कुछ ‘उधर’ से ‘वीरोक्तियां’ आई हैं, कुछ इधर से गई हैं- आपरेशन सिंदूर अभी जारी है! एक दिन एक जवाबी वीरोक्ति आई कि कराची का रास्ता सर क्रीक से होकर जाता है… फिर दूसरी आई कि ‘पाक को भूगोल में रहना है कि नहीं…। वीरोक्तियों के दो गोले ‘पाक’ पर चले, तो एक ‘26/11’ पर चल गया जो पूर्व मंत्री चिदंबरम को लगा, तो वे बोले कि ‘राम का नाम बदनाम न करो।’

हजार आरोपों के बावजूद चुनाव आयोग ने संवाददाता सम्मेलन करके बता दिया कि उसका मतलब है और वही ‘निर्णायक’ है। उसने बताया कि चुनाव दो चरणों में होंगे और बिहार में अब कुल कितने वोटर हैं। आश्चर्य कि कल तक ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाने वाले गायब दिखे।

बिहार को लेकर अब तक चार सर्वेक्षण हो गए और चारों में ही सर्वेक्षकों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 130 से 150 सीट तक लेते दिखाया। एक से एक नामी सर्वेकार ने यही माना कि नीतीश के खिलाफ कोई ‘सत्ता विरोधी लहर’ नहीं है। फिर हर महिला को दस हजार रुपए देने की घोषणा ने विपक्ष की आलोचना की हवा निकाल दी है, क्योंकि बहुत-सी महिलाओं के खाते में रुपए सीधे पहुंच भी गए हैं। आखिरकार, ‘पैसा बोलता है’, यह बात उन्होंने भी मानी जो सरकार की हर बात में ‘मीन मेख’ निकालने के आदी हैं। जैसे कि इससे आम जनता आत्मनिर्भर नहीं बनती, बल्कि ‘परजीवी’ ही बनी रहती है। जब देने वाला दे सकता है, लेने वाला ले सकता है तब बीच में आप कौन?

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बहरहाल, इस सप्ताह की सबसे बड़ी खबर उस जूते ने बनाई जो सबसे बड़ी अदालत में चला और चैनलों एवं सोशल मीडिया में। यह तीन-चार दिन तक चलता रहा…। जिसने चलाया वह वकील, जिन पर चलाया वे महामहिम। वकील उस कथित टिप्पणी से नाराज था, जिसमें इस आशय का कुछ कह दिया गया, जो उन्हें अखर गया।

इसके बाद ‘मूर्ति की मरम्मत’ का मुद्दा तो हुआ किनारे, पहले वकील साहब की वकालत गई। बार काउंसिल ने उन्हें बाहर किया। उधर पूरे विवाद पर पानी डाल कर उसे शांत किया गया। पुलिस ने भी जूता फेंकने वाले पर मुकदमा दर्ज नहीं किया। जबकि वह कहता रहा कि मुझ पर मुकदमा करो…मुझे जेल भेजो। जूते ने सोशल मीडिया में आग लगा दी। सोशल मीडिया में तो ऐसा भीषण ‘जातिवादी विमर्श’ चला कि सही गलत का फैसला भी ‘जातिवाद’ की बलि चढ़ गया…। ‘निजी जाति’ तक बहसों में आ गई। सोशल मीडिया ‘जाति बरक्स जाति’ और ‘धर्म बरक्स धर्म’ के बीच फंसा रहा।

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जूते को लेकर कई चैनलों ने बड़े-बड़े वकील बुलाए, उनसे चर्चे करवाए और कहलवाया कि महामहिम ने जो कहा वह इरादतन नहीं था… कई बार वे इतने घिरे होते हैं कि गैरइरादतन कुछ निकल जाता है और लोग सिर्फ बात पकड़ते हैं..। एक और वकील साहब ने फरमाया कि असली खलनायक सोशल मीडिया है, जिसने जरा-सी बात को इतना तूल दे दिया।

इस बीच ‘रावण दहन’ हुआ तो फिर एक बार कई नेताओं ने अपने अपने कल्पित रावण का अपने-अपने तरीके से दहन किया। इन दिनों नेताओं के आपसी संबंध इतने तिक्त हैं कि किसी की तबीयत खराब होने पर उसका रकीब उसको ‘गेट वेल सून’ भी कहे, तो लोग ऐसा कहने वाले की ही मृत्यु की कामना करने लगते हैं जैसा कि इस दशहरे पर दिखा…।

विपक्ष के तीन नेताओं ने रावण की तरह किसी के ‘मरने’ की कामना की..। बिहार के चुनाव हों और दिनकर का ‘रश्मिरथी’ न हो, तो चुनाव कैसे? एक ‘रूठे नेता’ ने ‘रश्मिरथी’ को उद्धृत किया- ‘दे दो हमें पंद्रह ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम…’, लेकिन इतना ‘नहीं माना’ तो ‘रण होगा संघर्ष बड़ा भीषण होगा…’। लेकिन न कोई ‘रण’ हुआ, न ‘भीषण’… हां कुछ ‘वीर मुद्राएं’ रह गईं।

और अंत में सुप्रीम कोर्ट ने ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर विचार किया, तो चुनाव आयोग ने अपने सारे तथ्य सामने रखे। आयोग का कहना रहा कि आज तक किसी ने अपने नाम को हटाने की एक शिकायत नहीं की। इसे देख अदालत ने साफ कहा कि आरोप भावनात्मक अधिक थे, तर्क और तथ्यसंगत कम। न कोई नई अपील, न कोई नई शिकायत। फिर भी चर्चक लगे रहे कि जो आरोप थे, वे जब लगाए तो चुनाव आयोग को नई सूची बनानी पड़ी… यही हमारी जीत है..।