विमुद्रीकरण के बाद से ही भारत सरकार डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है। इस क्रम में डिजिटल इंडिया और ई-शासन जैसे अभियान में तेजी लाई गई। वर्ष 2024-25 तक पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि यह आंकड़ा मौजूदा समय में मुश्किल से चार ट्रिलियन डालर के इर्द-गिर्द है। भारत डिजिटल सेवा क्षेत्र में बढ़ रहे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए एक आदर्श गंतव्य माना जाता रहा है। गौरतलब है कि यहां कुछ क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर विशिष्ट सीमाएं और प्रतिबंध हैं। उदाहरण के लिए विनिर्माण और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सौ फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है। जबकि डिजिटल क्षेत्र में छब्बीस फीसद तक एफडीआइ की अनुमति है, जो उच्च मांग के कारण तेजी से बढ़ रहा है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय आय में 11.74 फीसद का योगदान दिया। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ), क्लाउड कंप्यूटिंग और डिजिटल बुनियादी ढांचे में प्रगति से वर्ष 2024-25 तक यह योगदान बढ़ कर 13.42 फीसद हो जाने का अनुमान है। डिजिटलीकरण के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है और 2030 तक, डिजिटल अर्थव्यवस्था द्वारा कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग पांचवें हिस्से के योगदान का अनुमान है।

इसकी सबसे बड़ी वजह जनसंख्या है, जिसमें नवउद्यम की भरपूर संभावनाएं हैं। पिछले कुछ वर्षों में निजी और सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया। मगर भारत में गरीबी और अशिक्षा का आंकड़ा डिजिटल निरक्षरता का एक बड़ा कारण है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हर पांचवां व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है, जबकि हर चौथा नागरिक अशिक्षित है। किसी के पास मोबाइल होना डिजिटल होने का प्रमाण नहीं है, जब तक कि उसके पास इंटरनेट संपर्क आदि की सुविधा और जानकारी न हो।

देश में लगभग अड़तीस फीसद परिवार हैं डिजिटल साक्षर

एसोचैम की एक रपट से पता चलता है कि नीतियों में अस्पष्टता और ढांचागत कठिनाइयों के कारण महत्त्वाकांक्षी डिजिटल परियोजना के सफल कार्यान्वयन में अनेक चुनौतियां हैं, जिनमें बार-बार नेटवर्क संपर्क का टूट जाना भी है। ‘कनेक्ट इंडिया’ मिशन के तहत राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति- 2018 ने एक मजबूत डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे के निर्माण के उद्देश्य से वर्ष 2022 तक एक करोड़ सार्वजनिक ‘वाई-फाई हाटस्पाट’ लगाए जाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया था। इसके अलावा, ‘भारत 6जी विजन’ के तहत वर्ष 2022 तक एक करोड़ और 2030 तक पांच करोड़ सार्वजनिक ‘वाई-फाई हाटस्पाट’ बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। हालांकि, वर्तमान में ‘पीएम-वाणी हाटस्पाट’ का आंकड़ा ‘भारत 6जी विजन’ दस्तावेज में परिकल्पित लक्षित आंकड़े से बहुत पीछे है।

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भारत का मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी कानून साइबर अपराधों को रोकने के लिहाज से बहुत प्रभावी नहीं। एटीएम कार्ड की क्लोनिंग और बैंक खाते में सेंध आदि की शिकायतें बढ़ गई हैं। बरसों पहले कहा गया था कि भारत में जैसे-जैसे डिजिटलीकरण बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे विशेषज्ञों की संख्या भी बढ़ानी होगी। हालांकि राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन की शुरूआत वर्ष 2020 तक भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाने के लिए गई थी। देश में लगभग अड़तीस फीसद परिवार डिजिटल साक्षर हैं। हालांकि, केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड के अनुसार, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता दर में काफी भिन्नता है, शहरी क्षेत्रों में यह दर इकसठ फीसद, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह पच्चीस फीसद है।

