भारत में सामाजिक कल्याण की अवधारणा प्राचीन काल से ही रही है। लोग एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आते रहे हैं। वर्तमान दौर में भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। व्यवसाय समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है, इसलिए व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से भी सामाजिक कल्याण में योगदान की अपेक्षा की जाती है। देश में अधिकांश व्यावसायिक कार्य निगमित या कंपनी स्वरूप में होते हैं और उनके भी कुछ सामाजिक उत्तरदायित्व बनते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कंपनी अधिनियम-2013 में निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा को सम्मिलित किया गया है। इस अधिनियम की धारा-135 में निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व यानी सीएसआर से जुड़े प्रावधान किए गए हैं।

कंपनियों को सामाजिक कल्याण के लिए आय का दो फीसद खर्च करना होता है

इनमें कहा गया है कि कंपनी, जिसकी कुल संपत्ति पांच सौ करोड़ रुपए या उससे अधिक है और एक हजार करोड़ रुपए या अधिक का कारोबार कर रही है, उसे इस अधिनियम की अनुसूची सात में सम्मिलित सामाजिक कल्याण की विभिन्न गतिविधियों के लिए अपनी आय का दो फीसद खर्च करना होगा। इन प्रावधानों में यह व्यवस्था भी की गई है कि कंपनी की ओर से नियुक्त एक समिति निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए नीतियां तैयार करेगी और उनके क्रियान्वयन की निगरानी करेगी।

निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत जो कार्य किए जा सकते हैं, उनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तीकरण और ग्रामीण विकास जैसे सामाजिक मसलों के समाधान में योगदान और पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, ऊर्जा दक्षता एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आदि शामिल है। इसमें निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को अपनाने, कर्मचारियों के अधिकारों का सम्मान करने और समुदाय के आर्थिक विकास में योगदान करने वाली क्रियाएं भी सम्मिलित हैं।

इन गतिविधियों में शामिल होने से कंपनी की साख बेहतर होती है और ग्राहकों एवं निवेशकों का उस पर विश्वास बढ़ता है। सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत निगमित संस्थाओं को अपने कर्मचारियों, हितधारकों, ग्राहकों, शेयरधारकों, समुदायों और पर्यावरण के हितों को पूरा करने के लिए बाध्य किया जाता है। इसके साथ-साथ स्थानीय समुदाय या समाज की बेहतरी के लिए कार्य करने का प्रावधान भी होता है।

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संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन सीएसआर की अवधारणा को व्यवसाय प्रबंधन रणनीति के रूप में मानता है। इसके तहत निगमित संस्थाएं अपनी नियमित दिन-प्रतिदिन की परिचालन गतिविधियों और अन्य कार्यों में सामाजिक कल्याण के विभिन्न कार्यों को संचालित करती हैं। यह सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाने का एक तरीका है। भारत में निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व को महत्त्वपूर्ण माना गया है। देश में कंपनियों की ओर से इस कार्य पर वित्त वर्ष 2022-23 में 15,524 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो वर्ष 2023-24 में बढ़ कर 17,967 करोड़ रुपए हो गए।

लगभग 98 फीसद कंपनियों ने अपनी पूरी सीएसआर राशि खर्च की और करीब आधी कंपनियों ने नियमानुसार निर्धारित व्यय से अधिक खर्च किया। सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों (पीएसयू) ने भी वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में अपने सीएसआर योगदान में 19 फीसद की वृद्धि की। सीएसआर में सर्वाधिक खर्च 1,104 करोड़ रुपए शिक्षा पर किए गए। महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु सीएसआर निधि के शीर्ष तीन प्राप्तकर्ता थे। शीर्ष दस राज्यों में कुल सीएसआर व्यय का साठ फीसद हिस्सा खर्च किया गया। निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व में सरकार की भूमिका भी अहम है। सरकार विभिन्न माध्यमों से सीएसआर को बढ़ावा देने में सहयोग करती है।

