Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर महागठबंधन बनाम एनडीए तय हो चुका है। सभी दलों ने अपने अपने उम्मीदवारों के नाम दे दिए हैं। दिलचस्प बात ये है कि इस बार उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने में बहुत हिचकिचाहट देखी गई है। ऐसा क्यों हुआ इसके पीछे नीतीश, तेजस्वी, चिराग,कांग्रेस भाजपा सबके अपने अपने समीकरण हो सकते हैं और राजनीतिक विश्लेषकों के अपने अपने अनुमान हो सकते हैं। लेकिन मेरे आकलन में महागठबंधन बनाम एनडीए के बीच मुकाबला 30 अप्रैल 2025 को ही बदल गया था। इसलिए सरकार के खिलाफ नाराजगी का जो फायदा महागठबंधन को होना चाहिए था वह हिचकिचाहट में बदल गया और राजनीति में संशय या अनिर्णय की स्थिति का कोई स्थान नहीं होता है।

30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने जनगणना की अधिसूचना जारी की थी। साथ ही सरकार ने कहा कि इस बार की जनगणना में जातिगत जनगणना भी होगा। इस अधिसूचना के आते ही देश में भारी हलचल मच गई।

जातीय जनगणना कराए जाने की मांग को लेकर लंबे समय से मुखर रहे क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस भी इस मामले को लेकर फास्ट हो गई। देश के सभी बुद्धिजीवी और राजनीतिक विश्लेषकों को लगा मानों भारत का राजनीतिक सामाजिक इतिहास बदलने वाला है। जातीय जनगणना के समर्थक लहालोट हो गए मानो, जिसकी जितनी जनसंख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के आधार पर वो अगड़ी जातियों को सत्ता और नौकरियों बेदखल कर देंगे और विरोधी झिलफिला गए कि क्या अब आरक्षण का प्रतिशत और बढ जाएगा? फौरी तौर पर भाजपा का यह निर्णय अगड़ी जातियों में भारी नाराजगी पैदा कर गया। लेकिन जातियां, समाज का हिस्सा हैं और समाज अपने ऐतिहासिक विकास के संदर्भ में सोचता है। आगे बढ़ने से पहले ये जिक्र कर दिया जाए कि इस अधिसूचना से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी रिजर्वेशन में सब क्लासीफिकेशन का आदेश पारित कर दिया था। बसपा समेत कई संगठनों के इस फैसले का विरोध किया पर सरकार ने संविधान संशोधन कर फैसला बदलने की जहमत नहीं उठाई। इसका क्या मतलब निकाला जाए?

आइए, अब वापस बिहार चलते हैं, जहां इन दोनों बड़े फैसले के बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जातीय जनगणना का मांग करने वाली राष्ट्रीय जनता दल और और क्रेडिट लेने में सबसे आगे रहने वाली कांग्रेस का महागठबंधन पूरे जोश से भाजपा, जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी के गठबंधन को हराने में जुटा है। तो क्या एससी एसटी रिजर्वेशन में सब क्लासिफिकेशन के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ भाजपा सरकार का कुछ ना करने से दलित समाज भाजपा से नाराज हैं? और क्या जातीय जनगणना कराने के ऐतिहासिक फैसला लेने से अगड़ी जातियां भाजपा से नाराज हैं और पिछड़ी जातियां इसका क्रेडिट राजद और कांग्रेस को दे रही हैं?

जी नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है। मेरे इस आंकलन की सबसे बड़ी वजह महागठबंधन की अग्रेसिव एंटी भाजपा कैम्पेन वोट चोरी है और उसके बाद राजद का चुनाव प्रचार और टिकट वितरण है। जाति जनगणना पर लीड लेने के बाद भी कांग्रेस और राजद को वोट चोरी जैसे कैम्पेन से बचना चाहिए था जिसका जमीन पर कोई आधार नहीं है। इस इमेज डेंटिंग कैम्पेन से भाजपा से नाराज अगड़ी जातियों के अंदर राजद का सत्ता में आने का भय बैठ गया। और चूंकि कांग्रेस भी पिछड़ा वर्ग की राजनीति कर रही है ऐसे में अगड़ी जातियों के लिए महागठबंधन में कोई विकल्प नहीं दिखता है। और कन्हैया कुमार को फिर से बैक बेंच पर बिठा देने से जो भी जुटान होता वह हाथ से फिसल गया। इस कैम्पेन ने महागठबंधन की हवा पंचर कर दी, लिहाजा तेजस्वी को वापस नौकरी पर आए लेकिन टिकट वितरण में गच्चा खा गए। तेजस्वी के प्रचार में राहुल गांधी भी नहीं मानो उन्हें अगड़ी जाति को वोट ही नहीं चाहिए।

आरजेडी की लिस्ट में यादव जाति के 52 उम्मीदवार

राजद की लिस्ट में सबसे अधिक 52 उम्मीदवार यादव जाति के हैं और 18 उम्मीदवार मुस्लिम हैं। कुशवाहा जाति से 13 और 2 कुर्मी हैं। जबकि अगड़ी जाति के 16 उम्मीदवार हैं, इनमें 7 राजपूत, 6 भूमिहार और 3 ब्राह्मण उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट में 8 भूमिहार, 6 ब्राह्मण, 5 राजपूत समेत 19 अगड़ी जाति के हैं, तो 4 यादव समेत 10 पिछड़े वर्ग से और 6 ईबीसी से हैं। कांग्रेस ने पांच सीटों मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं।

