हम सबके साथ ऐसा कभी न कभी जरूर होता है कि हम अचानक ही सोए हुए से जाग जाते हैं। यह अक्सर किसी सपने की वजह से होता है, जो अच्छे या बुरे, दोनों ही रूपों में हो सकता है। कभी कोई अच्छा सपना हमें हंसा देता है, तो कभी बुरे सपने के कारण डर से नींद टूट जाती है और मन यह सोचकर ही घबरा जाता है कि कहीं वह सच हो गया तो? सपनों और इंसानों की आंख-मिचौली वाला यह रिश्ता इंसान के जन्म के साथ ही जुड़ जाता है। शायद हमने ध्यान दिया होगा कि किस तरह एक शिशु सोए-सोए मुस्कुरा उठता है, तो कभी इस कदर झल्ला उठता है कि चुप होने का नाम नहीं लेता।

हम चाहे सपनों की जो भी व्याख्या करते हों, विज्ञान के पास इसकी बड़ी लंबी-चौड़ी परिभाषा और विश्लेषण मौजूद है। जो भी हो, मनुष्य को हंसाने-रुलाने वाले इन सपनों का उसके जीवन में बड़ा महत्त्व है। इनका महत्त्व तब और बढ़ जाता है, जब सपने केवल व्यक्तिगत लालसा या भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं होकर समष्टि के लिए भी देखे जा रहे हों। उनका आधार मानव कल्याण और सत्यनिष्ठा होना चाहिए। जब सपने दूसरों के जीवन को भी रोशन करें, तभी वे नैतिक रूप से सार्थक होते हैं। केवल अपने लिए ऊंचाइयां छूना पर्याप्त नहीं है, दूसरों को साथ लेकर चलना ही नैतिकता का परिचायक है।

मनुष्य का जीवन तभी सार्थक होता है, जब उसमें कोई उद्देश्य और मूल्य हों। उद्देश्य हमें दिशा देते हैं और मूल्य हमें सही मार्ग पर टिकाए रखते हैं। वे सपने, जिन्हें हम अक्सर अपनी कल्पनाओं का हिस्सा मानते हैं, दरअसल जीवन की नैतिक धुरी हो सकते हैं। यहां यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से आ सकता है कि क्या जिंदगी को सपनों जैसा बनाना महत्त्वपूर्ण है या सपनों को जिंदगी में महत्त्व देना! अधिकतर लोग सपनों जैसी जिंदगी का अर्थ ऐश्वर्य, आराम और विलासिता से लगाते हैं, लेकिन अगर जिंदगी केवल निजी स्वार्थ तक सीमित हो, तो उसका नैतिक मूल्य कम हो जाता है। वह प्रारंभ में भले ही खूबसूरत लगे, लेकिन बाद में मरीचिका प्रतीत होती है। जहां हम प्यास बुझाने के लिए, पानी की तलाश में अकेले भटकते रह जाते हैं।

सच्चे सपनों जैसी जिंदगी वही है, जहां हम ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाएं, मेहनत और लगन से आगे बढ़ें। दूसरों की भलाई में भी हिस्सा लें और अपने सुख-दुख में संतुलन बनाए रखें। जीवन को सपनों-सा सुंदर बनाने की कोशिश सभी करते हैं, लेकिन कहीं न कहीं कुछ चूक हो ही जाती है। फिर हम सपनों को ही दोष देने लगते हैं। जबकि गलती सपनों की नहीं, बल्कि उनको पूरा करने की हमारी कोशिश में रहती है। यह समझने की जरूरत है कि संघर्ष से बचकर सपनों तक पहुंचना संभव नहीं।

मसलन, अगर कोई विद्यार्थी परीक्षा में नकल कर अच्छे अंक ले आता है तो वह भले ही उस समय अपने सपने पूरे कर ले, लेकिन यह नैतिक रूप से अधूरा रह जाता है। वहीं ईमानदारी से मेहनत कर मिलने वाली सफलता छोटी हो सकती है, पर उसका मूल्य कहीं अधिक है। अरस्तु ने कहा था- ‘हम वही हैं, जो हम बार-बार करते हैं। उत्कृष्टता कोई कर्म नहीं, बल्कि एक आदत है।’

यहीं सपनों की अहमियत को समझा जा सकता है, क्योंकि हमारे सपने और उन्हें पाने की प्रक्रिया हमारे चरित्र को गढ़ते हैं। सपनों को सच करने सकारात्मक कोशिशें हमारे आत्मविश्वास और मनोबल को बढ़ाती हैं। वहीं उन्हें पूरा करने के लिए अपनाई गई गलत कोशिशें हमारे चरित्र को गिराती हैं। आत्मविश्वास कम करती हैं। कभी-कभी लोग सपनों को देखने में इतने खो जाते हैं कि उन्हें अपनी वर्तमान जिंदगी तुच्छ लगने लगती है।

नैतिक दृष्टिकोण कहता है कि हमें जीवन जैसा भी मिला है, उसका सम्मान करना चाहिए, क्योंकि इस दुनिया में कुछ ऐसे भी बदकिस्मत लोग हैं जिन्हें देखकर ‘कमी’ क्या होती है, यह समझ में आता है। उनके जीवन के सपने, किसी सक्षम व्यक्ति के सपनों से बेहद जुदा होते हैं, जो सिर्फ दो वक्त भरपेट भोजन और तन ढकने भर कपड़े मिल जाने भर से जुड़े होते हैं।

यह जीवन बहुत खूबसूरत और कीमती है, जहां हर व्यक्ति के सपनों की दुनिया अलग है। उनकी सीमाएं अलग है। शायद इसीलिए हमें ऊंचे सपने देखने के लिए कहा जाता है, ताकि हमारे अंदर चरित्र, मन और विचारों की ऊंचाई आए। अपने सपनों को जरूर सहेजें, उन्हें पूरा करने की कोशिश भी करें, लेकिन दिल में थोड़ी-सी जगह दूसरों के लिए भी रखें। जीवन में व्यक्तिगत सपनों का महत्त्व है, लेकिन समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। जिस तरह एक डाक्टर का सपना धन कमाना न हो, बल्कि रोगियों की सेवा करना हो।

एक शिक्षक का सपना केवल नौकरी तक सीमित न हो, उसकी कोशिश विद्यार्थियों को बेहतर इंसान बनाना भी होना चाहिए। एक नेता का सपना केवल सत्ता पाना न होकर जनता की सेवा करना होना चाहिए। इस समाज में सभी आपस में किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं। इसलिए ध्यान देने की और भी जरूरत होती है। जब सपने को सच करने की कोशिश नैतिकता से जुड़ जाती है तो सपनों की अहमियत बढ़ जाती है। फिर भले ही बंद आंखों से देखे गए सपने हमें कभी रुला दें, लेकिन खुली आंखों से देखे सपने हमें हमेशा ही सुकून और आत्मसंतुष्टि देंगे।