किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन का सबसे अनमोल उपहार क्या हो सकता है, उसके लिए जीवन में सबसे बड़ा चमत्कार क्या हो सकता है, उसके लिए सबसे बड़ी सेवा का कार्य कौन-सा हो सकता है और उसके लिए जीवन में सबसे बड़े गर्व का विषय क्या हो सकता है..! ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका यदि सबसे सटीक जवाब देना हो, तो निश्चित रूप से इन प्रश्नों का उत्तर होगा- ‘अंगदान’। गौरतलब है कि एक ऐसा व्यक्ति, जो दोनों हाथों या पैरों अथवा आंखों के नहीं होने के कारण बेबसी भरा जीवन जीने के लिए बाध्य हो या जो व्यक्ति कार्निया, हृदय, फेफड़े, यकृत, गुर्दे और अग्न्याश्य आदि में से किसी अंग के अभाव में जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहा हो, क्या उसके लिए अंगदान जीवन का सबसे अनमोल उपहार और सबसे बड़ा चमत्कार साबित नहीं होगा?

पूरी तरह से स्वस्थ व्यक्ति के लिए ‘अंगदान’ सबसे बड़ी सेवा और गर्व

इसी प्रकार, पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लिए ‘अंगदान’ सबसे बड़ी सेवा और गर्व का विषय होना चाहिए। गौरतलब है कि यदि मार्च 2013 में महाराष्ट्र के छिंदवाड़ा निवासी एक परिवार ने शोक की घड़ी में दिमागी तौर पर मृत (ब्रेन-डेड) अपने अठारह वर्षीय पुत्र के अंगदान करने का निर्णय नहीं लिया होता, तो मृत्यु की गर्त में समाने के लिए मजबूर नागपुर के दो लोगों में गुर्दे प्रत्यारोपित कर जीवन का सबसे अनमोल उपहार नहीं दिया जा सकता था।

ऐसे तमाम लोग जो अपने जीवन के सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण क्षणों में भी मानवता के हित और सहजीवन के उत्कर्ष को महत्त्व देते हुए अंगदान करने का निर्णय लेते हैं, वे सदा-सर्वदा धन्यवाद और सम्मान के अधिकारी रहेंगे। हालांकि, मार्च 2013 में वह परिवार अपने पुत्र के अंगदान के पक्ष में नहीं था, लेकिन अब वे मानते हैं कि बेटे के अंगदान का निर्णय अच्छा था। अब जब भी बेटे के कारण नया जीवन पाने वाला युवक और उसका परिवार मिलने आता है, तो लगता है कि उनका बेटा ही मिलने आया हो। यह अंगदान के महत्त्व को दर्शाता है।

अरबों की आबादी और अंगदान महज 52 हजार, यूरोपियन देशों से 50 पायदान पीछे है भारत

इसी प्रकार, गुजरात के वलसाड की नौ वर्षीय एक बच्ची को दिमागी तौर पर मृत घोषित किए जाने के बाद चिकित्सकों के प्रेरित करने पर उसके परिजनों ने बच्ची के अंगदान किए। इससे पांच लोगों को नई जिंदगियां मिलीं। इनमें नवसारी के तेरह साल के एक किशोर को एक गुर्दा और अहमदाबाद के दो लोगों को दूसरे गुर्दे तथा लिवर से नया जीवन मिला। वहीं, बच्ची के फेफड़ों ने तमिलनाडु की एक बच्ची में नई जान भरने, जबकि उसके हाथों ने मुंबई की एक अन्य बच्ची को नया जीवन देने का कार्य किया।

इसी वर्ष, रक्षाबंधन पर जब मुंबई की बच्ची खुद को अंगदान करने वाली बच्ची के घर उसके सगे भाई को राखी बांधने पहुंची, तो उसकी मां उस बच्ची के शरीर में जुड़े अपनी बेटी के हाथों को चूम कर रोने लगीं। यह देख वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गईं। यानी अंगदान करने वाली बच्ची इस दुनिया में नहीं है, लेकिन वह दो परिवारों का जीवन रोशन कर रही है। बहरहाल, इस तरह की कहानियों की तरह देश में अंगदान वाली कई प्रेरणादायक कहानियां हैं, लेकिन जरूरत हजारों-लाखों की है।

मुस्लिम युवक ने प्रेमानंद महाराज को किडनी दान करने की जताई इच्छा, संत के नाम लिखी चिट्ठी, कहा – आपका इस दुनिया में रहना जरूरी

दुर्भाग्य से, भारत में अंगदान को लेकर जागरूकता का बेहद अभाव है। देश में मौजूद अनेक प्रकार की भ्रामक धारणाएं अंगदान के विरुद्ध बड़ी चुनौती साबित होती रही हैं। यही कारण है कि देश में अंगदान के प्रति सकारात्मक वातावरण नहीं है। जबकि एक व्यक्ति अंगदान के माध्यम से अधिकतम आठ लोगों का जीवन बचा सकता है।

