प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 126वें संस्करण में यह घोषणा की कि भारत सरकार ‘छठ महापर्व’ को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) सूची में शामिल कराने के लिए प्रयासरत है। यह खबर पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। प्रधानमंत्री ने छठ को “एक वैश्विक पर्व बनने की दिशा में अग्रसर उत्सव” बताते हुए कहा कि “जब इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी, तब पूरी दुनिया इसकी भव्यता और दिव्यता का साक्षात्कार करेगी।”
यह पहल छठ पूजा को योग और दुर्गा पूजा जैसी विश्व-प्रसिद्ध भारतीय परंपराओं की श्रेणी में ला खड़ा करती है। इससे स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार भारत की जीवंत सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित करने के लिए प्रतिबद्ध है। परंतु यह केवल मान्यता की बात नहीं है; छठ पूजा एक ऐसी जीवन-दृष्टि है जो सह-अस्तित्व, पारिस्थितिक संतुलन और आत्म-अनुशासन के सिद्धांतों पर आधारित है।
प्रकृति से तादात्म्य का प्राचीन पर्व
आज जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन पूरी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती बन चुके हैं, छठ पूजा चुपचाप यह संदेश देती है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना ही स्थायी विकास का मार्ग है। ऋग्वेद में उल्लिखित यह प्राचीन पर्व अध्यात्म और पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संगम है — वह विचारधारा जिसे भारत ने सदियों से अपने जीवन-मूल्यों में पिरो रखा है।
जो पर्व कभी बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित था, वह अब सीमाओं को लांघकर विश्वभर में फैल चुका है। पटना के घाटों से लेकर मॉरिशस के समुद्र तटों तक, नई दिल्ली से लेकर न्यूयॉर्क तक सूर्योपासक श्रद्धालु एकत्र होते हैं — जलाशयों की सफाई करते हैं, दीप प्रज्वलित करते हैं और अस्ताचल व उदयाचल सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि मानव और प्रकृति के शाश्वत संबंध की पुनः पुष्टि भी है।
आस्था में विज्ञान की गूंज
छठ पूजा मूल रूप से सूर्य — जीवन और ऊर्जा के अनंत स्रोत — के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। इसके अनुष्ठान, जैसे व्रत रखना, कटिस्नान (कमर तक जल में खड़ा रहना) और सूर्योदय व सूर्यास्त के समय उपासना — सब आत्म-संयम, शुद्धता और पर्यावरणीय चेतना के प्रतीक हैं।
हर क्रिया के पीछे वैज्ञानिक आधार निहित है — सूर्य की किरणें शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं, वातावरण को कीटाणुरहित करती हैं और शरीर को विटामिन-डी प्रदान करती हैं। वहीं जल में खड़े रहने से शरीर पर हाइड्रोथैरेपी का प्रभाव पड़ता है, जो शारीरिक और मानसिक पुनरुत्थान में सहायक होता है।
इस पर्व की स्वच्छता और शुचिता की परंपरा स्वच्छ भारत अभियान और नमामि गंगे जैसे अभियानों की भावना से पूरी तरह मेल खाती है। भक्तजन सामूहिक रूप से तालाबों, नदियों और मोहल्लों की सफाई करते हैं, जिससे यह पर्व एक जन-आधारित पर्यावरण अभियान का रूप ले लेता है।
कृतज्ञता, अनुशासन और सामाजिक समरसता का पर्व
मिथिला क्षेत्र, जहाँ देवी सीता का जन्म हुआ था, वहाँ प्रकृति के प्रति आभार और श्रद्धा जीवन का अभिन्न अंग है। सूर्य, जल, वृक्ष और पशुओं की पूजा केवल परंपरा नहीं, बल्कि धर्म का वह स्वरूप है जो संपूर्ण सृष्टि को एक सूत्र में पिरोता है।
