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उत्तराखंड का लोक पर्व इगास, जिसे बूढ़ी दीपावली भी कहा जाता है, उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा का अहम हिस्सा है। यह पर्व राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को संजोए हुए है और गढ़वाल तथा कुमाऊं क्षेत्र में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसी पर्व की महिमा को बनाए रखने के लिए, हर साल भाजपा सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी अपने आवास पर इसे धूमधाम से मनाते हैं। (PTI Photo)
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इस साल उनके आवास पर आयोजित इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, बाबा रामदेव और कई प्रमुख हस्तियां भी शामिल हुईं। (ANI Photo)
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बता दें, इगास पर्व को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, जो इसे एक खास धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती हैं। माना जाता है कि भगवान राम के लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी की खबर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में दिवाली के 11 दिन बाद पहुंची थी। इसी कारण से गढ़वाल और कुमाऊं में लोग इस दिन को इगास के रूप में मनाते हैं। (ANI Photo)
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इसके अलावा, गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी, जिन्हें ‘माधो सिंह मलेथा’ भी कहा जाता है, से भी इस पर्व की एक महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ी हुई है। करीब 400 साल पहले टिहरी राज्य के राजा महीपति शाह ने माधो सिंह को तिब्बत के साथ युद्ध करने भेजा था। (PTI Photo)
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इस दौरान दिवाली का पर्व भी आया, लेकिन युद्ध में व्यस्तता के कारण माधो सिंह भंडारी और उनके सैनिक इस दिन घर नहीं लौट सके। लोगों ने मान लिया कि वीर माधो सिंह भंडारी और उनके साथी शहीद हो गए हैं, जिसके कारण किसी ने दिवाली नहीं मनाई। (PTI Photo)
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लेकिन दिवाली के ठीक 11वें दिन जब वे विजय प्राप्त करके लौटे, तो इस खुशी में लोगों ने इगास का पर्व मनाया। इगास पर्व के दिन लोग सुबह मीठे पकवान बनाते हैं और शाम को अपने घरों में दीपक जलाते हैं। इस अवसर पर पारंपरिक ढोल-दमाऊं की ध्वनि पर लोग लोकनृत्य करते हैं। (PTI Photo)
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इस दिन एक और खास परंपरा निभाई जाती है, जिसे भैला खेलना कहते हैं। भैला एक प्रकार की जलती हुई मशाल होती है जिसे लोग रस्सी के सहारे घुमाते हैं। यह मशाल न केवल लोगों के उल्लास का प्रतीक है बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्भुत रूप भी है। (PTI Photo)
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