जब से एशिया कप 2025 का ऐलान हुआ है, तब से ही भारत में बड़ी संख्या में लोग यह मांग कर रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ किसी भी मंच पर मुकाबला न खेला जाए। आम जनता का साफ कहना है कि जिस आतंक के पनाहगाह देश के साथ खेल संबंध रखना शहीदों की शहादत के अपमान से कम नहीं। इसके बावजूद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने सरकार, जबकि सरकार ने ओलंपिक चार्टर का हवाला देकर भारत-पाकिस्तान मैच को हरी झंडी दे दी। यह कदम करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को नजरअंदाज करने जैसा है। खेल का उद्देश्य भाईचारा और मेल-मिलाप बढ़ाना होता है, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट अब खेल से कहीं आगे एक राजनीतिक और भावनात्मक जंग बन चुका है।

आतंकवाद और सुरक्षा का संकट

भारत दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। संसद पर हमला, 26/11 मुंबई हमला और पुलवामा अटैक जैसी दर्दनाक घटनाएं आज भी ताजा हैं। इन हमलों में सैकड़ों निर्दोष लोग और सुरक्षाकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं। ऐसे में पाकिस्तान से खेल संबंध रखना शहीदों के बलिदान के प्रति अपमान जैसा लगता है। जब हमारे सैनिक सीमा पर जान की बाजी लगा रहे हों तो स्टेडियम में तालियों के बीच पाकिस्तान से मुकाबला खेलना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण

खेल जगत में राजनीतिक और मानवीय कारणों से बहिष्कार के कई उदाहरण मौजूद हैं। दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद की नीति के कारण 1970 से 1991 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर कर दिया गया था। हाल ही में रूस पर यूक्रेन युद्ध के चलते कई वैश्विक खेल प्रतियोगिताओं से प्रतिबंध लगाया गया। यानी खेल की दुनिया भी यह मानती है कि जब तक कोई देश अंतरराष्ट्रीय मानकों और मूल्यों का पालन नहीं करता तब तक उसके साथ खेल संबंध रखना उचित नहीं।

ध्यान रहे कि भारत पहले भी एशिया कप में खेलने से इनकार कर चुका है। भारत ने श्रीलंका के साथ तनावपूर्ण क्रिकेट संबंधों के कारण 1986 के टूर्नामेंट का बहिष्कार किया था। हाल ही में लीजेंड्स लीग क्रिकेट में भी इंडिया लीजेंड्स ने पाकिस्तान के साथ खेलने से साफ इनकार कर दिया था, क्योंकि पड़ोसी मुल्क की टीम की कमान भारत के खिलाफ आग उगलने वाले शाहिद अफरीदी के हाथ में थी। ये घटनाएं बताती हैं कि सिर्फ जनता ही नहीं, बल्कि खिलाड़ी भी मानते हैं कि पाकिस्तान के साथ किसी भी मंच पर खेलना उचित नहीं है।

खेल का राजनीतिक इस्तेमाल

भारत-पाकिस्तान मुकाबले को हमेशा खेल भावना से नहीं देखा जाता। पाकिस्तान में हर बार भारत पर जीत को ‘राजनीतिक जीत’ और ‘जिहाद की तरह की उपलब्धि’ बताया जाता है। वहां का मीडिया और सरकार इसे युद्ध का रूप दे देते हैं। इससे दोनों देशों के बीच नफरत और गहरी होती है। खेल का उद्देश्य अगर शांति और संवाद है, तो पाकिस्तान के साथ यह बिल्कुल भी संभव नहीं दिखता।

आर्थिक लाभ बनाम राष्ट्रीय सम्मान

यह सही है कि भारत-पाकिस्तान मुकाबले ब्राडकास्टरों और आयोजकों के लिए सोने की खान साबित होते हैं। अरबों रुपये की विज्ञापन कमाई सिर्फ इस एक मैच में दांव पर लगाई जाती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या आर्थिक लाभ के लिए हम अपने राष्ट्रीय सम्मान और सुरक्षा के मुद्दों को ताक पर रख सकते हैं? पैसे से बढ़कर देश की गरिमा और शहीदों का बलिदान है।

भारत का रुख और भविष्य

भारत ने 2012 के बाद से पाकिस्तान के साथ कोई द्विपक्षीय क्रिकेट शृंखला नहीं खेली है। आईसीसी टूर्नामेंट या एशिया कप जैसी प्रतियोगिताओं में ही मजबूरी में दोनों टीमें आमने-सामने होती हैं। यही रुख भविष्य में और मजबूत होना चाहिए। यदि भारत दृढ़ता से कहे कि वह किसी भी मंच पर पाकिस्तान के साथ मैदान साझा नहीं करेगा तो यह न सिर्फ एक कड़ा संदेश होगा, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मोर्चे को भी मजबूत करेगा।

अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि खिलाड़ी और कलाकारों को सीमाओं में नहीं बांधा जाना चाहिए, क्योंकि उनका मकसद खेल और कला के जरिए लोगों को जोड़ना है, लेकिन अगर यही तर्क देश की सेना अपनाए तो क्या होगा? क्या सैनिक यह कह सकते हैं कि उनका भी दूसरे देश के सैनिकों से कोई व्यक्तिगत बैर नहीं है, इसलिए उन्हें सीमा पर लड़ना और जान नहीं गंवानी चाहिए? वास्तविकता यह है कि सेना राष्ट्रहित में हर बलिदान देती है। ऐसे में कलाकारों और खिलाड़ियों को भी यह समझना चाहिए कि उनका आचरण केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गरिमा से जुड़ा होता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच खेल संबंधों का सवाल सिर्फ क्रिकेट तक सीमित नहीं है। यह देश की सुरक्षा, शहीदों की शहादत और राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़ा प्रश्न है। खेल को शांति का प्रतीक कहा जाता है, लेकिन जब वही खेल नफरत, तनाव और सियासी साजिश का मंच बन जाए तो उससे दूरी बनाना ही समझदारी है। पाकिस्तान के साथ मुकाबला तभी होना चाहिए जब वह आतंकवाद और घृणा की राजनीति छोड़कर सभ्यता और शांति की राह पर आए।