अमेरिका में राजनीतिक कार्यकर्ता चार्ली किर्क की दिनदहाड़े हत्या ने एक साथ कई सवालों को जन्म दिया है। इनमें सबसे प्रमुख सवाल है राजनीतिक विमर्श में बढ़ती असहिष्णुता। इसका सीधा तात्पर्य है—प्रतिकूलता और शत्रुता के बीच का अंतर समाप्त हो जाना। पूरी दुनिया में यह प्रवृत्ति अमरबेल की तरह बढ़ती जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम अतिरेक युग में प्रवेश कर चुके हैं।

पश्चिम की परंपरा ही चित या पट की रही है। आक्सफोर्ड, कैंब्रिज और हावर्ड विश्वविद्यालयों में गैर-पश्चिम दुनिया को देखने एवं परखने की कोशिशें होती रही हैं, पर वे दूसरों से जो अपेक्षा करते हैं, उसे अपनी ही सभ्यता में लागू नहीं कर पा रहे हैं। इसी को कहते हैं—चिराग तले अंधेरा। उन्होंने बौद्धिकता की केंद्रीकृत धारा को आगे बढ़ाया। यह स्वाभाविक तौर पर एकरूपतावादी हो जाता है।

भारत की परंपरा में बौद्धिकता केंद्रीकृत नहीं रही है। तभी तो आध्यात्मिक ग्रंथों के भी अनेक रूप और कभी-कभी तो परस्पर विरोधी संस्करण रहे हैं। रामायण इसका एक उदाहरण है। इसके लगभग 300 अलग-अलग व्याख्या के संस्करण हैं। यह विकेंद्रीकृत बौद्धिकता का परिणाम है। पश्चिम जगत में बहुलता शृंगार के रूप में है। थोड़ा भी असंतुलन उनके लिए असहनीय हो जाता है। भौतिक समृद्धि से वे अपनी कमियों को ढकते रहे हैं। वहां नस्लवाद और रंगभेद दोनों ही खूब प्रचलित हैं। ऐसा नहीं होता तो सेसिल रोड्स, जो घोर नस्लवादी थे, उनकी मूर्ति तो दक्षिण अफ्रीका में तोड़ दी गई, पर समानता का डंका पीटने वाले आक्सफोर्ड के एक कालेज में उनकी मूर्ति सम्मान के साथ स्थापित है।

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अमेरिका में 75 फीसद अश्वेतों के साथ भेदभाव होता है। अमेरिका मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) के समानता मूलक दर्शन को दुनिया के सामने जरूर परोसता है, लेकिन वे जिन अश्वेतों के हक के लिए लड़ते रहे, उन्हें सम्मान एवं बराबर अवसर नहीं मिल पा रहा है।

अतिशय भौतिकता कभी भी सामाजिक-सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा नहीं दे सकती है। वह अंततः समाज को व्यक्ति केंद्रित बनाती है। ऐसे में हल्की बातें, विलासितापूर्ण गतिविधियां और पहचान मूलक सतही विचार लोगों को पसंद आने लगते हैं। जबकि मानसिक उन्नति के लिए गंभीर साहित्य, विचारपूर्ण समाजशास्त्र, सारगर्भित कला-कृतियां और प्रकृति प्रेम आवश्यक होता है। भौतिकवाद इन सबको रोकता है।

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इस कारण उपलब्धता के बीच मानसिक बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में चार फीसद वयस्क नींद की गोली का इस्तेमाल करते हैं और चौबीस फीसद मानसिक रोग से ग्रस्त हैं। भौतिक विकास का यदि सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं से तालमेल टूट जाता है, तब परिणाम नकारात्मक होने लगता है। पैसा, पद एवं प्रतिष्ठा की होड़ छद्म संस्कृति पैदा करती है। इसके परिणामस्वरूप परंपरागत एवं प्रगतिशील सामाजिक संस्थाएं, जो वैकल्पिक चेतना का सृजन करती हैं, वे भी अप्रासंगिक होने लगती हैं।

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अमेरिका में परिवार संस्था का पतन इसी का परिणाम है। वहां पति-पत्नी के बीच संबंध विच्छेद की दर काफी ज्यादा है। बच्चों के लालन पालन में कठिनाइयां इसका एक पक्ष है। इससे कही अधिक चिंताजनक यह है कि वहां बड़ी संख्या में बच्चे सामाजिकता के बोध से वंचित रह जाते हैं। सफल बनने की होड़ में वे सार्थक मनुष्य की परिकल्पना खो देते हैं।

अमेरिका में जीवन भर अरबों रुपए कमाने वाले लोग अपने अंतिम पड़ाव के दौरान दान लेने वालों की पात्रता ढूंढ़ते हैं। मनुष्य को मशीन बनाकर काम करवाने के बाद वे दानवीर कर्ण बनना चाहते हैं। परिवार के बिखराव की कहानी लिखना, दानकर्ता बनकर तात्कालिक शोहरत पाना या बैंकों में ढेर सारा पैसा छोड़कर दुनिया से अलविदा हो जाना, भौतिकता की अंधेरी गली के यात्रियों का यही हस्र होता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, आज अमेरिका में प्रत्येक आधे घंटे में एक हत्या और प्रत्येक चार मिनट में एक बलात्कार की घटना होती है। यह सामाजिक-मानसिक असंतुलन का परिणाम है। संविधान चाहे जितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो, उसकी श्रेष्ठता तो सामुदायिक, पारिवारिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन से सृजित मूल्यों पर निर्भर करती है।

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यह सृजन जितना कमजोर पड़ेगा, देश और राज्य उसी अनुपात में यांत्रिक बनता जाएगा। आज दुनिया भर में देश या राज्य जीवंत कम, यांत्रिक अधिक हो गए हैं। अमेरिका में परिवार और समुदाय आदि परंपरागत संस्थाओं को ‘नाईट क्लबों’ ने विस्थापित कर दिया है। वहां कथित स्वतंत्रता के चरम के बीच समय व्यतीत होता है।

मन और शरीर जब आकांक्षाओं में बेलगाम हो जाता है, तो उसे ययाति के नाम से संबोधित करते हैं। ययाति एक राजा था, जो बेहद आकांक्षी था। मगर अंततः उसे भी संतुष्टि नहीं मिली। रोमन साम्राज्य बौद्धिकता के बल पर बढ़ा, लेकिन जब भौतिकता ही समाज का सम्राट बन गया, तब समाज में विरोधाभास, अंतर्विरोध, असंतुलन और बिखराव बढ़ने लगा। उसे नियंत्रित करने का कोई रास्ता नहीं बचा।

अमेरिका में हजारों प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान हैं, लेकिन वहां नैतिक और सामाजिक साक्षरता का सूचकांक संतोषजनक नहीं है। प्रबुद्ध संस्थाएं भी बड़ी संख्या में हैं, वे मनुष्य को संवैधानिक तो बना पा रही हैं, लेकिन बुनियादी प्रश्नों तक नहीं पहुंच पाती हैं। अमेरिका बाहर की दुनिया से बौद्धिकता उधार लेकर आगे बढ़ रहा है। अमेरिका में कंप्यूटर विज्ञान में साठ फीसद गैर-अमेरिकी वैज्ञानिक हैं, तो इंजीनियरिंग में 57 फीसद और जीव एवं कृषि विज्ञान में 50 फीसद हैं। असल में अमेरिका बौद्धिक रिक्तता का शिकार है।