कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट और नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा कोई राहत न मिलने से जहां भाजपा के रणनीतिकारों को करारा झटका लगा हैं, वहीं हरीश रावत को भारी राहत मिली है। राजनीतिक पंडितों के हिसाब से हरीश रावत के पास विश्वास मत हासिल करने का जो जादुई आंकड़ा है, उससे यह माना जा रहा है कि रावत विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने में सफल होंगे।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जहां भाजपा बचाव की मुद्रा में आ गई, वहीं कांग्रेस आक्रामक मुद्रा में है। कांग्रेस के 9 बागी विधायकों की विधायकी खत्म होने के बाद अब उत्तराखंड की 71 सदस्यीय विधानसभा में 62 विधायक बचते हैं। अब इन्हीं विधायकों में हरीश रावत को बहुमत साबित करना होगा। सुप्रीम कोर्ट और नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले के बाद सूबे में राजनीतिक सरगर्मियां तेजी से बढ़ गई हैं और कांग्रेस और भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने देहरादून में डेरा डाल लिया है।
नैनीताल हाईकोर्ट की एकलपीठ के न्यायाधीश यूसी ध्यानी ने बागी विधायकों की अर्जी खारिज करते हुए 27 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल द्वारा उनकी सदस्यता को रद्द करने के फैसले को सही ठहराया है और विधानसभा में अध्यक्ष के लिए गए निर्णय को ही सही माना है। कांग्रेस के जिन नौ बागी विधायकों की सदस्यता रद्द हुई है, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, शैलेंद्र मोहन सिंघल, सुबोध उनियाल, उमेश शर्मा काऊ, प्रदीप बत्रा, अमृता रावत और शैलारानी रावत शामिल हैं। नैनीताल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा के रणनीतिकारों और कांग्रेस के बागी विधायकों की खासी किरकिरी हुई है।
अब 62 विधायकों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास 27, भाजपा के पास 28, निर्दलीय 3, उत्तराखंड क्रांति दल के पास एक तथा बसपा के पास दो विधायक हैं। इन विधायकों में से कांग्रेस को अपनी पार्टी के 27 विधायकों के अलावा तीन निर्दलीय विधायकों, एक उत्तराखंड क्रांति दल का विधायक और एक नामित विधायक का समर्थन प्राप्त है। इन्हें मिलाकर रावत के खेमे में 32 विधायक शामिल हैं। केवल बसपा ने अभी विधानसभा में फ्लोर टैस्ट में किसी भी पार्टी को समर्थन देने या न देने को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बसपा के दो विधायकों हरिदास और सरबत करीम अंसारी का कहना है कि बसपा प्रमुख मायावती जो फैसला करेंगी, वह उन्हें मान्य होगा।
वहीं कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक बसपा ने कांग्रेस को समर्थन देने का भीतरखाने फैसला कर लिया है। बसपा प्रमुख मायावती बसपा के उत्तराखंड प्रभारी नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बसपा के दोनों विधायकों के साथ मंगलवार (10 मई) को देहरादून भेज रही हैं। माना यह जा रहा है कि सिद्दीकी मंगलवार (10 मई) सुबह देहरादून में कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा करेंगे।
वहीं दूसरी ओर बसपा विधायकों को अपने खेमे में लेने के लिए भाजपा ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने बसपा पर दांव लगाते हुए एलान किया है कि हरिद्वार में हो रहे जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा बसपा के उम्मीदवार को समर्थन देगी। इस बहाने भाजपा मंगलवार (10 मई) को विधानसभा में होने वाले बहुमत परीक्षण में कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। अब देखना है कि बसपा का ऊंट किस करवट बैठता है। बसपा को अपने-अपने खेमों में खींचने के लिए कांग्रेस और भाजपा के रणनीतिकारों ने ऐडी-चोटी का जोर लगा रखा है। अगर बसपा के विधायक हरीश रावत के खेमे में नहीं आते हैं तो भी रावत के पास बहुमत का जादुई आंकड़ा मौजूद है।
रावत के खेमे में 62 सदस्यीय विधानसभा में से 32 विधायक शामिल माने जा रहे हैं, यदि रातोरात कोई भारी उलटफेर नहीं होता है तो रावत का पलड़ा फिर भी भारी रहेगा। जिससे भाजपा के रणनीतिकार खासे परेशान हैं। भाजपा के विधायकों की लगातार बैठकों का दौर चल रहा है जिसमें भाजपा के केंद्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीय, श्याम जाजू, केंद्रीय सह महामंत्री शिव कुमार समेत भाजपा उत्तराखंड के कई नेता शामिल हैं।
वहीं दूसरी ओर मसूरी में कांग्रेस के विधायकों की बैठक हुई। मसूरी में ही प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चे के चार विधायक कांग्रेस के विधायकों के साथ ही एक रिसॉर्ट में रुके हुए हैं। दूसरी ओर भाजपा नेता मदन कौशिक ने नैनीताल हाई कोर्ट में भाजपा के बागी विधायक भीमलाल आर्य की सदस्यता खत्म करने को लेकर याचिका दायर की है।
नैनीताल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जहां हरीश रावत खेमे में खुशी का माहौल हैं, वहीं भाजपा खेमे में मायूसी छाई हुई हैं। देहरादून में प्रदेश मुख्यालय में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेसियों ने जमकर आतिशबाजी कर खुशी का इजहार किया। वहीं भाजपा के प्रदेश कार्यालय में सन्नाटा पसरा रहा। कल तक हरीश रावत सरकार को गिराने के बड़े-बड़े दावे करने वाले भाजपा के बड़बोले रणनीतिकार नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हरीश रावत को विधानसभा में कैसे विश्वास मत में हरा पाएंगे, इसका सटीक जवाब नहीं दे पाए।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट सोमवार (9 मई) को भी यह दावा करते रहे कि अंतरात्मा की आवाज पर कांग्रेस के और विधायक 18 मार्च की तरह रावत के खिलाफ वोट देंगे। रावत सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे। वहीं हरीश रावत ने सुप्रीम कोर्ट और नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि आखिरकार लोकतंत्र की जीत हुई। हम 10 मई को विधानसभा के पटल पर भी अपना बहुमत साबित कर लेंगे। जिस तरह हमें न्यायालय से न्याय मिला है, उसी तरह हमें विधानसभा के पटल से भी न्याय मिलेगा। रावत ने कहा कि भाजपा और केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में लोकतंत्र की हत्या करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सूबे में लोकतंत्र को नीचा दिखाने के लिए सरकार मशीनरी का बेजा इस्तेमाल किया।
वहीं देहरादून पहुंचे अंबिका सोनी और गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है। भाजपा और केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार को गिराकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर लोकतंत्र की सरेआम हत्या की। विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि उन्होंने 27 मार्च को 9 बागी कांग्रेस विधायकों की सदस्यता रद्द करने का जो फैसला सुनाया था, उस पर हाईकोर्ट ने अपनी मोहर लगा दी है। यह लोकतंत्र की जीत है। साथ ही कुंजवाल ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि जिस तरह से बागी विधायकों और भाजपा के विधायकों ने उनके फैसले पर और विधानसभा अध्यक्ष की पीठ को लेकर जो टिप्पणियां की थी, वह लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। और संविधान विरोधी है। लोकतांत्रिक ताकतों को इस बारे में गंभीरता से चिंतन करना चाहिए।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट और नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि मंगलवार (10 मई) को विधानसभा सत्र के बाद हरीश रावत और वे विधानसभा से देहरादून जिला मुख्यालय में स्थित शहीद स्थल तक न्याय यात्रा निकालेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस के बागी नेताओं को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों से सबक लेना चाहिए।