। मराठी में इसी तरह की सभा को ‘चावड़ी’ कहा जाता था, और यही नाम धीरे-धीरे इस जगह के लिए प्रचलित हो गया। (Indian Express Photo)
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हौज काजी
पुरानी दिल्ली में हौज काजी एक प्रमुख जगह है। इस स्थान का नाम एक काजी साहब के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने यहां एक हौज (जलाशय) बनवाया था। बाद में इस हौज के चारों ओर एक फव्वारा भी बना। (Indian Express Photo) -
हालांकि, आज यह स्थान दिल्ली मेट्रो के निर्माण में समाहित हो गया है और अब वहां एक कांच की छतरी जैसी संरचना खड़ी है, जिसका असली उद्देश्य किसी को नहीं पता। (Indian Express Photo)
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पुरानी दिल्ली के व्यापार और चोरी के तरीके
पुरानी दिल्ली के बाजारों में दुकानों की संरचना भी बेहद अनूठी थी। पुराने समय में दुकानदार अपनी दुकानों के बाहर नाम की पट्टी नहीं लगाते थे, ताकि चोरों को उनके सामान के बारे में पता न चले। उस दौर में शटर नहीं होते थे, इसलिए दुकानों के दरवाजे बड़े और लकड़ी के हुआ करते थे। (Indian Express Photo) -
सोहेल हाशमी के अनुसार, कई बार लोग रेलवे की पटरियों को चुरा कर बाजार में बेच देते थे। बाद में, जब मेट्रो आई, तो चोरों ने कॉपर वायर चुराने की ओर रुख कर लिया। (Indian Express Photo)
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बल्लीमारान
बल्लीमारान का नाम सुनते ही गालिब की हवेली का ख्याल आता है। लेकिन इस नाम के पीछे की कहानी क्या है? कुछ लोग मानते हैं कि यहां बिल्लियां इतनी अधिक थीं कि उन्हें मारने के लिए खास लोग रखे जाते थे। लेकिन यह बात पूरी तरह गलत है। (Indian Express Photo) -
असल में, इस जगह का नाम ‘बल्ली मार’ से पड़ा। पुराने समय में, जब यमुना नदी चौड़ी और उथली थी, नाविक उसमें चप्पू की जगह लंबी बांस की बल्लियों (Balli) का इस्तेमाल करते थे। ये नाविक ‘बल्ली मार’ कहलाते थे, और इसी कारण यह जगह बल्लीमारान नाम से मशहूर हुई। (Indian Express Photo)
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गालिब की हवेली और चिकित्सा का गढ़
बल्लीमारान वही जगह है, जहां उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब की हवेली स्थित है। उनकी हवेली गली कासिम जान में है। लेकिन गली कासिम जान का नाम किसके नाम पर पड़ा? (Indian Express Photo) -
माना जाता है कि कासिम जान कोई हकीम (वैद्य) थे, क्योंकि इस गली में उस समय बहुत से हकीम रहते थे। प्रसिद्ध हमदर्द कंपनी, जो अब एक बड़ा व्यापारिक ब्रांड बन चुकी है, भी इसी गली से शुरू हुई थी। (Indian Express Photo)
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मस्जिद मुबारक बेगम
इस यात्रा का अंतिम पड़ाव था ‘मस्जिद मुबारक बेगम’। यह मस्जिद एक प्रसिद्ध तवायफ मुबारक बेगम ने बनवाई थी, जो ब्रिटिश अधिकारी डेविड ऑक्टरलॉनी की पत्नी थीं। समय के साथ, इस मस्जिद को ‘रंडी की मस्जिद’ भी कहा जाने लगा, जो उसके अतीत की ओर इशारा करता था। (Indian Express Photo)
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