1970 में हुई थी इलेक्ट्रानिक विभाग की स्थापना

गौरतलब है कि दस वर्ष पहले भारत ने डिजिटल इंडिया मिशन की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाना था। वर्ष 2014 में टेलीफोन कनेक्शन 93.3 करोड़ से बढ़ कर 2025 में 120 करोड़ से अधिक हो गए। जहां पहले संचार-घनत्व 75.23 फीसद था, वहीं 2024 तक यह बढ़ कर 84.49 फीसद हो गया। शहरी कनेक्शन 55.5 करोड़ से बढ़ कर 66 करोड़ दस लाख हो गए। जबकि ग्रामीण कनेक्शन 37.7 करोड़ से बढ़ कर 52.7 करोड़ हो गए। इतना ही नहीं मोबाइल ग्राहकों की संख्या 116 करोड़ तक पहुंच गई। इंटरनेट कनेक्शन 96.96 करोड़ हो गए हैं, जो पिछले दस वर्ष की तुलना में बहुत बड़ी वृद्धि है। जब देश में ई-शासन की बात होती है, तो नए प्रारूप और एकल खिड़की संस्कृति मुखर हो जाती है। नागरिक केंद्रित व्यवस्था के लिए सुशासन की लंबे समय से दरकार रही है। ऐसे में ई-शासन इसका बड़ा आधार है।

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ई-शासन की रूपरेखा पांच दशक पुरानी है। हालांकि उस दौर में शासन डिजिटल तो नहीं था, लेकिन इलेक्ट्रानिक विधा के अंतर्गत आधारभूत व्यवस्था को सुसज्जित करने का प्रयास हो रहा था। गौरतलब है कि इलेक्ट्रानिक विभाग की स्थापना 1970 में हुई थी। जबकि 1977 में राष्ट्रीय सूचना केंद्र के साथ ई-शासन की दिशा में कदम उठाया गया था। ई-शासन को बढ़ावा देने की दिशा में 1987 में शुरू हुआ राष्ट्रीय उपग्रह आधारित कंप्यूटर नेटवर्क क्रांतिकारी कदम था, जिसका मुखर रूप 1991 के उदारीकरण के बाद सामने आया। वर्ष 2006 में राष्ट्रीय ई-शासन योजना लाए जाने के बाद ई-शासन व्यापक रूप में सामने आया और इसी कड़ी में एक जनवरी 2015 को डिजिटल इंडिया की अवधारणा को जमीन पर उतार कर आमजन के जीवन को सूचना तकनीक के माध्यम से बेहतर बनाने का जो प्रयास किया गया, उससे देश डिजिटलीकरण की ओर तेजी से बढ़ा।

किसानों सम्मान निधि का हस्तांतरण डिजिटल शासन का ही उदाहरण है

डिजिटल शासन के तीन मुख्य क्षेत्रों में प्रत्येक नागरिकों की सुविधा के लिए बुनियादी ढांचा, शासन और मांग आधारित सेवाएं तथा नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण शामिल है। ई-शासन से सरकारी कार्यों में दक्षता बढ़ती है, जबकि एक स्तंभ के रूप में इसमें लोग, प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी और संसाधन शुमार होते हैं। गौरतलब है कि डिजिटल इंडिया भारत को सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में बदलने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। इसमें जनता और सरकार के बीच संवाद को मजबूती मिलने के साथ ही व्यवसाय और नए अवसरों का सृजन भी शामिल था। सुशासन लोक सशक्तीकरण का पर्याय है जबकि सरकारी योजनाएं लगभग आठ दशक से ऐसे ही सशक्तीकरण की खोज में है। ई-शासन इस दिशा में एक ऐसा उपकरण है जो योजनाओं को पारदर्शी तरीके से जनता तक परोसता है।

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भ्रष्टाचार और पारदर्शिता एक दूसरे के विपरीत शब्द हैं। ई-शासन पारदर्शिता का एक अच्छा माध्यम है। बावजूद इसके भारत में डिजिटल शासन के सामने कई चुनौतियां हैं। गौरतलब है कि ई-शासन के लिए किए जाने वाले उपाय महंगे हैं और इनकी अवसंरचना में बिजली, इंटरनेट, डिजिटल उपकरण आदि बुनियादी सुविधाओं का यदि अभाव बना रहता है, तो चुनौतियां बरकरार रहेंगी। सरकार के सभी कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है। किसानों के खाते में सम्मान निधि का हस्तांतरण डिजिटल शासन का ही उदाहरण है। ई-लर्निंग, ई-बैंकिंग, ई-टिकटिंग और ई-सुविधा आदि शासन को सुशासन की ओर ले जाते हैं। देश में करीब साढ़े छह लाख गांव और ढाई लाख पंचायतें हैं, जहां बिजली और इंटरनेट संपर्क एक आम समस्या है। सवाल यह है कि शहर हो या गांव, ई-शासन की सभी को आवश्यकता है और यह इंटरनेट पर निर्भर है।