राजस्थान में कांग्रेस अब अपनी ताकत बढ़ाने की तैयारी में लग गई है। प्रदेश में अगले चुनाव से पहले ही उसने उन पुराने कांग्रेस नेताओंं को वापस पार्टी में लाने की जुगत शुरू कर दी है। इसके साथ भाजपा के कुछ निराश नेताओं पर भी उसकी निगाहें टिकी हैं।
राज्य में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस अपने कदम बढ़ाने में लग गई है। इसके लिए कांग्रेस ने अपने नेताओं को पार्टी का कुनबा बढ़ाने के काम पर लगा दिया है। पार्टी ने अब उन नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया है जो कांग्रेस छोड़कर चले गए थे। कांग्रेस आलाकमान के निर्देशों के बाद प्रदेश के नेता अब सक्रिय हो गए हैं।
प्रदेश प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत ने इस सिलसिले में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट से भी विचार किया है। पायलट ने प्रदेश में जाट वर्ग के नेताओं को फिर से कांग्रेस में लाने की पहल की है। इसके लिए कामत ने पायलट को पूरी छूट दे दी है। पायलट ने भी अपने खास नेताओं को इस बारे में संकेत दे दिया है। पायलट से पिछले दिनों कई ऐसे नेता मिले हैं जो कांग्रेस में वापसी भी चाहते हैं। पायलट ने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने भी शुरू कर दिए है। पायलट ने शुक्रवार को करौली जिले के दौरे के दौरान भी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए स्थानीय नेताओं से अपील की। करौली जिले में कांग्रेस फिर से अपना जनाधार मजबूत करने में लगी है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया को कांग्रेस में लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। महरिया ने पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा से बगावत कर लड़ा था। इसके बाद से ही उनकी भाजपा से दूरी बढ़ गई। पूर्व मंत्री और सीकर के नेता राजेंद्र पारीक ने महरिया की पायलट से कई मुलाकातें करवाई हैं। महरिया ने कुछ समय पहले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी मुलाकात की थी। इसके बाद से ही उनके कांग्रेस में शामिल होने के आसार बढ़ गए थे।
महरिया का पूरा परिवार हमेशा से कांग्रेस से ही जुड़ा रहा है। सीकर जिले के सुभाष महरिया ही परिवार में अकेले ऐसे नेता रहे जो भाजपा में शामिल रहे और केंद्र की वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहे। महरिया को पार्टी में लाने का कई स्थानीय नेता विरोध भी कर रहे हैं। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री महादेव सिंह खंडेला और विधायक गोविंद डोटासरा प्रमुख हैं।
कांग्रेस की महरिया के अलावा कई प्रमुख जाट नेताओं पर निगाहें लगी हुई हैं। इनमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह और पूर्व मंत्री डॉ. हरी सिंह प्रमुख हैं। ये दोनों नेता भी भाजपा से जुड़े रहे हैं। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद इन नेताओं को कोई स्थान नहीं दिया गया है। इससे इनमें भाजपा के प्रति नाराजगी पनपी हुई है। सुमित्रा सिंह तो पूर्व में भाजपा की वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में विधानसभा अध्यक्ष रह चुकी हैं। डॉ. हरी सिंह ने विधानसभा चुनाव से पहले ही बड़ी रैली कर जाट समाज का समर्थन वसुंधरा राजे को दिया था। चुनाव के बाद दोनों नेताओं को भाजपा ने अलग-थलग कर दिया था। दूसरी तरफ कांग्रेस चाहती है कि जनाधार वाले जाट नेता उसके खेमे में रहें। इससे अगले चुनाव में भाजपा को कमजोर किया जा सकता है।