2007 में गोरखपुर में दिए गए भाषण से जुड़े एक मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने योगी के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 में मुकदमे की अनुमति से मना किया था। 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट भी इसे सही ठहरा चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मामला ही पूरी तरह से खत्म हो गया।

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के 2017 के आदेश और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए मामले का निपटारा कर दिया। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि याचिका में राज्य सरकार की शक्ति को लेकर जो कानूनी सवाल उठाए गए हैं, उन्हें खुला रखा जा रहा है। यानी भविष्य में सुप्रीम कोर्ट मुकदमे की अनुमति देने से जुड़े केंद्र और राज्य सरकारों की शक्ति पर सुनवाई कर सकता है। लेकिन योगी के खिलाफ मौजूदा मामला बंद माना जाएगा।

मामले में याचिका परवेज परवाज की तरफ से दायर की गई थी। उनका कहना था कि सांसद रहते योगी आदित्यनाथ के भाषण की वजह से 2007 में गोरखपुर में दंगा हुआ। इसमें कई लोगों की जान गई। 2008 में दर्ज केस की यूपी पुलिस ने जांच की और फिर 2015 में राज्य सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी गई।

परवेज का आरोप है कि मई 2017 में राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना किया। उस समय योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। उनका दावा है कि सीएम बनने के बाद सरकार की कमान उनके हाथ में थी। अधिकारी दबाव में रहे होंगे, तभी मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी गई।

योगी की तरफ से पेश सीनियर वकील मुकुल रोहतगी का कहना था कि लंबी जांच के बाद भी पुलिस को तथ्य नहीं मिले। तब यूपी में दूसरी पार्टियों की सरकार थी। 2017 में राज्य के कानून विभाग और गृह विभाग ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना किया. क्योंकि पुलिस के पास कोई ठोस सबूत नहीं था। निचली अदालत के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट भी इस बात को मान चुका है।