निक्की भाटी की हत्या का सुर्खियों में आया वीडियो देखना मुश्किल था, लेकिन मैंने उसको एक बार से ज्यादा देखा। इसलिए कि यकीन करना मुश्किल था कि 2025 वाले भारत में एक पढ़ा-लिखा, मध्यवर्ग का आदमी अपनी 26 साल की बीवी को उनके छह साल के बेटे के सामने मार सकता है इतनी बर्बरता से। कथित रूप से इस हत्या का वीडियो निक्की की बड़ी बहन ने बनाया और सोशल मीडिया पर डाला था। उस वीडियो में दिखते हैं एक पुरुष और एक बुजुर्ग महिला मिल कर एक लड़की के बाल खींच कर उसको गिराते हैं और उसकी चीखों की परवाह न करते हुए उस पर तेल या तेजाब डाल कर जला देते हैं।
इसके बाद की खबरों के मुताबिक, जब तक निक्की को अस्पताल ले जाया गया, उसका शरीर सत्तर फीसद से अधिक जल चुका था और उसके पति विपिन भाटी ने उसकी मौत को आत्महत्या बताने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही घंटों में दुनिया जान गई थी कि यह शर्मनाक कहानी दहेज की थी। निक्की के ससुराल वाले उसके पिता से और ज्यादा पैसे मांग रहे थे और जब पैसा नहीं मिला, तो लग गए निक्की को हर तरह से परेशान करने।
एक ही परिवार में दो बेटियों क्यों दे दी?
आश्चर्य की बात यह थी कि निक्की की बड़ी बहन की शादी भी इस ही घर में हुई थी। उसकी हत्या के बाद कई लोग पूछने लगे कि ऐसे परिवार में एक बेटी को देने के बाद उसके पिता ने दूसरी बेटी क्यों दी थी। पिता ने कई पत्रकारों से बात की है, लेकिन इस सवाल का कोई सही जवाब नहीं दे पाए हैं। सही जवाब दे भी कौन सकता है?
निक्की की मौत के बाद उसके और भी वीडियो देखने को मिले। इनमें दिखती हैं दोनों बहनें बन-ठन कर उस स्कार्पियो गाड़ी को चलाती हुईं जो उनके पिता ने दहेज में दी थी निक्की की शादी के समय। मालूम पड़ा यह भी कि दोनों बहनों ने सोशल मीडिया पर अपने कई वीडियो डाले थे। मालूम यह भी हुआ कि दोनों बहनें मिल कर ब्यूटी पार्लर का व्यवसाय कर रही थीं और इन सारी बातों से उनके ससुरालवाले खुश नहीं थे। सवाल यह है कि क्या यह इतने बड़े अपराध हैं कि उनकी सजा मौत होनी चाहिए थी?
मैं उन महिला पत्रकारों में हूं जिन्होंने सत्तर के दशक में दहेज के मामलों की विस्तार से जांच की थी और दुनिया के सामने यह शर्मनाक सच आया कि जिन औरतों की मौत गैस सिलेंडर फटने के कारण बताई जाती थीं, वे अक्सर जिंदा जलाई गई थीं। तब के बाद अब तक चालीस साल से ज्यादा गुजर गए हैं। इस दौरान कई कानून बने दहेज प्रथा को रोकने के लिए। मीडिया में कई बार चर्चा हुई है, लेकिन हाल यह है आज इस देश में कि कोई 18 से 20 लड़कियां रोज जलाई जाती हैं दहेज के कारण।
शर्म की बात है यह ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के इस दौर में, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का यह नारा लगता है उन लोगों तक नहीं पहुंचा है जिनके हाथों में है इस देश की कानून व्यवस्था। वरना ऐसा कभी न होता कि दहेज के मामले अदालतों में दशकों तक लटके रहते। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2022 में 3689 मामलों में से सिर्फ तैंतीस फीसद ऐसे थे जिनमें हत्यारे दंडित हुए थे।
गैर-सरकारी संस्थाओं के आंकड़े बताते हैं कि दो फीसद से कम मामलों में ही कोई दंडित होता है। जब कानून का डर नहीं है, तो कैसे रोका जाएगा इन हत्याओं को? कैसे रोका जाए उन अपराधियों को जिनमें महिलाओं के लिए इतनी नफरत है कि दहेज की मौतों से कहीं ज्यादा ऐसी लड़कियां हैं जिनके साथ बलात्कार होते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में रोज छियासी महिलाओं के साथ बलात्कार होता है जिनमें कई छोटी बच्चियां होती हैं जो अपने घरों में ही भाई, चाचा और यहां तक कि कई बार पिता की भी शिकार बनती हैं।
यहां यह कहना जरूरी है कि ऐसा जब होता है, तो अक्सर इन अपराधों में घर की महिलाओं की सहमति और सहायता होती है। खबरों के मुताबिक, निक्की भाटी की हत्या करने में उसकी सास शामिल थी। ऐसा अक्सर होता है। तो समाधान क्या है? कैसे बच सकती हैं इस देश की बेटियां? विनम्रता से मेरा सुझाव यह है कि ऐसे मामलों में जब तक त्वरित अदालतों का प्रबंध नहीं किया जाता है, तब तक ऐसा होता ही रहेगा।
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कई बार बलात्कारियों और हत्यारों को जमानत पर छोड़ा जाता है और कई बार छूटने के बाद हत्यारे अपनी दुखी पत्नियों पर दबाव ऐसा डालते हैं कि वे अपनी शिकायतें वापस ले लेती हैं। कई बार समस्या समाज और आर्थिक असुरक्षा की भी होती है। तंग आकर मायके अगर जाती हैं विवाहित लड़कियां, तो समाज की नजरों में वही गलत मानी जानती हैं। पढ़े-लिखे लोग भी अपनी विवाहित बेटियों को सुझाव देते हैं ससुराल वापस लौटने के लिए।
समाज बदलने में जमाने लग सकते हैं सो इस बदलाव के आने का भरोसा नहीं किया जा सकता। समाधान हमको ही लाना पड़ेगा कुछ कानून व्यवस्था को मजबूत करके और हर मामले की विस्तार से जांच करके। याद कीजिए कि निक्की भाटी की सारी कहानी तो बताई गई थी सुर्खियों में, लेकिन उनके नाम तक हमको नहीं मालूम जो बाकी 18-20 महिलाएं मारी गई थीं उसी दिन दहेज को लेकर।
हमने जब शुरू में दहेज हत्याओं को लेकर मुहिम चलाई थी, तो सिर्फ ऐसा करके कि जब भी खबर मिलती थी दिल्ली में किसी बहू की जल कर मौत होने की, तो हम उसके घर जाकर पूरी जांच किया करते थे और इस तरह पता लगा दुनिया को कि ये बहुएं गैस सिलेंडर फटने से नहीं मरी थीं। इनको मारा गया था उनके पतियों और सासों ने मिल कर। एक नई मुहिम की शुरुआत करनी पड़ेगी हमको मीडिया में, ताकि बेटियां बच सकें।