बीजेपी ने थोक भाव से अगड़ी जातियों को टिकट दिया

बीजेपी ने अपने कोटे के 101 उम्मीदवारों में थोक भाव से अगड़ी जातियों को टिकट दिया है और पिछड़े वर्ग का संतुलन बनाने की कोशिश की है। बीजेपी ने 22 राजपूत,17 भूमिहार, 11 ब्राह्मण और 1 कायस्थ 13 वैश्य उम्मीदवार को टिकट दिया है जबकि ओबीसी वर्ग से 49 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है इनमें 6 सीट पर यादव, सात पर कुशवाहा, दो पर कुर्मी और इबीसी वर्ग से 10 उम्मीदवार बनाया है। उधर जेडीयू ने 13 सीटों पर कुशवाहा समाज से , और 12 सीटों पर कुर्मी जातियों को प्राथमिकता दी, जो पार्टी के कोर वोट बैंक हैं। जबकि 10 सीटों पर राजपूतों को टिकट दिए हैं। 6 सीट पर भूमिहार उम्मीदवार दिया है। लोक जनशक्ति से 5 राजपूत और 5 यादव उम्मीदवारों को टिकट देकर सबको चौंका दिया है। 4 भूमिहार, 4 वैश्य और 4 पासवान वर्ग को टिकट दिया।

हालांकि इस मामले में लेफ्ट पार्टियों ने ही पिछड़ा वर्ग को दिल खोलकर टिकट दिया है। अब एक नजर 2023 में बिहार सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वेक्षण पर भी डालना जरूरी है। जिसके मुताबिक बिहार में यादव 14.26 प्रतिशत के साथ सबसे बड़ी जाति है। इस सर्वेक्षण के हिसाब से दो नंबर दुसाध जाति है ,5.31 प्रतिशत। जबकि रविदास 5.2 प्रतिशत के साथ तीसरी बड़ी जाति है। कोइरी, 4.2 प्रतिशत उसके बाद पांचवी नंबर ब्राह्मण 3.65 प्रतिशत हैं। राजपूत 3.45 प्रतिशत, मुसहर 3.08 प्रतिशत, कुर्मी 2.87 प्रतिशत, भूमिहार 2.86 प्रतिशत, मल्लाह 2.60 प्रतिशत, बनिया 2.31 प्रतिशत और कायस्थ- 0.60 प्रतिशत हैं।

क्या जातिगत आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है? इस सवाल के जवाब में ही जातीय जनगणना का नतीजे छुपे हैं। मसलन 243 विधानसभा सीटों में सबसे बड़ी जाति यादवों को करीब 63 सीटें, महागठबंधन ने दिए हैं। 20 सीट पर एनडीए ने उम्मीदवार बनाया है। जबकि छठवें नंबर वाली राजपूत जाति के करीब 15 उम्मीदवार महागठबंधन से और 59 सीटें एनडीए ने दिए हैं। नौवें नंबर की भूमिहार जाति के 14 महागठबंधन से, 35 उम्मीदवार एनडीए से हैं। करीब 30 सीटें महागठबंधन और 40 विधानसभा सीटों पर कोइरी कुशवाहा समाज को टिकट दिया है।

जेडीयू ने चार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया

दिलचस्प ये है कि जदयू ने केवल 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। जबकि 8 यादव उम्मीदवार हैं। वहीं भाजपा ने पिछली बार 15 यादव उम्मीदवार दिए थे लेकिन इस चुनाव में महज 6 सीटों पर यादव उम्मीदवार देने का सफ मतलब है कि एनडीए, मुस्लिम-यादव ध्रुवीकरण को महसूस कर रही है इसलिए राजपूत -कोईरी- कुशवाहा का सामाजिक समीकरण पर काम कर रही है। और यदि ऐसा है तो बिहार विधानसभा चुनाव हिन्दू -मुस्लिम केन्द्रित ही माना जाएगा। अब महागठबंधन बनाम एनडीए के आधार वोट देखते हैं, 14 फीसदी यादव और 17 फीसदी मुस्लिम वोटर महागठबंधन का बेस वोट है तो 15 फीसदी अगड़ी जातियां, 10 फीसदी कुशवाहा कोइरी और धानुक के साथ 13 फीसदी वैश्य वोट एनडीए के खाते में माना जा रहा है। यदि ऐसा है तो निर्णायक समीकरण क्या है? चिराग पासवान के पासवान दुसाध वोटर या मुकेश सहनी के निषाद वोटर या फिर जीतन राम मांझी का 3 फीसदी मुसहर वोट बेस। इस बाबत 2020 के चुनाव में चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी की अकेले चुनाव लड़ने को स्थापना बिन्दू बनाए तो, एनडीए को इससे नुकसान हुआ था। शेष एससी एसटी वोट बैंक कैंडिडेट पर निर्भर है यूपी से लगे बिहार के जिलों में कुछ वोट बसपा में भी जाएंगे।

जाहिर है, जातीय समीकरण के जमीनी हकीकत में जातीय जनगणना और “वोट चोर” कैम्पेन ने महागठबंधन की जीती हुई बिसात को फिर से शून्य पर ला दिया है। जमीन पर जंग जातीय गोलबंदी ही जीतेगी, जातीय जनगणना नहीं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)