खुशी का इजहार करने के लिए और भी कई तरीके हैं। इनमें संगीत-नृत्य का आयोजन, नगाड़े एवं ढोलक बजाना, लोकगीत गायन या खुल कर नृत्य करना हो सकता है। भूले-बिसरे पारंपरिक तरीके भी अपनाए जा सकते हैं। सहभोज को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। लेकिन सवाल है कि कुछ लोग खुशी की अभिव्यक्ति को केवल पटाखों से जोड़ कर क्यों देखते हैं। जब पटाखों पर सवाल उठता है, तब कई लोग तर्क देते हैं कि इससे अधिक वाहनों और फैक्टरियों से प्रदूषण फैलता है, तो इस पर भी गौर किया जाना चाहिए। इस तर्क में दम है, लेकिन वाहनों का निजी और सार्वजनिक उपयोग कहीं महत्त्वपूर्ण है।

इसके समांतर पटाखों के पक्ष में तर्कों को कसौटी पर रखना चाहिए। पटाखे हर तरह से पर्यावरण के लिए नुकसानदायक ही नहीं, खतरनाक भी हैं। अरबों रुपए के आर्थिक नुकसान के साथ हर वर्ष पटाखों से काफी लोगों की मौत हो जाती है। पटाखा फैक्टरियों में इन्हें बनाते समय और पटाखों का इस्तेमाल करने के दौरान कई लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं।

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कुछ समय पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस दौरान प्रधान न्यायाधीश ने दिल्ली-एनसीआर में ही पटाखों पर प्रतिबंध लगाने पर सवाल किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही क्यों पटाखों पर प्रतिबंध होना चाहिए?

देश में जहां-जहां प्रदूषण की विकट समस्या है, उन शहरों और कस्बे में भी पटाखों पर प्रतिबंध क्यों नहीं होना चाहिए? जितना अधिकार दिल्ली के लोगों को साफ हवा में सांस लेने का है, उतना ही अधिकार उन सभी शहरों के लोगों का भी है, जहां प्रदूषण की समस्या बेहद चिंताजनक बनी रहती है। अदालत के मुताबिक, प्रदूषण के संबंध में जो भी नीति हो, वह अखिल भारतीय स्तर पर एक जैसी होनी चाहिए।

इसके पहले पांच मई 2025 को सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान सरकारों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों पर प्रतिबंध को सख्ती सें लागू करने का निर्देश दिया था और चेतावनी दी थी कि इसका पालन न करने पर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। इससे पहले भी कई बार सर्वोच्च न्यायालय इस बाबत आदेश जारी कर चुका है। इन आदेशों का कितना पालन हुआ, यह सभी जानते हैं। हालांकि हरित पटाखों को लेकर कुछ हलकों में सकारात्मक धारणा रही है।

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पटाखों के इस्तेमाल से अनिद्रा, तनाव, कान के पर्दे फटने और बीमार लोगों के लिए बेहद गंभीर हालात पैदा करने जैसी तमाम परेशानियां सामने आती हैं। इनसे हुई गंदगी, उसके रसायन और बिखरे हुए कागज किसी मुसीबत से कम नहीं होते। मगर विडंबना यह है कि आम आदमी सभी तरह के आदेशों, सरकारी प्रतिबंधों और परामर्श को हमेशा अनदेखा करता आया है। पटाखों पर तमाम पाबंदियों के बावजूद बड़े पैमाने पर पटाखे और सुतली बमों का इस्तेमाल होता है। दीपावली और उसके आसपास एक-दो दिन तक रास्ते में चलना भी मुश्किल हो जाता है।

कई दिनों तक विषैले धुएं का गुबार वातावरण में छाया रहता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। पटाखों की ऐसी लड़ी जलाई जाती है कि सड़क पर यह लोगों के लिए जानलेवा बन जाती है। सवाल यह है कि ये सब किसकी खुशी के लिए होता है? इस त्योहार पर होड़ देखी जा सकती है कि देखते हैं कौन कितना आगे है पटाखे फोड़ने में। खबरों के मुताबिक, दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई परिवार एक हजार से लेकर एक लाख रुपए तक के पटाखे कुछ ही घंटों में जला देते हैं। सवाल है कि यह त्योहार मनाने का तरीका है या प्रदूषण फैलाने की प्रतियोगिता?

