बिहार की हार के बाद ‘इंडिया’ समूह के दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप और दूसरी ओर ‘हारे को हरिनाम’ होने लगा कि हम इस तरह क्यों हारे! एक कहिन कि ‘जंगलराज’ ने हराया, दूसरे कहिन कि सहयोगियों ने ही हराया। फिर एक हलके में ‘दिल को समझाने को गालिब ये खयाल अच्छा’ आया कि हम कहां हारे… हमें हराया गया… ‘वोट चोरी’ ने हराया..! फिर कर्नाटक में अचानक ‘मुख्यमंत्री बरक्स उपमुख्यमंत्री’ होने लगा। दिल्ली दरबार ने कहा कि हमारे सिर न पड़ो… अपनी समस्या अपने आप हल करो।

फिर कहा कि आपस में बैठकर ‘नाश्ता-वास्ता’ करो… रास्ता निकालो। इसके बाद ‘आज्ञाकारी’ की तरह एक सुबह एक ने दूसरे को इडली-डोसा, सांबर-उपमा का नाश्ता कराया, तो जवाब में दूसरे ने पहले को बुलाकर इडली-डोसा, सांबर-उपमा खिलाया। एक चाहे कि अभी हो और आधी इडली आधा डोसा हो, क्योंकि कल का क्या भरोसा, तो दूसरा चाहे कि काहे का आधा और काहे का ‘उप’! फिर एक दिन कई चैनलों में राष्ट्रगीत ‘वंदेमातरम्’ की 150 वीं वर्षगाठ मनाने और संसद में अन्य बहुत से शब्दों के साथ ‘वंदेमातरम्’ का नाम ‘न लेने और लेने’ के भ्रम पर चर्चा करने की खबर आई, लेकिन अफसोस कि इस ‘वंदेमातरम्’ की प्रतिक्रिया में मानो एक अल्पसंख्यक समुदाय के बड़े नेता ने ‘जिहाद’ की चर्चा चलाकर एक नया ही मोर्चा खोल दिया।

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उन्होंने फरमाया कि ‘जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा… इस्लाम में जुल्म का खात्मा जिहाद का हक है… दस फीेसद लोग मुुसलमानों के साथ हैं, तीस फीसद खिलाफ हैं। साठ फीसद वे हैं, जिनको मुसलमान समझाएं… नहीं तो बड़ी मुश्किल पैदा होगी! एक मुसलमान ने अलबत्ता इसका विरोध किया, लेकिन तभी बंगाल के एक सत्तापक्षी विधायक ने एलान कर दिया कि वे बंगाल में ‘बाबरी मस्जिद बनाएंगे… सौ मुसलमान मरें तो पांच सौ को लेकर मरें..! इसे सुनते ही एक एंकर कह उठा कि इसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया जाता? फिर एक निरा बेशर्म-सा दृश्य भी दिखा। केरल के विपक्ष के एक विधायक  पर गंभीर ‘यौन अपराध’ के आरोप लगे। उनको गिरफ्तार करने की मांगें भी रहीं, लेकिन वे अब तक गायब दिखे और वे जिस वीडियो में दिखे, उसमें हंसते हुए ही दिखे। यानी ‘या बेशर्मी तेरा ही आसरा..!’

फिर आया शीतकालीन सत्र के शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री का एक संबोधन कि हमारे सदन को चुनावी गर्माहट के लिए या बौखलाहट के लिए उपयोग किया जा रहा है… ये ‘सत्ता विरोधी लहर’ के लिए मैदान में जो नहीं कह पाते, वो सारी बातें सदन में निकालते हैं। ये सोचें और नीति बदलें तो मैं ‘नुस्खे’ देने को तैयार हूं। देश, विपक्ष के खेल को स्वीकार नहीं कर रहा। संसद में ‘ड्रामा’ नहीं ‘डिलीवरी’ होनी चाहिए… जहां से पराजित होकर आए, वहां बोल चुके… जहां से पराजित होकर आने वाले हैं, वहां बोल दीजिएगा..!

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प्रधानमंत्री के ऐसे कटाक्षों के जवाब में एक दृश्य में एक विपक्षी नेता की गाड़ी में कुत्ता अपनी चुप्पी के साथ दिखा, जिसकी व्याख्या विपक्षी नेता ने ही की कि ये काटता नहीं… जो काटते हैं, अंदर बैठे हैं..। सत्ता-प्रवक्ता ‘जो काटते हैं, अंदर हैं…’ को लेकर किंचित बिफरते भी दिखे, लेकिन विपक्ष का यह कटाक्ष एकदम निशाने पर चोट की तरह ही महसूस हुआ। फिर विपक्ष का एक ‘चाईवाला चाईवाला’ के साथ तंज करने वाला वीडियो भी घिसा-पिटा लगा।
यह शीतकालीन सत्र भी पिछले सत्र की तरह मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्ष के प्रदर्शनों से सुशोभित दिखा। कई ‘बीएलओ’(बूथ स्तरीय अधिकारी) की मौतों को देख विपक्ष की मांग रही कि ‘बीएलओ’ दबाव से परेशान हैं, इसलिए ‘एसआइआर की जल्दबाजी’ पर संसद में तुरंत चर्चा हो, जिसे अंतत: सत्ता पक्ष द्वारा मान लिया गया।

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इसी बीच सत्ता की एक और पलटी दिखी: एक दिन जनहित में आनलाइन फर्जीवाड़ा रोेकने के लिए सरकार ने ‘संचार साथी’ लाने का एलान कर दिया। ‘निजता के हनन’ को लेकर विपक्ष की आपत्ति पर मंत्री ने साफ किया कि आप चाहें, तो ‘संचार साथी’ ऐप को ‘डिलीट’ कर सकते हैं, लेकिन जब विपक्ष अड़ा रहा कि ‘निजता का हनन’ क्यों, तब सरकार ने ‘संचार साथी’ ऐप की ‘अग्रिम अनिवार्यता’ को हटाने की बात कह कर ‘बीच का रास्ता’ निकाला। लेकिन सत्ता का ‘विउपनिवेशीकरण अभियान’ जारी रहा।

प्रधानमंत्री आवास परिसर को ‘सेवा तीर्थ’, ‘केंद्रीय सचिवालय’ को ‘कर्तव्य भवन’ और राजभवन को ‘लोक भवन’ घोषित किया गया। अंत में एक बार फिर ‘जिहाद’ के व्याख्याकार ने फरमाया कि ‘जिहाद’ एक पवित्र शब्द है, ‘जिहाद’ के बारे में स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। मगर पुतिन के भारत दौरे ने और प्रधानमंत्री के साथ उनके तालमेल ने वैश्विक राजनीति में सबसे बड़ी खबर बनाई। उधर पुतिन ने एक हिंदी चैनल को लंबा साक्षात्कार देकर हिंदी वालों का दिल जीत लिया।