जमाने की नजरों में हम कैसे हैं? यह जानने के लिए कहीं और भटकने की आवश्यकता नहीं। न ही कोई हमें यह समझा पाएगा कि हम कैसे हैं? दरअसल, बहुत संभव होता है कि कोई हमारे प्रति आग्रह या दुराग्रह रखे। ऐसी स्थिति में अपने आप से अपना वास्तविक परिचय जानने के लिए हमें अपनी अंतरात्मा को ही टटोलना होगा। अंतरात्मा की गवाही इस तथ्य की पुष्टि स्पष्ट रूप से कर सकेगी कि वास्तव में हम कैसे है? निश्चित रूप से जब हम अपनी पहचान कर लेते हैं, तब अंतर्मन में किसी प्रकार के बोझ से बाधित नहीं होते। जीवन एकदम सहज और सरल हो जाता है। हमारा यह स्वभाव एक प्रकार से हमारे व्यक्तित्व को शृंगारित करने लगता है।

हम क्या कर रहे हैं और क्या सोच रहे है? क्या कुछ हम कर चुके और क्या कुछ हम करना चाह रहे थे? आने वाले दौर में हम अपने आप को किस मुकाम पर लाकर खड़ा करना चाह रहे थे? क्या कुछ हम पा चुके और क्या खो चुके? अब तक की सारी जिंदगी जमाने भर की उठापटक में गुजर गई कि आखिरकार हमने क्या खोया और क्या पाया? इस तरह के तमाम सवालों का सही जवाब और किसी के एक सवाल का भी नहीं। मगर हमारी अपनी अंतरात्मा को बखूबी ज्ञात होता है। हालांकि जाहिर तौर पर हम अपने अंतर्मन की वास्तविक दशा और मनोदशा को खुलकर अभिव्यक्त नहीं करते। लेकिन हम क्या हैं, यह गवाही तो हमारा मन देता ही रहता है।

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हमारा आचार-विचार और व्यवहार हर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकता। इस दृष्टि से हर किसी के बारे में मतभिन्नता बहुत स्वाभाविक होती है। बहुत संभव होता है कि कोई किसी के लिए अच्छे से अच्छा हो और किसी के लिए बुरे से बुरा हो। ऐसी स्थिति में जब हम यह मूल्यांकन करना चाहें कि हम वास्तव में क्या हैं, तब स्वयं के बारे में निष्पक्ष तथा तटस्थ अवधारणा की पुष्टि हमारी अंतरात्मा ही करती है। वास्तव में आदमी जमाने को धोखा दे सकता है और स्वयं भी धोखे में रह सकता है, लेकिन यह संभव नहीं कि कोई लंबे समय तक धोखे में रह सके। अंतरात्मा की गवाही नकारात्मक होने पर अपराधबोध और सकारात्मक होने पर आत्मबल में वृद्धि करती है।

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दरअसल, व्यक्ति विशेष के अंतरंग और बहिरंग में एकरूपता हो, ऐसी अपेक्षा की जाती है, लेकिन इस अपेक्षा की कसौटी पर हर कोई खरा उतर सके, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। व्यक्ति विशेष के प्रति आम धारणा चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह धारणा पूर्ण रूप से सकारात्मक या पूर्ण रूप से नकारात्मक भी हो सकती है। आजकल के जमाने में सर्वमान्य शख्सियत की परिकल्पना दिवास्वप्न से अधिक कुछ नहीं है। यह बहुत संभव होता है कि नकारात्मक व्यक्ति के पक्ष में कुछ सकारात्मक बिंदु भी हों। ठीक इसी तरह सकारात्मक में भी नकारात्मकता के अंश को खोजा जा सकता है।

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गरज यह कि इस संसार में कोई भी परिपूर्ण नहीं है। सामान्य बोलचाल में भी कहा गया है कि लोगों ने राजा राम को नहीं छोड़ा तो आप हम क्या है! ऐसी स्थिति में यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने स्तर पर एकदम सही रहें। हमारा सकारात्मक सोच-विचार तथा कार्य और व्यवहार पूर्ण रूप से सात्विक रहे। एक अर्थ में अपने व्यक्तित्व और कृतित्व को हम खुद ही समय-समय पर तटस्थ एवं निष्पक्ष रूप से आकलित कर प्रमाणित करते रहें। यही आत्म-मूल्यांकन का सिलसिला हमारे अपने अंतर्मन की संतुष्टि का अहम कारण बन सकता है। इससे आत्मबल में वृद्धि होती है, जिसके चलते जीवन संवर जाता है।

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हमारा हाव-भाव और व्यवहार भी जमाने भर को हमारे व्यक्तित्व एवं कृतित्व के मूल्यांकन का आधार देता है। चित्त की सहजता और सरलता के मनोभाव आचार-विचार और व्यवहार से परिलक्षित होते हैं। इसके अलावा, चित्त की कुटिलता का आकलन भी प्रयुक्त शब्दावली और भाव-भंगिमा के आधार पर सहज ही किया जा सकता है। दरअसल, इस सहज मनोविज्ञान को औसत स्तर के आम व्यक्ति के लिए भी समझना कोई दुष्कर नहीं है। यह निश्चित है कि जब हम सहज और सरल होते हैं, तो हमारा आत्मबल अत्यंत विकसित अवस्था में आकर सकारात्मक वातावरण का सृजन करने में प्रबल रूप से सहायक होता है।

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इसमें कोई दो मत नहीं कि हमारे अपने आसपास के परिवेश में, जान-पहचान के लोगों के बीच हमारे व्यक्तित्व एवं कृतित्व को लेकर आमतौर पर कोई न कोई धारणा अवश्य होती है। यह धारणा केवल नकारात्मक या केवल सकारात्मक ही हो, यह कतई आवश्यक नहीं होता। ऐसा भी होता है कि जमाने की निगाहों में हमारे व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति मिली-जुली धारणा हो। ऐसी स्थिति में कभी-कभी हमें संदेह का लाभ भी मिल जाया करता है। दरअसल, इस संसार में कोई भी व्यक्ति हर एक दृष्टि से परिपूर्ण नहीं हो सकता। हर किसी के व्यक्तित्व और कृतित्व के आकलन में परस्पर विरोधाभास की स्थिति बहुत स्वाभाविक होती है।

ऐसी स्थिति में हमें अपने प्रति जनमानस में व्याप्त सकारात्मक या नकारात्मक धारणा को लेकर न तो उत्साहित होना चाहिए और न ही निराश। हर किसी के लिए किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन करने के अपने अलग-अलग पैमाने हुआ करते हैं। उसके आधार पर किसी व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। इन तमाम संदर्भों में हमें हमारे अंतर्मन की आवाज सुनने और सुनते रहने की जरूरत है। निश्चित रूप से हम अपने स्तर पर अपनी जगह अगर सही हैं, तो जमाने की विपरीत हवा भी कभी हमारा अहित नहीं कर सकेगी।