सोमवार को भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने वाले भूपेंद्र चौधरी के समक्ष काफी चुनौतियां हैं। हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में 57 सीटों पर मिली हार की भरपाई वे कैसे करेंगे? ये अपने आप में बड़ा सवाल है। इसके अलावा 2014 के मुकाबले 2019 में आठ लोकसभा सीटों पर मिली हार की भरपाई करना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं। साथ ही प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना और 25 हजार से अधिक कमजोर बूथों को मजबूत करने की बड़ी जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ फीसद जाट आबादी को साधने के लिए क्या भारतीय जनता पार्टी ने भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया? यदि मुरादाबाद मंडल की छह लोकसभा सीटों को ध्यान में रख कर चौधरी की प्रदेश अध्यक्षी को देखा जाए तो कुछ-कुछ बात समझ आती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मुरादाबाद मंडल की सभी छह सीटों पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था।

इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 127 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मार्च में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने अपना परचम लहराया था। इस गढ़ पर भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में पुन: काबिज करना पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी होगी। क्योंकि वे खुद पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं, इसलिए उनसे पार्टी आलाकमान ने यह उम्मीद की है कि वे ऐसा कुछ करें जिससे 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 में से 64 सीटें जीतने वाली भाजपा की गिनती में सीटों की शक्ल में इजाफा हो सके। ऐसा इसलिए क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इसी उत्तर प्रदेश की 80 में से 72 सीटें अकेले भाजपा ने जीती थीं।

इन सीटों के अलावा हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को जिन 57 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था, उनकी भरपाई करना भी किसी चुनौती से कम नहीं। एक लोकसभा में पांच विधानसभा सीटों के गणित को यदि देखें तो 57 विधानसभा सीटों का नुकसान 11 लोकसभा सीटों की शक्ल में सामने नजर आ रहा है। इसे दुरुस्त करने के लिए भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष को उन खस्ताहाल पड़े 25 हजार से अधिक बूथों को दुरुस्त करना होगा, जिसे पांच साल की पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाले योगी आदित्यनाथ सही नहीं कर पाए। न ही पार्टी के संगठन मंत्री सुनील बंसल का ही इन बूथों पर कोई जादू चला। हालांकि विधानसभा चुनाव के दो वर्ष पहले से सुनील बंसल प्रदेश भर में घूम-घूम कर बूथ सम्मेलनों में शामिल हो रहे थे।

दरअस्ल उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता अपनी सरकार में ही खुद को उपेक्षित पा रहा है। उसे इस बात की बड़ी शिकायत है कि अपनी सरकार में ही प्रशासन और पुलिस के अधिकारी उसकी सुनवाई नहीं करते। इस बात को भांप कर बीते दिनों योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिए थे कि भाजपा के कार्यकर्ताओं की बात को जिला व पुलिस प्रशासन के अधिकारी संजीदगी से लें और उसका त्वरित निस्तारण करें।

पंचायती राज विभाग के मंत्री का पद रहते भूपेंद्र चौधरी ने अपने विभाग में योजनाओं का सटीक ढंग से पालन कराया। ऐसे में देखना यह होगा कि दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में आखिर वे कैसे उत्तर प्रदेश सरीखे बड़े राज्य में भाजपा को उसकी 2014 सरीखी चमक वापस कर सकते हैं। उनके लिए बड़ी चुनौती प्रदेश में दशकों से अपनी सियासी जमीन बनाए वे नेता भी हैं जिनके अभी भी अपने खेमे हैं। इन खेमों का सीधा असर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों पर है। ऐसे नेता अपने खेमे से जुडे लोगों को टिकट दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। ऐसे प्रयासों से पार पाए बगैर जमीन पर काम करने वाले नेताओं का दिल जीत पाना कठिन है।