अमरकांत प्रेमचंद की परंपरा के ऐसे कथाकार हैं, जिनका स्थान उनकी पीढ़ी के रचनाकारों में अलग ही है। अमरकांत नई कहानी आंदोलन से जुड़े थे। उनकी कहानियां उस दौर की कहानियों से काफी अलग हैं। उनमें जिंदगी का जो खुरदुरा यथार्थ है, वह निम्न मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियों और विडंबनाओं को सामने लाता है। कई मायनों में उनका लेखन नई कहानी आंदोलन की मूल प्रवृत्तियों से भिन्न है। महानगरीय जीवन, अकेलेपन का संत्रास और अस्तित्ववादी भाव-बोध नई कहानी आंदोलन की मुख्य विशिष्टता मानी जाती है। पर, अमरकांत की कहानियां स्वतंत्रता मिलने के बाद नई पीढ़ी के मोहभंग को सामने लाने वाली हैं। उनकी अधिकांश बहुचर्चित कहानियां कस्बाई जीवन की पृष्ठभूमि पर हैं। उनकी चर्चित कहानियों- ‘दोपहर का भोजन’, ‘डिप्टी कलक्टरी’, ‘मित्र मिलन’, ‘हत्यारे’, ‘जिंदगी और जोंक’ जैसी कहानियों में निम्न मध्यवर्ग की टूटती आशाओं और वंचना के गहरे अहसास को स्वर मिला है।
अमरकांत का लेखन प्रेमचंद के यथार्थवादी लेखन की अगली कड़ी है, जो आजादी के बाद देश के विकास के ढांचे के खोखलेपन को साफ-साफ दिखाती है। आजादी मिलने के बाद लोगों के मन में उम्मीद की एक नई किरण जगी थी। लेकिन सामाजिक-आर्थिक स्तर पर किसी तरह का कोई ढांचागत बदलाव नहीं होने के कारण शोषण के पुराने रूप तो बने ही रहे, शोषकों का एक नया चेहरा भी सामने आया, जो कहीं ज्यादा निर्मम और क्रूर था। उसकी पहचान और उसका चरित्र-उद्घाटन अमरकांत के समग्र लेखन में हुआ है। अपनी कहानियों और उपन्यासों में अमरकांत ने छोटे शहरों-कस्बों में जीवन व्यतीत कर रहे उन लोगों के जीवन की विडंबनाओं को सामने लाया, जो आगे बढ़ने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं, पर जिनके सपने पूरे नहीं हो पाते।
सुरेंद्र चौधरी ने नई कहानी पर विचार करते हुए लिखा है कि नई कहानी आजादी के बाद के हिंदी संसार के उस मनुष्य की अभिव्यक्ति थी जो देशकाल के परिवर्तनों और संभावनाओं से आंदोलित होने के साथ ही साथ कहीं संशयशील और तनावपूर्ण स्थितियों से भी गुजर रहा था। प्रश्न उठता है कि वह मनुष्य कौन है और उसकी आकांक्षाएं क्या हैं? इसका उत्तर हमें अमरकांत की कहानियां बहुत ही मुखर रूप में देती हैं। कहना न होगा कि यह मनुष्य कोई और नहीं वरन आम आदमी ही है। अमरकांत ने इसी आम आदमी को और उसके व्यक्तित्व की द्वंद्वात्मकता को अपनी कहानियों का केंद्र बिंदु बनाया है। इसके तहत शुभ और अशुभ का द्वंद्व, व्यष्टि और समष्टि का द्वंद्व, आशा और निराशा का द्वंद्व, परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व समाहित है।
उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘हत्यारे’ के संबंध में नामवर सिंह ने लिखा है कि सामान्य-सी घटनाएं साधारण लोग। न मृत्यु का भयावह चित्रण और न चरित्रों में किसी महत्त्व का आरोप। लेकिन, आभासित होने वाली साधारणता के तल में एक ओर मृत्यु है, दूसरी ओर निरावरण निहत्था मानव! दोनों अपने असली और नग्न रूप में आमने-सामने! इस विषाक्त वृत्त से मुक्त होने की यह उत्कट आकांक्षा कहां कहानी का विषय और कहां कहानी का विचार। कहानी किसकी है? हर मानव की या एक मानव दल की, जिसने इस सामजिक व्यवस्था के अंदर एक खास पेशा अपना लिया है?
अमरकांत ने विपुल लेखन किया है। वे सच्चे अर्थों में मसिजीवी लेखक थे। कहानी और उपन्यासों के अलावा उन्होंने संस्मरण भी लिखे हैं और बच्चों के लिए भी लिखा है। उनका बाल-उपन्यास ‘वानर सेना’ बहुत लोकप्रिय हुआ। अमरकांत शुरू से ही राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए थे। बलिया में पढ़ते समय उनका संपर्क स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों से हुआ। उन्होंने 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में भाग लिया। फिर वे पत्रकारिता से जुड़े और कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति 1955 में ‘डिप्टी कलक्टरी’ कहानी प्रकाशित होने के बाद हुई।
1948 में वे आगरा के दैनिक पत्र ‘सैनिक’ के संपादकीय विभाग से जुड़ गए। बाद में वे इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली ‘मनोरमा’ के संपादकीय विभाग से जुड़े और वहीं से अवकाश प्राप्त किया। अमरकांत का जीवन संघर्षों में बीता। ये संघर्ष वैसे ही थे जैसे एक कस्बाई आम निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति के, जो उनके लेखन के केंद्र में रहा। सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले अमरकांत साहित्यिक गुटबाजी, प्रचार और लेखकीय राजनीति से दूर लगातार लेखन में लगे रहे। प्रेमचंद की भांति ही उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक लेखन-कर्म छोड़ा नहीं। अमरकांत का जन्म पहली जुलाई, 1925 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगरा कस्बे के पास स्थित भगमलपुर गांव में हुआ था। इलाहाबाद से बीए करने के बाद उन्होंने साहित्यिक सृजन का मार्ग चुना। ०