भारत में अंग-प्रत्यारोपण की मांग और अंगदाताओं की संख्या में भारी अंतर होने से अंग-प्राप्ति के लिए प्रतीक्षारत लोगों का जीवन दुश्वार होता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका सबसे बड़ा कारण दिमागी तौर पर मृत रोगियों से अंगदान के प्रति जागरूकता की कमी है। देश में पचासी फीसद अंगदान जीवित व्यक्तियों, यानी परिजनों द्वारा और केवल पंद्रह फीसद ‘ब्रेन-डेड’ रोगियों से होता है, जबकि नब्बे फीसद अंगदान दिमागी तौर पर मृत रोगियों से होने चाहिए।

‘नेशनल आर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गनाइजेशन’ (एनओटीटीओ) के अनुसार, देश में प्रत्येक वर्ष लगभग 1.8 लाख लोग गुर्दे पूरी तरह खराब होने, अस्सी हजार लोग यकृत पूरी तरह खराब हो जाने और पचास हजार लोग हृदय रोगों के कारण अंग-प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में रहते हैं, जबकि भारत में अंगदान की दर प्रति दस लाख लोगों पर केवल 0.86 फीसद है, जो वैश्विक औसत से बहुत कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में अंगों की अनुपलब्धता के कारण प्रतिवर्ष पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है।

इनमें से दो लाख यकृत की, डेढ़ लाख गुर्दा संबंधी और पचास हजार लोग हृदय की बीमारियों से प्रतिवर्ष जान गंवा बैठते हैं। तात्पर्य यह कि अंगदान और प्रत्यारोपण की दिशा में प्रगति तो हो रही है, लेकिन मांग और आपूर्ति के बीच खाई नहीं मिट रही।

हमें क्यों लगता है डर…, दहशत के कारोबार का कैसे बढ़ रहा है टर्नओवर? क्या है इसके दिमाग का खेल

इस खाई को पाटने के लिए प्रचार माध्यमों और सोशल मीडिया के जरिए देश भर में अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करना लाभकारी साबित हो सकता है। इसी प्रकार, विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों, योजनाओं, पाठ्यचर्या आदि के जरिए बच्चों, किशोरों और युवाओं को जागरूक किया जा सकता है। इसके अलावा, दुनिया भर में सर्वाधिक अंगदान करने वाले देश स्पेन की ‘आप्ट-आउट’ प्रणाली भी भारत में अंगदान को बढ़ाने के कार्य में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है। इस प्रणाली के अनुसार स्पेन में प्रत्येक व्यक्ति जन्मजात अंगदाता होता है।

हालांकि भारत जैसे विविधता वाले देश में इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार का इसी वर्ष एक जुलाई से अंगदाताओं के पार्थिव शरीर को ‘गार्ड आफ ऑनर’ से सम्मानित करने का निर्णय अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण एवं प्रेरक कदम माना जा सकता है। यह निश्चित रूप से अंगदान को बढ़ावा देने में सहायक साबित होगा। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर अंगदान करने वाले लोगों और उनके परिजनों को प्रोत्साहन राशि प्रदान करना और उन्हें सम्मानित करना अंगदान के मामले में ‘मील का पत्थर’ साबित हो सकता है।

अंधविश्वास आदि सामाजिक विकृतियों के विरुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने के लिए समुदाय स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना तथा सभी सरकारी, गैर-सरकारी अस्पतालों में अंगदान के लिए अनुकूल एवं आधुनिक व्यवस्था करना भी जरूरी है, ताकि यथासमय स्वस्थ एवं सुरक्षित अंगदान सुनिश्चित किया जा सके। अंगदान जैसे मानवीय अभियान को सफल बनाने के लिए ढांचागत व्यवस्था को आधुनिक बनाने के अलावा इस कार्य को राष्ट्र, संस्कृति और समाज के लिए सम्मान और गौरव का प्रतीक बनाने की भी आवश्यकता है।

इससे अंगदान करने वाला प्रत्येक व्यक्ति या उसके परिजन इस बात के लिए संतुष्ट और निश्चिंत रहेंगे कि उसने अपने अंगों का दान उचित समय और स्थान पर किया है। साथ ही, वे सम्मानित और गौरवान्वित भी महसूस कर सकेंगे। इसके लिए जरूरी है कि इस अभियान से देश के नामचीन एवं प्रभावशाली लोगों, आध्यात्मिक विभूतियों, सामाजिक संस्थानों और सामुदायिक संगठनों को जोड़ा जाए, जो अंगदान के लिए प्रेरित करने में बड़ी भूमिकाएं निभा सकते हैं।