छठ पूजा न केवल आध्यात्मिक अनुशासन सिखाती है, बल्कि सामाजिक एकता और पारिवारिक सौहार्द का भी उत्सव है। व्रती संयम और सात्त्विकता का पालन करते हैं, जिससे समाज में नैतिकता और भाईचारे की भावना मजबूत होती है। आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में छठ जैसी परंपराएँ मनुष्य को आत्म-संयम, संतुलन और सामूहिकता का बोध कराती हैं।
यूनेस्को मान्यता: सांस्कृतिक कूटनीति से आर्थिक सशक्तिकरण तक
भारत सरकार की यह पहल केवल सांस्कृतिक गौरव की बात नहीं है, बल्कि इसके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय निहितार्थ भी गहरे हैं —
- सांस्कृतिक कूटनीति: अंतरराष्ट्रीय मंच पर छठ पूजा का प्रचार-प्रसार भारत की जीवंत परंपराओं को दुनिया के सामने प्रस्तुत करेगा और भारतीय प्रवासी समुदाय के साथ सांस्कृतिक सेतु को मजबूत करेगा।
- पर्यावरणीय संदेश: यह पर्व जल और वायु की शुद्धता, प्रदूषण-मुक्त परिवेश तथा सूर्य और पृथ्वी के प्रति श्रद्धा जैसे सतत विकास के सिद्धांतों को आत्मसात करता है।
- आर्थिक प्रोत्साहन: छठ पूजा की मान्यता स्थानीय हस्तशिल्प, पर्यटन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल देगी। पूजा में प्रयुक्त बाँस की टोकरी, मिट्टी के दीपक, फल और अनाज जैसे देसी उत्पाद कारीगरों और किसानों के जीवन-यापन का आधार हैं।
- वैश्विक महत्व: जब पूरी दुनिया सौर ऊर्जा की ओर अग्रसर है, तब सूर्योपासना का यह पर्व आस्था और विज्ञान — दोनों का अद्भुत संगम बन जाता है।
छठ को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की दरकार
अब यह मांग प्रबल हो रही है कि छठ पूजा को राष्ट्रीय पर्व का दर्जा दिया जाए। इसकी पवित्रता, अनुशासन और समरसता की भावना देश के हर हिस्से और धर्म में समान रूप से गूंजती है। यह ऐसा पर्व है जो सामूहिक स्वच्छता, सामाजिक शालीनता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता के मूल्यों को जीने का अवसर देता है।
राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने से न केवल इन मूल्यों को नई ऊर्जा मिलेगी, बल्कि यह सरकार की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहलों को भी सशक्त बनाएगा।
भारत की आत्मा, विश्व के लिए संदेश
हर भारतीय पर्व किसी न किसी नैतिक शिक्षा का वाहक होता है, पर छठ पूजा अपनी भक्ति, अनुशासन और वैज्ञानिक प्रासंगिकता के कारण विशिष्ट है। जब छठ की सुबह उगता सूर्य घाटों पर झिलमिलाता है, तो वह केवल जल को नहीं, बल्कि मनुष्य की आत्मा को भी आलोकित करता है — आशा, नम्रता और समरसता के प्रकाश में।
इस परंपरा को सहेजना भारत के लिए अपने अतीत का सम्मान करने के साथ-साथ भविष्य के लिए सतत जीवन का मार्ग प्रशस्त करना है। छठ पूजा, जो कभी एक क्षेत्रीय पर्व मानी जाती थी, आज भारत की सांस्कृतिक दृढ़ता और पर्यावरणीय बुद्धिमत्ता का वैश्विक प्रतीक बन रही है — प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शी पहल के बल पर यह अब विश्व धरोहर बनने की दिशा में अग्रसर है।
लेखक डॉ. बीरबल झा एक प्रसिद्ध सांस्कृतिक कार्यकर्ता और सामाजिक चिंतक हैं। युवाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक विकास में उनके अग्रणी योगदान के लिए वे व्यापक रूप से सम्मानित हैं। उन्होंने भारत की भाषाई और सांस्कृतिक खाइयों को पाटने का सफल प्रयास किया है, जिससे देश में आत्मविश्वास, संवादशीलता और सामाजिक एकता की भावना को बल मिला है।