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इस पर विचार किया जाना चाहिए कि पटाखों का इस्तेमाल कई जटिल समस्याओं को भी जन्म देता है। पटाखों को जलाने पर इसकी तेज आवाज और इससे निकलने वाले विषैले कण-धुआं बेहद घातक हैं। ये पटाखे चलाने वालों में ही समस्या नहीं पैदा करते, बल्कि वहां मौजूद दूसरे लोग भी उससे प्रभावित होते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक पटाखे जलाने से सल्फर डाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड के अलावा लेड सहित अन्य रसायन वातावरण में फैल कर कई तरह की गंभीर समस्याएं पैदा करते हैं। ये सभी बेहद जहरीले होते हैं। दिल, दिमाग, यकृत, गुर्दे, खून और हड्डियों तक गंभीर रूप से असर करते हैं। इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण के साथ मिट्टी और जल प्रदूषण भी होता है।

अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़े में रोग जैसी बीमारियों की एक वजह पटाखे भी बन गए हैं। हृदयाघात का खतरा और दिल की धड़कन अनियमित होना सामान्य बात है। श्वसन से ताल्लुक रखने वाली समस्याओं और त्वचा संबंधी बीमारियों का जोखिम भी पटाखों से बढ़ जाता है। एक शोध के मुताबिक पटाखे सार्वजनिक जल आपूर्ति को भी जहरीला बना सकते हैं। उस पानी का इस्तेमाल करने वाली आबादी कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियों का शिकार हो सकती है।

अनुसंधान में इसका वनस्पतियों पर भी बुरे असर का पता लगा है। बताया गया है कि वनस्पतियों के विकास और पैदावार दोनों पर असर पड़ता है। धूल तक जहरीली हो जाती है। पटाखे जमीन के नीचे के पानी को भी प्रदूषित कर सकते हैं। यही नहीं थाइराइड की बीमारी भी पैदा कर सकते हैं। श्वास नली में विषैले तत्त्व जाने से इसके क्षतिग्रस्त होने का खतरा भी होता है।

पटाखों से वायु, ध्वनि, भूमि और जल प्रदूषण होता है। यानी ये पूरे पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। पटाखों ने आर्थिक नुकसान के साथ शारीरिक तथा मानसिक रोग ही पैदा नहीं किए, बल्कि कई तरह के सवाल भी खड़े किए हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक परंपराओं और विधानों पर भी सवालिया निशान लगते हैं। जिन पटाखों को खुशी मनाने के नाम पर जलाया जाता है, वे हिंसक और शोर-गुल पसंद संस्कृतियों का कभी हिस्सा हुआ करते थे।

भारत में मध्यकाल में इनका प्रचार-प्रसार ज्यादा हुआ और देखते-ही-देखते ये भारतीय समाज के हर वर्ग में खुशी का इजहार करने का जरिया बन गए। हमारे यहां किसी भी उत्सव और पर्व-त्योहार का हिस्सा ये नहीं होते थे, क्योंकि इनका यहां निर्माण ही नहीं होता था। शांति, प्रेम, सद्भाव और सहिष्णुता वाली भारतीय संस्कृति में खुशी प्रकट करने के लिए नृत्य, संगीत समारोह, आम की पत्तियों से बंदनवार सजाने, चित्रकारी करने और अनेक प्रतीकों का प्रयोग किए जाने की परंपरा रही है।

पटाखों पर सरकारी प्रतिबंध और सर्वोच्च अदालत के आदेश का सभी राज्य की पुलिस कितना पालन करवा पाएगी, यह तो दीपावली और दूसरे त्योहारों पर ही पता चलेगा, लेकिन लोगों को जागरूक करने का कार्य बड़ेÞे पैमाने पर किया जाना चाहिए। जिससे आने वाले समय में पटाखे को लेकर किसी तरह की प्रदूषण संबंधी समस्याएं न पैदा हों। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में पटाखों पर प्रतिबंध महज दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हर उस शहर में भी लगाया जाएगा, जहां प्रदूषण की समस्या हमेशा बनी रहती है।