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इस क्षेत्र में सरकार की भूमिका को बढ़ाने वाले अग्रणी देशों में एक ब्रिटेन भी है, जहां सरकार ने निगमित सामाजिक दायित्व की देखरेख और इसे प्रोत्साहित करने के लिए एक राज्य मंत्री भी नियुक्त किया है। सरकारें सीएसआर गतिविधियों के लिए एक नियामक ढांचा प्रदान करती हैं और अनुपालन की निगरानी करती हैं, जिससे इन कार्यों में सुधार होता है। सरकारें अनुदान जैसे प्रोत्साहन प्रदान करके सीएसआर गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं, ताकि कंपनियों पर वित्तीय बोझ कम हो सके।

इसके अलावा सरकारें व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साथ मिल कर सामाजिक उद्देश्यों की रक्षा और उनको बढ़ावा देने के लिए सहयोग करती हैं। सीएसआर के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समय-समय पर सरकार की ओर से दिशा-निर्देश दिए जाते हैं। साथ ही सीएसआर की परियोजनाओं को पूरा करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को वित्तीय तथा अन्य रूपों में सहयोग प्रदान किया जाता है। इतना सब कुछ होते हुए निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने में कुछ समस्याएं भी सामने आती हैं। देखा गया है कि सीएसआर खर्च कुछ विकसित राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात आदि में केंद्रित है, जबकि कम विकसित क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम खर्च होता हैं। कई निगमित संस्थाएं अपनी सीएसआर गतिविधियों की विस्तृत जानकारी नहीं देती हैं। कुछ तो इसे केवल एक कानूनी आवश्यकता के रूप में देखती हैं और वास्तविक लक्ष्य हासिल करने के बजाय अपनी साख के विस्तार के लिए इसका उपयोग करती हैं।

कई निगमित संस्थाएं सीएसआर परियोजनाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी एवं जरूरतों के बजाय अपने हित वाले कार्यों को तवज्जो देती हैं। कुछ कंपनियां सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को मापने के लिए स्पष्ट लक्ष्य और संकेतक स्थापित नहीं करती हैं, जिससे यह निर्धारण मुश्किल हो जाता है कि क्या सीएसआर निवेश का वांछित प्रभाव पड़ रहा है या नहीं।

उभरते बाजारों में काम करने वाली कंपनियों के लिए निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व को लागू करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इन बाजारों में अक्सर शासन व्यवस्था और बुनियादी ढांचे की कमी होती है। कुछ तो सीएसआर गतिविधियों में शामिल होने का दिखावा करती हैं, लेकिन वास्तव में वे अपनी गतिविधियों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्रदान नहीं करती हैं। इससे हितधारकों को यह आकलन करना मुश्किल हो जाता है कि क्या कंपनी वास्तव में सामाजिक रूप से जिम्मेदार है और अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह कर रही है? कुछ निगमित संस्थाएं दीर्घकालिक सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों के बजाय अल्पकालिक वित्तीय लाभों पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं। इससे सीएसआर पहलों के अंतर्गत की जाने वाली गतिविधियों की प्रभावशीलता कम हो सकती है।

इन सब चुनौतियों के बावजूद सीएसआर एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है, जो कंपनियों को सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार तरीके से काम करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कंपनियों और सभी हितधारकों को मिल-जुल कर इस प्रकार की नीतियों और योजनाओं का निर्माण तथा क्रियान्वयन करना चाहिए, जिनसे निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति की दृष्टि से सार्थक और जन उपयोगी कार्य किए जा सकें।

सरकारों को भी सीएसआर पहलों को बढ़ावा देने तथा कंपनियों को सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार तरीके से काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते नीतियों एवं विनियमों को प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए। इन प्रयासों से कंपनियां सही मायने में अपने निगमित सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर सकती है और समाज तथा राष्ट्र के विकास में अपना अहम योगदान दे सकती हैं।