वे बोलते हैं कि ये वोट चोरी की सरकार है…वे नारे लगाते हैं कि ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ और सामने की भीड़ नारे को जोर से दुहराने लगती है- वोट चोर गद्दी छोड़..। वे एक जगह बोल रहे हैं कि अचानक बिजली चली जाती है… तो तुरंत होने लगता है कि बिजली चोर गद्दी छोड़..।

इन दिनों टीवी बहसें बहुत ‘गरम’ हैं। इन बहसों में कुछ एंकर और कुछ विपक्षी प्रवक्ताओं में अक्सर झड़पें हो जाती हैं। एंकर की एक सीमा होती है कि वह दिए गए ‘विषय’ पर ही विचार करे और कराए। जबकि कई प्रवक्ता अपने वक्तव्यों से विषय को पटरी से उतार कर अन्य समस्याओं को गिना कर आग्रह करते हैं कि एंकर इन पर बात करे और कराए।

ऐसी ही एक गरमागरम बहस में एक विपक्षी प्रवक्ता ने एक एंकर को जैसे ही निजी तौर पर निशाने पर लिया, तो आजिज आए उस समाचार प्रस्तोता ने उसे कह दिया कि ये सब इस चैनल पर नहीं चलेगा। उधर, विपक्ष सड़क पर हमलावर है और चैनलों में भी हमलावर दिखना चाहता है। यह विपक्ष की नई रणनीति है, जिसकी काट सत्तापक्ष के पास अभी तो नजर नहीं आती। विपक्ष रोज ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाता रहता है, लेकिन सत्ता-प्रवक्ता अब तक ऐसे ‘आरोपों’ का मुंहतोड़ जबाव नहीं खोज पाए हैं।

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यह एक दो चैनलों की नहीं, बल्कि अधिकांश हिंदी-अंग्रेजी चैनलों की स्थिति है कि वे सब ‘दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय’ वाली स्थिति में काम करते हैं। बहरहाल, बिहार में जारी ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने अपने को दैनिक खबर बना लिया है और यह यात्रा बहसों में छाई रहती है। यात्रा में ऐसे भी मुख्यमंत्री शामिल होते दिखे जो स्वयं या उनके पक्ष के अन्य नेता बिहार को निशाने पर लेते रहे हैं। वे ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ में खुली गाड़ी के आगे खड़े दिखते रहे।

इसकी प्रतिक्रिया में बिहार के कुछ सत्तासीन नेताओं ने उनके बिहार में दिखने को ‘बिहार का अपमान’ तो कहा, लेकिन ऐसी ‘बयानवीरता’ से वे आगे नहीं गए। सड़कों पर मामूली-सा शांतिपूर्ण विरोध तक नहीं दिखा। विपक्ष की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ चरम पर है। उसके नायक उसमें हर रोज कुछ नया जोड़ कर उसे राष्ट्रीय बहस का विषय बनाते हैं। एक दिन विपक्षी नेता ने फरमा दिया कि गुजरात में भी वोट चोरी हुई… फिर कहा कि मतदान बाद सर्वे जो दिखाते हैं, परिणाम उसके विपरीत क्यों होते हैं, यानी पिछले चुनाव वोट चोरी के चुनाव रहे… और फिर वही नारा कि ‘वोट चोर गद्दी छोड़..।’

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सच है कि ‘वोट चोरी’ का यह ‘आरोप’ सोशल मीडिया और चैनल चर्चाओं में आकर जुबान पर इस कदर चढ़ गया है कि अब आप सरकार के किसी भी काम को ‘चोरी’ कह कर सरकार के खिलाफ नारा बना सकते हैं..! और गजब यह कि अपने को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाले कायदे से इसकी एक काट तक नहीं निकाल सके हैं।

ऐसे वातावरण का फायदा उठा कर जब किसी ने एक दफा मंच से गाली-गलौज की, तो चैनलों में ‘हाय हाय’ उठी। ‘गाली’ देने पर खेद जताने की खबर भी आई, लेकिन यह मामला जैसे ही बहसों में आया, वैसे ही विपक्षी प्रवक्ता ‘किंतु परंतु’ की शैली में बोलते दिखे कि ऐसी भाषा एकदम निंदनीय है। इसके बाद विपक्षी प्रवक्ता, सत्तादल के नेताओं के अतीत में कहे गए ऐसे तमाम ‘अपशब्दों’ की पूरी सूची ही गिनाने लगते हैं। दर्शक महसूस करने लगता है कि इस ‘सड़क छाप संस्कृति’ में कोई किसी से कम नहीं।

एक ओर ‘विपक्ष’ की विरोध यात्रा दूसरी ओर ‘अंकल सैम’ और उनके प्रवक्ताओं का भारत के खिलाफ शुल्क का ‘दोहरा मोर्चा’ खोलना और एक प्रवक्ता का यूक्रेन युद्ध को भारत के किसी नेता से जोड़ देना। अगर कोई भ्रम ही प्रसारित करे तो इसका कोई क्या कर सकता है? ‘अंकल सैम’ भी गजब ढाते हैं। भारत न हुआ ‘शीतयुद्ध’ के जमाने वाला सोवियत संघ हो गया। लेकिन याद रखें, अपना ‘भारत भी भारत’ है. राष्ट्रकवि गुप्त ने कहा भी है- ‘भारत के सम भारत’ है! जब इसने अंग्रेज निपटा दिए तो आप..?

बहरहाल, बीते संसद सत्र में जब विपक्षी सांसद बहिष्कार कर रहे थे, तब सरकार प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री-मंत्री के ‘एक महीने तक जेल में रहने पर’ पद से इस्तीफा देने वाला भ्रष्टाचार विरोधी कानून विधेयक ले आई, तो यह भी विपक्ष को रास न आया। यहां भी ‘साजिश’ दिखी।