सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कन्डेय काटजू ने अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता पर अपना काम ठीक ढंग से न करने का आरोप लगाया है। काटजू ने राय जाहिर करते हुए कहा कि दोनों (एजी और एसजी) कानून का ठीक ढंग से इस्तेमाल करने में कोर्ट की मदद करने के लिए हैं। न कि कोर्ट में सरकार के कामों को सही ठहराने के लिए। काटजू ने कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री- उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की हिरासत से जुड़ी कार्रवाई पर बात करते हुए यह बात कही।

काटजू ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के काम से जुड़े कुछ उदाहरण भी पेश किए।

1)  उन्होंने बताया कि पंडित कन्हैया लाल मिश्र काफी समय तक उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल रहे। एक बार जब समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने किसानों को तालाब से मिलने वाले पानी का बढ़ा हुआ पैसा देने से मना किया, तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। लोहिया ने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में हेबस कॉर्पस याचिका लगाई। यूपी सरकार की ओर से उस वक्त पंडित मिश्रा पेश हुए थे।

लोहिया ने केस खुद लड़ने की मांग की, लेकिन वे वकी नहीं थे, इसलिए पंडित मिश्र ने खुद जेल जाकर लोहिया की केस लड़ने में मदद की। उन्होंने लोहिया को भारत, ब्रिटिश और अमेरिकी कोर्ट में चल रहे कई केसों के उदाहरण दिए, जिससे फैसला समाजवादी नेता के पक्ष में आए। कई लोग पंडित मिश्र के इन कदमों पर सवाल उठाने लगे कि वे तो यूपी सरकार की तरफ से हैं, फिर वे विपक्षी की मदद क्यों कर रहे हैं। इस पर मिश्र ने कहा था कि लोहिया कोई प्रशिक्षित वकील नहीं हैं। साथ ही कोर्ट के सही फैसले के लिए दोनों पक्षों का सुना जाना जरूरी है। इसलिए वे सिर्फ न्याय करने में कोर्ट की मदद कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि एडवोकेट जनरल के तौर पर उनका काम सिर्फ केस जितना ही नहीं, बल्कि कोर्ट की मदद करना भी है, ताकि कानून को सही ढंग से पेश किया जा सके।

2) तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल गोविंद स्वामीनाथन का उदाहरण पेश करते हुए काटजू ने बताया कि मद्रास हाईकोर्ट में एक छात्र ने याचिका लगाई थी कि उसे कुछ गलती की वजह से एक शिक्षण कोर्स में एडमिशन नहीं दिया गया। इस मामले में स्वामीनाथन सरकार के वकील थे, लेकिन उन्होंने कोर्ट में यह कबूला था कि इस मामले में वाकई सरकार की गलती है और छात्र को एडमिशन मिलना चाहिए। इसके बाद कोर्ट ने छात्र के एडमिशन का आदेश दे दिया था।

अटॉर्नी सॉलिसिटर जनरल बचा सकते हैं अपनी साखः इन दोनों उदाहरणों के जरिए काटजू ने कहा कि अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल को कश्मीरी नेताओं के हिरासत में रखे जाने के आदेश को सही ठहराने के लिए काम नहीं करना चाहिए, बल्कि बताना चाहिए कि ब्रैंडनबर्ग टेस्ट के तहत यह आदेश गैरकानूनी हैं। ऐसा करने से एजी और एसजी न सिर्फ अपनी छवि बेहतर कर पाएंगे, बल्कि कोर्ट की छवि भी पुराने स्तर पर लौटेगी, जिसकी साख पर कुछ हालिया फैसलों और जजों की वजह से असर पड़ा है।