हम जानते हैं कि जिस तरह एक शिक्षक, एक इंजीनियर, एक चिकित्सक को अपने पेशेवर जीवन को लगातार अद्यतन करते रहने की जरूरत होती है। ठीक इसी तरह हम सभी को अपने काम ही नहीं, बल्कि अपने जीवन को भी देखते और तौलते रहने की जरूरत होती है। अभी कुछ दिनों पहले एक परिचित का कहना था कि उनका बेटा स्मार्टफोन के बिना खाना तक नहीं खाता। ऐसे में मां उसे फोन पकड़ा कर इस परेशानी से छुटकारा पाती हैं। उन्हें उसकी जिद के आगे और कोई रास्ता ही नहीं सूझता। जब तक बच्चे को फोन नहीं मिलता, वह जिद करता है, जमीन में लोटने लगता और रोने लगता है। हालत यह है कि उसे सुबह उठते ही फोन चाहिए। उस बच्चे को फोन की आदत छुड़वाने के लिए उसे समझाया गया, उसके साथ सख्ती भी बरती गई, लेकिन कोई हल नहीं निकला।

सवाल है कि बच्चे की इस मुश्किल का स्रोत क्या था। घरों में आमतौर पर यह देखा जा सकता है कि मां या पिता जब भी खाली होते हैं, बस तुरंत अपना मोबाइल उठा कर देखने में मशगूल हो जाते हैं। एक काम से दूसरे काम के अंतराल के बीच दिन में कई बार वे फोन पर घंटों व्यस्त रहते हैं। देर रात में तो ईमेल, रील और सोशल मीडिया देखते हुए कब घंटे गुजर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ऐसे लोगों के लिए समय काटने का सबसे अच्छा साधन फोन है। बहुत से मोबाइल उपभोक्ता जानते हैं कि स्क्रीन पर लगातार देखते रहने से उनकी आंखों की रोशनी पर असर पड़ता है। मोबाइल की आवाज से दूसरों को शोर महसूस होता है। कान में ईयरफोन लगाकर सुनने से श्रवण क्रिया बाधित हो सकती है।

लगातार रील देखते रहने से हमारे शरीर में डोपामाइन का स्तर तेजी से बदलने लगता है, जिससे शरीर के हार्मोन पर प्रभाव पड़ता है और यह शरीर के लिए हानिकारक है। चिकित्सकों के अनुसार लगातार फोन का इस्तेमाल करने से आंखों में जलन, सिरदर्द, नींद की कमी और तनाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं। स्मार्टफोन की लत बच्चों में शारीरिक, मानसिक उथल-पुथल और भावनाओं को प्रभावित करती है। बच्चों का हमउम्र बच्चों के साथ खेलना, परिवारजनों का आपसी संवाद कम होना भी इसका एक बड़ा कारण बनता जा रहा है।

केवल घर-परिवारों में ही नहीं, अब सड़कों पर मोटरसाइकिल चलाते हुए लोग भी मोबाइल पर बात करते मिल जाएंगे। यह नियमों के विरुद्ध है, लेकिन कहां-कहां और किस तरह से लोगों को रोका जा सकता है? सार्वजनिक परिवहन के रूप में बस में यात्रा करते हुए आसपास से मोबाइलों पर रील, फिल्म या गाने चल रहे होते हैं। कई बार उन सबकी आवाज इतनी गड्डमड्ड हो रही होती है कि ठीक से किसी एक मोबाइल की आवाज को सुना नहीं जा सकता। यह एक तरह की असभ्यता है, क्योंकि ज्यादा संभावना यह है कि किसी अन्य व्यक्ति के तेज स्वर में स्मार्टफोन बजाने से किसी को बहुत परेशानी हो रही हो।

इसके अलावा, अगर हम आम लोगों की बात करें तो हमने अपने को व्यस्त रखना, हो-हल्ले के बीच जीना चुन लिया है, तो ऐसे में हमारे जीवन से सजगता धीरे-धीरे क्यों इतनी दूर होती जा रही है कि हम बिना किसी सजगता के बस कुछ भी किए जा रहे होते हैं।

इसी तरह कई बार सामान्य बातचीत में लगातार अभद्र बातों और अपशब्दों का प्रयोग करना हमारी आदत का कब हिस्सा बन जाता है, हमें पता ही नहीं चलता। जब घर में बच्चे हमारी भाषा सुनते हैं तो वे भी अनायास ही उनका प्रयोग करने लगते हैं। ऐसे में हम बड़े अगर बच्चों को टोकते हैं तो वे सामने तो रुक जाते हैं, लेकिन पीछे से उन आदतों को अपना लेते हैं और फिर वे उनकी भाषा या कृत्य उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। इसी तरह किसी भी प्रकार का नशा, कुछ भी चबाते रहने की या अन्य कोई भी आदत हो सकती है। अगर हम चाहते हैं कि बच्चों में इस तरह की आदतें या कमियां नहीं रहें तो पहले हमें आहिस्ता-आहिस्ता अपने पर काम करना होगा।

हम छोटे-छोटे स्वयं से संकल्प कर सकते हैं। जैसे हर रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक मोबाइल को नहीं छूना। हां, कोई फोन आए तो फोन उठाएंगे, लेकिन स्वयं फोन या किसी प्रकार की सामग्री को नहीं देखना है। धीरे-धीरे हम खुद महसूस करने लगेंगे कि यह कितना आसान था, लेकिन संकल्प नहीं किया था तो बस चल रहा था और लग रहा था कि यह आदत हमसे छूट ही नहीं सकेगी। हम पाएंगे कि अपनी किसी बुरी आदत पर काम करने से हमें कितनी राहत मिली है। हमें लगने लगता है कि पिछले दिनों हमने कितना समय, ऊर्जा और रचनात्मकता इसके पीछे नष्ट कर दी।

कहते हैं कि ‘कोई किसी को रोक तो सकता है, लेकिन सुधार इंसान अपने में स्वयं ही करता है।’ स्वयं से प्रण करना हमें भटकाव से रोकता है और सही दिशा में जाने के लिए प्रेरित करता है। हम देखेंगे कि हमारी इस आदत का परिवारजनों पर भी प्रभाव पड़ने लगा है और परिवार एक बुरी आदत से छुटकारा पाकर आगे निकलने लगता है। हमारे जीवन में बहुत सारी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। जब एक आदत में सुधार होने लगता है तो दूसरी अन्य चीजें अपने आप सुधरने लगती हैं और एक सकारात्मकता और रचनात्मकता का संचार होने लगता है।